Class 11 Hindi Vitan Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें -अनुपम मिश्र
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न. 1.राजस्थान
में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की
गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
प्रश्न. 2.
दिनोदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा
देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें
और लिखें।
उत्तर: मनुष्य ने प्रकृति
का जैसा दोहन किया है, उसी का अंजाम आज मनुष्य भुगत रहा है। जंगलों
की कटाई भूमि का जल स्तर घट गया है और वर्षा,
सरदी, गरमी
आदि सभी अनिश्चित हो गए हैं। इसी प्राकृतिक परिवर्तन से मनुष्य में अब कुछ चेतना
आई है। अब वह जल संरक्षण के उपाय खोजने लगा है। इस उपाय खोजने की प्रक्रिया में
राजस्थान सबसे आगे है, क्योंकि वहाँ जल का पहले से ही अभाव था। इस
पाठ से हमें जल की एक-एक बूंद का महत्त्व समझने में मदद मिलती है। पेय जल आपूर्ति
के कठिन, पारंपरिक,
समझदारीपूर्ण तरीकों का
पता चलता है।
अब हमारे देश में
वर्षा के पानी को एकत्र करके उसे साफ़ करके प्रयोग में लाने के उपाय और व्यवस्था
सभी जगह चल रही है। पेय जल आपूर्ति के लिए नदियों की सफ़ाई के अभियान चलाए जा रहे
हैं। पुराने जल संसाधनों को फिर से प्रयोग में लाने पर बल दिया जा रहा है।
राजस्थान के तिलोनिया गाँव में पक्के तालाबों में वर्षा का जल एकत्र करके जल
आपूर्ति के साथ-साथ बिजली तक पैदा की जा रही है जो एक मार्गदर्शक कदम है। कुंईनुमा
तकनीक से पानी सुरक्षित रहता है।
प्रश्न. 3.
चेजारो के साथ गाँव समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फ़र्क आया है, पाठ
के आधार पर बताइए?
प्रश्न. 4.
निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता
है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा?
प्रश्न. 5.
कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें पालरपानी, पातालपानी, रेजाणीपानी।
अन्य
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न. 1.
कुंई का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर: कुंई राजस्थान के
रेगिस्तान में मीठे पानी से पोषण करनेवाली एक कलात्मक कृति है। इसे बनाने में वहाँ
के लोगों का पीढ़ी दर पीढ़ी का अनोखा अनुभव लगा है और एक समूचा शास्त्र विकसित
किया गया है। राजस्थान में जल की कमी तो सदा से ही है। इसे पूरा करने के लिए कुएँ, तालाब, बावड़ी
आदि का प्रयोग होता है। कुंई मीठे पानी का संग्रह स्थल है। मरुभूमि में रेत का
विस्तार और गहराई अथाह है। यहाँ वर्षा अधिक मात्रा में भी हो तो भी शीघ्रता से
भूमि में समा जाती है। पर कहीं-कहीं मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्रायः
दस-पंद्रह से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी जहाँ
भी है वहाँ वर्षा का जल भू-तल के जल में नहीं मिल पाता, यह
पट्टी उसे रोकती है।
यह रुका हुआ पानी
संग्रह कर प्रयोग में लाने की विधि है-कुंई इसे छोटे व्यास में गहरी खुदाई करके
बनाया जाता है। इसकी खुदाई एक छोटे उपकरण बसौली से की जाती है। खुदाई के साथ-साथ
चिनाई का काम भी चलता रहता है। चिनाई ईंट-पत्थर,
खींप की रस्सी और लकड़ी के
लट्ठों से की जाती है। यह सब कार्य एक कुशल कारीगर चेलवांजी या चेजारो द्वारा किया
जाता है। ये पीढ़ियों के अनुभव से अपने काम में माहिर होते हैं। समाज में इनका मान
होता है। कुंई में खड़िया पट्टी पर रेत के नीचे इकट्ठा हुआ जल बूंद-बूंद करके
रिस-रिसकर एकत्र होता जाता है। इसे प्रतिदिन दिन में एक बार निकाला जाता है। ऐसा
लगता है प्रतिदिन सोने का एक अंडा देनेवाली मुरगी की कहानी कुंई पर भी लागू होती
है। कुंई निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में होती हैं। उन पर ग्राम-समाज का
अंकुश लगा रहता है।
प्रश्न. 2. राजस्थान में कुंई क्यों बनाई जाती हैं? कुंई
से जल लेने की प्रक्रिया बताइए।
उत्तर: राजस्थान में थार
का रेगिस्तान है जहाँ जल का अभाव है। नदी-नहर आदि तो स्वप्न की बात है। तालाबों और
बावड़ियों के जल से नहाना, धोना और पशुधन की रक्षा करने का काम किया
जाता है। कुएँ बनाए भी जाते हैं तो एक तो उनका जल स्तर बहुत नीचे होता है और दूसरा
उनसे प्राप्त जल खारा (नमकीन) होता है। अतः पेय जल आपूर्ति और भोजन बनाने के लिए
कुंई के पानी का प्रयोग किया जाता है। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए राजस्थान में
कुंई बनाई जाती जब कुंई तैयार हो जाती है तो रेत में से रिस-रिसकर जल की बूंदें
कुंई में टपकने लगती हैं और कुंई में जल इकट्ठा होने लगता है। इस जल को निकालने के
लिए गुलेल की आकृति की लकड़ी लगाई जाती है। उसके बीच में फेरडी या घिरणी लगाकर रस्सी
से चमड़े की थैली बाँधकर जल निकाला जाता है। आजकल ट्रक के टॉयर की भी चड़सी बना
ली। जाती है। जल निकालने का काम केवल दिन में एक बार सुबह-सुबह किया जाता है। उसके
बाद कुंई को ढक दिया जाता।
प्रश्न. 3.
कुंई और कुएँ में क्या अंतर है?
उत्तर: कुंई का व्यास
संकरा और गहराई कम होती है। इसकी तुलना में कुएँ का व्यास और गहराई कई गुना अधिक
होती है। कुआँ भू-जल को पाने के लिए बनाया जाता है पर कुंई वर्षा के जल को बड़े ही
विचित्र ढंग से समेटने का साधन है। कुंई बनाने के लिए खड़िया पट्टी का होना अति
आवश्यक है जो केवल भू-गर्भ जानकारी वाले लोग ही बताते हैं, जबकि
कुएँ के लिए यह जरूरी नहीं है। कुंई मीठे पानी का संग्रह स्थल है, जबकि
कुआँ प्रायः खारे पानी का स्रोत होता है।
प्रश्न. 4.
कुंई का मुँह छोटा रखने के क्या कारण हैं?
उत्तर- कुंई का मुँह छोटा
रखने के निम्नलिखित तीन बड़े कारण हैं
1. रेत में जमा पानी कुंई में बहुत धीरे-धीरे
रिसता है। अतः मुँह छोटा हो तभी प्रतिदिन जल स्तर पानी भरने लायक बन पाता है।
2. बड़े व्यास से धूप और गरमी में पानी के भाप
बनकर उड़ जाने का खतरा बना रहता है।
3. कुंई की स्वच्छता और सुरक्षा के लिए उसे
ढककर रखना जरूरी है; मुँह छोटा होने से यह कार्य आसानी से किया जा सकता है।
प्रश्न. 5.
खड़िया पट्टी का विस्तार से वर्णन कीजिए।
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