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Tuesday, September 10, 2024

कवितावली (उत्तरकांड से) तुलसीदास, सार, शब्दार्थ , व्याख्या , प्रश्नोत्तर

 (क) कवितावली (उत्तरकांड से) तुलसीदास, सार, शब्दार्थ , व्याख्या , प्रश्नोत्तर 

Hindi Study Class 

प्रतिपादय-कवित्त में कवि ने बताया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’ का दारुण व गहन यथार्थ है, जिसका समाधान वे राम-रूपी घनश्याम के कृपा-जल में देखते हैं। उनकी रामभक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटों का समाधान करने वाली है, साथ ही जीवन-बाह्य आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली भी है।
सार-कवित्त में कवि ने पेट की आग को सबसे बड़ा बताया है। मनुष्य सारे काम इसी आग को बुझाने के उद्देश्य से करते हैं चाहे वह व्यापार, खेती, नौकरी, नाच-गाना, चोरी, गुप्तचरी, सेवा-टहल, गुणगान, शिकार करना या जंगलों में घूमना हो। इस पेट की आग को बुझाने के लिए लोग अपनी संतानों तक को बेचने के लिए विवश हो जाते हैं। यह पेट की आग समुद्र की बड़वानल से भी बड़ी है। अब केवल रामरूपी घनश्याम ही इस आग को बुझा सकते हैं।
दूसरे कवित्त में कवि अकाल की स्थिति का चित्रण करता है। इस समय किसान खेती नहीं कर सकता, भिखारी को भीख नहीं मिलती, व्यापारी व्यापार नहीं कर पाता तथा नौकरी की चाह रखने वालों को नौकरी नहीं मिलती। लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं है। वे विवश हैं। वेद-पुराणों में कही और दुनिया की देखी बातों से अब यही प्रतीत होता है कि अब तो भगवान राम की कृपा से ही कुशल होगी। वह राम से प्रार्थना करते हैं कि अब आप ही इस दरिद्रता रूपी रावण का विनाश कर सकते हैं।
सवैये में कवि ने भक्त की गहनता और सघनता में उपजे भक्त-हृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण किया है। वे कहते हैं कि चाहे कोई मुझे धूर्त कहे, अवधूत या जोगी कहे, कोई राजपूत या जुलाहा कहे, किंतु मैं किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह नहीं करने वाला और न किसी की जाति बिगाड़ने वाला हूँ। मैं तो केवल अपने प्रभु राम का गुलाम हूँ। जिसे जो अच्छा लगे, वही कहे। मैं माँगकर खा सकता हूँ तथा मस्जिद में सो सकता हूँ किंतु मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। मैं तो सब प्रकार से भगवान राम को समर्पित हूँ।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) कवितावली

1. किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी,भाट,
चाकर, चपला नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गुढ़त, चढ़त गिरी,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।

ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही की पचित, बोचत बेटा-बेटकी।।
तुलसी ‘ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी।। 

शब्दार्थ-किसबी-धंधा। कुल- परिवार। बनिक- व्यापारी। भाट- चारण, प्रशंसा करने वाला। चाकर- घरेलू नौकर। चपल- चंचल। चार- गुप्तचर, दूत। चटकी- बाजीगर। गुनगढ़त- विभिन्न कलाएँ व विधाएँ सीखना। अटत- घूमता। अखटकी- शिकार करना। गहन गन- घना जंगल। अहन- दिन। करम-कार्य। अधरम- पाप। बुझाड़- बुझाना, शांत करना। घनश्याम- काला बादल। बड़वागितें- समुद्र की आग से। आग येट की- भूख।

व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि इस संसार में मजदूर, किसान-वर्ग, व्यापारी, भिखारी, चारण, नौकर, चंचल नट, चोर, दूत, बाजीगर आदि पेट भरने के लिए अनेक काम करते हैं। कोई पढ़ता है, कोई अनेक तरह की कलाएँ सीखता है, कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई दिन भर गहन जंगल में शिकार की खोज में भटकता है। पेट भरने के लिए लोग छोटे-बड़े कार्य करते हैं तथा धर्म-अधर्म का विचार नहीं करते। पेट के लिए वे अपने बेटा-बेटी को भी बेचने को विवश हैं। तुलसीदास कहते हैं कि अब ऐसी आग भगवान राम रूपी बादल से ही बुझ सकती है, क्योंकि पेट की आग तो समुद्र की आग से भी भयंकर है।
विशेष-

(i) समाज में भूख की स्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया है।
(ii) 
कवित्त छंद है।
(iii) 
तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है।
(iv) 
ब्रजभाषा लालित्य है।
(v) ‘
राम घनस्याम’ में रूपक अलंकार तथा ‘आगि बड़वागितें..पेट की’ में व्यतिरेक अलंकार है।
(vi) 
निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-
किसबी, किसान-कुल’, ‘भिखारी, भाट’, ‘चाकर, चपल’, ‘चोर, चार, चेटकी’, ‘गुन, गढ़त’, ‘गहन-गन’, ‘अहन अखेटकी ‘, ‘ बचत बेटा-बेटकी’, ‘ बड़वागितें  बड़ी  ‘
(vii) 
अभिधा शब्द-शक्ति है।

प्रश्न (क) पेट भरने के लिए लोग क्या-क्या अनैतिक काय करते हैं ?
(
ख) कवि ने समाज के किन-किन लोगों का वर्णन किया है ? उनकी क्या परेशानी है ?
(
ग) कवि के अनुसार, पेट की आग कौन बुझा सकता है ? यह आग कैसे है ?
(
घ) उन कमों का उल्लेख कीजिए, जिन्हें लोग पेट की आग बुझाने के लिए करते हैं ?

उत्तर- (क) पेट भरने के लिए लोग धर्म-अधर्म व ऊंचे-नीचे सभी प्रकार के कार्य करते है ? विवशता के कारण वे अपनी संतानों को भी बेच देते हैं ?
(
ख) कवि ने मज़दूर, किसान-कुल, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर, चोर, दूत, जादूगर आदि वर्गों का वर्णन किया है। वे भूख व गरीबी से परेशान हैं।
(
ग) कवि के अनुसार, पेट की आग को रामरूपी घनश्याम ही बुझा सकते हैं। यह आग समुद्र की आग से भी भयंकर है।
(
घ) कुछ लोग पेट की आग बुझाने के लिए पढ़ते हैं तो कुछ अनेक तरह की कलाएँ सीखते हैं। कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई घने जंगल में शिकार के पीछे भागता है। इस तरह वे अनेक छोटे-बड़े काम करते हैं।

2. खेते न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों ‘ कहाँ जाई, का करी ?’

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे स सबैं पै, राम ! रावरें कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी। 

शब्दार्थ-बलि- दान-दक्षिणा। बनिक- व्यापारी। बनिज- व्यापार। चाकर- घरेलू नौकर। चाकरी- नौकरी। जीविका बिहीन- रोजगार से रहित। सदयमान-दुखी। सोच- चिंता। बस- वश में। एक एकन सों- आपस में। का करी- क्या करें। बेदहूँ- वेद। पुरान- पुराण। लोकहूँ- लोक में भी। बिलोकिअत- देखते हैं। साँकरे- संकट। रावरें- आपने। दारिद- गरीबी। दसानन- रावण। दबाढ़- दबाया। दुनी- संसार। दीनबंधु- दुखियों पर कृपा करने वाला। दुरित- पाप। दहन-जलाने वाला, नाश करने वाला। हहा करी-दुखी हुआ।

व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि अकाल की भयानक स्थिति है। इस समय किसानों की खेती नष्ट हो गई है। उन्हें खेती से कुछ नहीं मिल पा रहा है। कोई भीख माँगकर निर्वाह करना चाहे तो भीख भी नहीं मिलती। कोई बलि का भोजन भी नहीं देता। व्यापारी को व्यापार का साधन नहीं मिलता। नौकर को नौकरी नहीं मिलती। इस प्रकार चारों तरफ बेरोजगारी है। आजीविका के साधन न रहने से लोग दुखी हैं तथा चिंता में डूबे हैं। वे एक-दूसरे से पूछते हैं-कहाँ जाएँ? क्या करें? वेदों-पुराणों में ऐसा कहा गया है और लोक में ऐसा देखा गया है कि जब-जब भी संकट उपस्थित हुआ, तब-तब राम ने सब पर कृपा की है। हे दीनबंधु! इस समय दरिद्रतारूपी रावण ने समूचे संसार को त्रस्त कर रखा है अर्थात सभी गरीबी से पीड़ित हैं। आप तो पापों का नाश करने वाले हो। चारों तरफ हाय-हाय मची हुई है।
विशेष-

(i) तत्कालीन समाज की बेरोजगारी व अकाल की भयावह स्थिति का चित्रण है।
(ii) 
तुलसी की रामभक्ति प्रकट हुई है।
(iii) 
ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है।
(iv) ‘
दारिद-दसानन’ व ‘दुरित दहन’ में रूपक अलंकार है।
(v) 
कवित्त छंद है।
(vi) 
तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
(vi) 
निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है ‘किसान को’, ‘सीद्यमान सोच’, ‘एक एकन’, ‘का करी’, ‘साँकरे सबैं’, ‘राम-रावरें’, ‘कृपा करी’, ‘दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु’, ‘दुरित-दहन देखि’।

प्रश्न. (क) कवि ने समाज के किन-किन वरों के बारे में बताया है?
(
ख) लोग चिंतित क्यों हैं तथा वे क्या सोच रहे हैं?
(
ग) वेदों वा पुराणों में क्या कहा गया है ?
(
घ) तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की हैं तथा क्यों ?

उत्तर- (क) कवि ने किसान, भिखारी, व्यापारी, नौकरी करने वाले आदि वर्गों के बारे में बताया है कि ये सब बेरोजगारी से परेशान हैं।
(
ख) लोग बेरोजगारी से चिंतित हैं। वे सोच रहे हैं कि हम कहाँ जाएँ क्या करें?
(
ग) वेदों और पुराणों में कहा गया है कि जब-जब संकट आता है तब-तब प्रभु राम सभी पर कृपा करते हैं तथा सबका कष्ट दूर करते हैं।
(
घ) तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना रावण से की है। दरिद्रतारूपी रावण ने पूरी दुनिया को दबोच लिया है तथा इसके कारण पाप बढ़ रहे हैं।

3. धूत कहो, अवधूत कहों, रजपूतु कहीं, जोलहा कहों कोऊ।
कहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सौऊ।
तुलसी सरनाम गुलामु हैं राम को, जाको रुच सो कहें कछु आोऊ।
माँग कै खैबो, मसीत को सोइबो, लेबोको एकु न दैबको दोऊ।। 

शब्दार्थ- धूत- त्यागा हुआ। अवधूतसंन्यासी। रजपूतु- राजपूत। जलहा- जुलाहा। कोऊ- कोई। काहू की- किसी की। ब्याहब- ब्याह करना है। बिगार-बिगाड़ना। सरनाम- प्रसिद्ध। गुलामु- दास। जाको- जिसे। रुच- अच्छा लगे। आोऊ- और। खैबो- खाऊँगा। मसीत- मसजिद। सोढ़बो- सोऊँगा। लैंबो-लेना। वैब-देना। दोऊ- दोनों।
प्रसंग- प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के उत्तरकांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कवित्त में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या- कवि समाज में व्याप्त जातिवाद और धर्म का खंडन करते हुए कहता है कि वह श्रीराम का भक्त है। कवि आगे कहता है कि समाज हमें चाहे धूर्त कहे या पाखंडी, संन्यासी कहे या राजपूत अथवा जुलाहा कहे, मुझे इन सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे अपनी जाति या नाम की कोई चिंता नहीं है क्योंकि मुझे किसी के बेटी से अपने बेटे का विवाह नहीं करना और न ही किसी की जाति बिगाड़ने का शौक है। तुलसीदास का कहना है कि मैं राम का गुलाम हूँ, उसमें पूर्णत: समर्पित हूँ, अत: जिसे मेरे बारे में जो अच्छा लगे, वह कह सकता है। मैं माँगकर खा सकता हूँ, मस्जिद में सो सकता हूँ तथा मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। संक्षेप में कवि का समाज से कोई संबंध नहीं है। वह राम का समर्पित भक्त है।
विशेष- (i) कवि समाज के आक्षेपों से दुखी है। उसने अपनी रामभक्ति को स्पष्ट किया है।
(ii) 
दास्यभक्ति का भाव चित्रित है।
(iii) ‘
लैबोको एकु न दैबको दोऊ’ मुहावरे का सशक्त प्रयोग है।
(iv) 
सवैया छंद है।
(v) 
ब्रजभाषा है।
(vi) 
मस्जिद में सोने की बात करके कवि ने उदारता और समरसता का परिचय दिया है।
(vii) 
निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-
कहौ कोऊ’, ‘काहू की’, ‘कहै कछु’।

प्रश्न. (क) कवि किन पर व्यंग्य करता है और क्यों ?
(
ख) कवि अपने  किस रुप पर गर्व करता है ?
(
ग) कवि समाज से क्या चाहता हैं?
(
घ) कवि आपन जीवन-निर्वाह किस प्रकार करना चाहता है ?

उत्तर- (क) कवि धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर राजनीति करने वाले ठेकेदारों पर व्यंग्य करता है, क्योंकि समाज के इन ठेकेदारों के व्यवहार से ऊँच-नीच, जाति-पाँति आदि के द्वारा समाज की सामाजिक समरसता कहीं खो गई है।
(
ख) कवि स्वयं को रामभक्त कहने में गर्व का अनुभव करता है। वह स्वयं को उनका गुलाम कहता है तथा समाज की हँसी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(
ग) कवि समाज से कहता है कि समाज के लोग उसके बारे में जो कुछ कहना चाहें, कह सकते हैं। कवि पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह किसी से कोई संबंध नहीं रखता।
(
घ) कवि भिक्षावृत्ति से अपना जीवनयापन करना चाहता है। वह मस्जिद में निश्चित होकर सोता है। उसे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। वह अपने सभी कार्यों के लिए अपने आराध्य श्रीराम पर आश्रित है।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पाठ के साथ

1. कवितावली’ में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।

अथवा

तुलसीदास के कवित्त के आधार पर तत्कालीन समाज की आर्थिक विषमता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- तुलसीदास अपने युग के स्रष्टा एवं द्रष्टा थे। उन्होंने अपने युग की प्रत्येक स्थिति को गहराई से देखा एवं अनुभव किया था। लोगों के पास चूँकि धन की कमी थी इसलिए वे धन के लिए सभी प्रकार के अनैतिक कार्य करने लग गए थे। उन्होंने अपने बेटा-बेटी तक बेचने शुरू कर दिए ताकि कुछ पैसे मिल सकें। पेट की आग बुझाने के लिए हर अधर्मी और नीचा कार्य करने के लिए तैयार रहते थे। जब किसान के पास खेती न हो और व्यापारी के पास व्यापार न हो तो ऐसा होना स्वाभाविक है।

2. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग सत्य है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।

उत्तर- दीजिए/ पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य कुछ हद तक इस समय का भी युग-सत्य हो सकता है किंतु यदि आज व्यक्ति निष्ठा भाव, मेहनत से काम करे तो उसकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। निष्ठा और पुरुषार्थ-दोनों मिलकर ही मनुष्य के पेट की आग का शमन कर सकते हैं। दोनों में एक भी पक्ष असंतुलित होने पर वांछित फल नहीं मिलता। अत: पुरुषार्थ की महत्ता हर युग में रही है और आगे भी रहेगी।

3. तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत काँ ज़रूस्त क्यों समझी ?
धूत कहौ, अवधूत कहौ, राजपूतु कहौ जोलहा लहा कहौ कोऊ
काहू की बेटीसों  बेटा न ब्याहब काहूकी जाति बिकार न सोऊ।
इस सवैया में ‘काहू के बेटा सों बेटी न ब्याहब’ कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या पपरिवर्तन आता ?

उत्तर- तुलसीदास जाति-पाँति से दूर थे। वे इनमें विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार व्यक्ति के कर्म ही उसकी जाति बनाते हैं। यदि वे काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते हैं तो उसका सामाजिक अर्थ यही होता कि मुझे बेटा या बेटी किसी में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। यद्यपि मुझे बेटी या बेटा नहीं ब्याहने, लेकिन इसके बाद भी मैं बेटा-बेटी का कद्र करता हूँ।

4. धूत कहीं ’ वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की हैं। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं ?

अथवा

धूत कहीं  ……’ ‘छंद के आधार पर तुलसीदास के भक्त-हृदय की विशेषता पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- तुलसीदास ने इस छंद में अपने स्वाभिमान को व्यक्त किया है। वे सच्चे रामभक्त हैं तथा उन्हीं के प्रति समर्पित हैं। उन्होंने किसी भी कीमत पर अपना स्वाभिमान कम नहीं होने दिया और एकनिष्ठ भाव से राम की अराधना की। समाज के कटाक्षों का उन पर कोई प्रभाव नहीं है। उनका यह कहना कि उन्हें किसी के साथ कोई वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं करना, समाज के मुँह पर तमाचा है। वे किसी के आश्रय में भी नहीं रहते। वे भिक्षावृत्ति से अपना जीवन-निर्वाह करते हैं तथा मस्जिद में जाकर सो जाते हैं। वे किसी की परवाह नहीं करते तथा किसी से लेने-देने का व्यवहार नहीं रखते। वे बाहर से सीधे हैं, परंतु हृदय में स्वाभिमानी भाव को छिपाए हुए हैं।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न 

1. क्या तुलसी युग की समस्याएँ वर्तमान में समाज में भी विद्यमान हैंअपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- तुलसी ने लगभग 500 वर्ष पहले जो कुछ कहा थावह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समय की मूल्यहीनतानारी की स्थितिआर्थिक दुरवस्था का चित्रण किया है। इनमें अधिकतर समस्याएँ आज भी विद्यमान हैं। आज भी लोग जीवन-निर्वाह के लिए गलत-सही कार्य करते हैं। नारी के प्रति नकारात्मक सोच आज भी विद्यमान है। अभी भी जाति व धर्म के नाम पर भेदभाव होता है। इसके विपरीतकृषिवाणिज्यरोजगार की स्थिति आदि में बहुत बदलाव आया है। इसके बाद भी तुलसी युग की अनेक समस्याएँ आज भी हमारे समाज में विद्यमान हैं।

2. बेकारी की समस्या तुलसी के जमाने में भी थी, उस बेकारी का वर्णन तुलसी के कवित्त के आधार पर कीजिए।

अथवा

तुलसी ने अपने युग की जिस दुर्दशा का चित्रण किया हैं, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- तुलसीदास के युग में जनसामान्य के पास आजीविका के साधन नहीं थे। किसान की खेती चौपट रहती थी। भिखारी को भीख नहीं मिलती थी। दान-कार्य भी बंद ही था। व्यापारी का व्यापार ठप था। नौकरी भी लोगों को नहीं मिलती थी। चारों तरफ बेरोजगारी थी। लोगों को समझ में नहीं आता था कि वे कहाँ जाएँ क्या करें?

3. तुलसी के समय के समाज के बारे में बताइए।
उत्तर- तुलसीदास के समय का समाज मध्ययुगीन विचारधारा का था। उस समय बेरोजगारी थी तथा आम व्यक्ति की हालत दयनीय थी। समाज में कोई नियम-कानून नहीं था। व्यक्ति अपनी भूख शांत करने के लिए गलत कार्य भी करते थे। धार्मिक कट्टरता व्याप्त थी। जाति व संप्रदाय के बंधन कठोर थे। नारी की दशा हीन थी। उसकी हानि को विशेष नहीं माना जाता था।

4. तुलसी युग की आर्थिक स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन र्काजिए।
उत्तर- तुलसी के समय आर्थिक दशा खराब थी। किसान के पास खेती न थी, व्यापारी के पास व्यापार नहीं था। यहाँ तक कि भिखारी को भीख भी नहीं मिलती थी। लोग यही सोचते रहते थे कि क्या करें, कहाँ जाएँ? वे धन-प्राप्ति के उपायों के बारे में सोचते थे। वे अपनी संतानों तक को बेच देते थे। भुखमरी का साम्राज्य फैला हुआ था।

5. लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम क्या सोचने लगे?
उत्तर- लक्ष्मण शक्तिबाण लगने से मूर्चिछत हो गए। यह देखकर राम भावुक हो गए तथा सोचने लगे कि पत्नी के बाद अब भाई को खोने जा रहे हैं। केवल एक स्त्री के कारण मेरा भाई आज मृत्यु की गोद में जा रहा है। यदि स्त्री खो जाए तो कोई बड़ी हानि नहीं होगी, परंतु भाई के खो जाने का कलंक जीवनभर मेरे माथे पर रहेगा। वे सामाजिक अपयश से घबरा रहे थे।

इन्हें भी जाने -

कवित्त- यह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी कहते हैं। कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के 16वें और फिर 15वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

सवैया- चूँकि सवैया वार्णिक छंद है, इसलिए सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण में 23-23 वर्ण होते हैं जो 7 भगण + 2 गुरु (33) के क्रम के होते हैं।


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