सूरदास के पद Class 10 Hindi
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पाठ सार, पाठ-व्याख्या, प्रश्नों के उत्तर, MCQ बहुविकल्पीय प्रश्न
सूरदास के पद पाठ सार Class 10 Surdas ke Pad Summary)
प्रस्तुत पद सूरदास जी द्वारा रचित सूरसागर के भ्रमरगीत से लिया गया है।
प्रस्तुत पद में सूरदास जी ने गोपियों एवं उद्धव के बीच हुए वार्तालाप का वर्णन
किया है। जब श्री कृष्ण मथुरा वापस नहीं आते और उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेश
भेजा देते हैं कि वह वापस नहीं आ पाएंगे , तो गोपियाँ उद्धव
को भाग्यशाली बताती हैं क्योंकि श्री कृष्ण के वापिस न आने पर जितना प्रभाव उन पर
पड़ा है उद्धव उससे कोसों दूर है।
पहले पद में गोपियों की यह शिकायत वाजिब लगती है कि यदि उद्धव कभी स्नेह के धागे से बँधे होते तो वे विरह की वेदना को अनुभूत अवश्य कर पाते। गोपियाँ उद्धव अर्थात श्री कृष्ण के मित्र से व्यंग करते हुए कह रही हैं कि वह बहुत भाग्यशाली है , जो अभी तक श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम के बंधन से अब तक अछूता है। गोपियाँ उद्धव की तुलना कमल के पत्तों व तेल के मटके के साथ करती हैं क्योंकि जिस प्रकार कमल के पत्ते हमेशा जल के अंदर ही रहते हैं , लेकिन उन पर जल के कारण कोई दाग दिखाई नहीं देता और जिस प्रकार तेल से भरी हुई मटकी पानी के मध्य में रहने पर भी उसमें रखा हुआ तेल पानी के प्रभाव से अप्रभावित रहता है , उसी प्रकार श्री कृष्ण के साथ रहने पर भी तुम्हारे ऊपर उनके प्रेम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यही कारण है कि गोपियाँ उद्धव को भाग्यशाली समझती हैं , जबकि वे खुद को अभागिन अबला नारी समझती हैं , जो श्रीकृष्ण के प्रेम में उलझ गई हैं , उनके मोहपाश में लिपट गई हैं। जब श्री कृष्ण मथुरा वापस नहीं आते और उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेश भेजा देते हैं कि वह वापस नहीं आ पाएंगे, तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट – सी गईं और उनकी विरह की व्यथा और बढ़ गई।
दूसरे पद में गोपियों की यह स्वीकारोक्ति कि उनके मन की अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं , कृष्ण के प्रति उनके प्रेम की गहराई को अभिव्यक्त करती है। श्री कृष्ण के गोकुल छोड़ कर चले जाने के उपरांत , गोपियों के मन में स्थित श्री कृष्ण के प्रति प्रेम – भावना मन में ही रह गई है। वे उद्धव से शिकायत करती हैं कि अब वे अपनी यह व्यथा / यह पीड़ा किसे जाकर कहें ? उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है। वे अब तक इसी कारण जी रहीं थी कि श्री कृष्ण जल्द ही वापिस आ जाएंगे और वे सिर्फ़ इसी आशा से अपने तन – मन की पीड़ा को सह रही थीं कि जब श्री कृष्ण वापस लौटेंगे , तो वे अपने प्रेम को कृष्ण के समक्ष व्यक्त करेंगी। सूरदास जी के इस पद में गोपियाँ उद्धव से यह कह रही हैं कि उनके हृदय में श्री कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम है , जो कि किसी योग – संदेश द्वारा कम होने वाला नहीं है। बल्कि इससे उनका प्रेम और भी दृढ़ हो जाएगा।
तीसरे पद में वे उद्धव की योग साधना को कड़वी ककड़ी जैसा बताकर अपने एकनिष्ठ प्रेम में दृढ़ विश्वास प्रकट करती हैं। गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हमारे श्री कृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजों में लकड़ी को बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़े रहता है , उसे कहीं भी गिरने नहीं देता , उसी प्रकार हमने भी मन , वचन और कर्म से नंद पुत्र श्री कृष्ण को अपने ह्रदय के प्रेम – रूपी पंजों से बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़ा हुआ है अर्थात दृढ़तापूर्वक अपने हृदय में बसाया हुआ है। हम तो जागते सोते , सपने में और दिन – रात कान्हा – कान्हा रटती रहती हैं। इसी के कारण हमें तो जोग का नाम सुनते ही ऐसा लगता है , जैसे मुँह में कड़वी ककड़ी चली गई हो।
चौथे पद में गोपियाँ उद्धव को ताना मारती हैं कि श्री कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। जिसके कारण वे और अधिक बुद्धिमान हो गए हैं और अंत में गोपियों द्वारा उद्धव को राजधर्म ( प्रजा का हित ) याद दिलाया जाना सूरदास की लोकधर्मिता को दर्शाता है। गोपियाँ व्यंग्यपूर्वक उद्धव से कहती हैं कि श्री कृष्ण ने राजनीति का पाठ पढ़ लिया है। जो कि मधुकर अर्थात उद्धव के द्वारा सब समाचार प्राप्त कर लेते हैं और उन्हीं को माध्यम बनाकर संदेश भी भेज देते हैं। गोपियाँ कहती हैं कि मथुरा जाते समय श्री कृष्ण उनका मन अपने साथ ले गए थे , जो अब उन्हें वापस चाहिए। वे तो दूसरों को अन्याय से बचाते हैं , फिर उन पर अन्याय क्यों कर रहे हैं ? सूरदास के शब्दों में गोपियाँ कहती हैं कि राजधर्म तो यही कहता है कि प्रजा के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए अथवा न ही सताना चाहिए। इसलिए श्री कृष्ण को योग का संदेश वापस लेकर स्वयं दर्शन के लिए आना चाहिए।
सूरदास के भ्रमरगीत के पद पाठ व्याख्या
पहला पद
ऊधौ
, तुम हौ अति बड़भागी ।
अपरस रहत सनेह तगा तैं , नाहिन मन अनुरागी ।
पुरइनि पात रहत जल भीतर , ता रस देह न दागी ।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि , बूँद न ताकौं
लागी ।
प्रीति – नदी मैं पाउँ न बोरयौ , दृष्टि न रूप
परागी ।
‘ सूरदास ‘ अबला हम भोरी , गुर चाँटी ज्यौं
पागी ||
शब्दार्थ
ऊधौ –
उद्धव ( श्री कृष्ण के सखा / मित्र )
हौ – हो
अति – बहुत , अधिकता , जिसको करने में मर्यादा का उल्लंघन या
अतिक्रमण किया गया हो , सीमा से अधिक किया गया
बड़भागी – भाग्यवान , ख़ुशनसीब
अपरस – अछूता , जिसे किसी ने छुआ न हो , अस्पृश्य , अनासक्त , अलिप्त
सनेह – स्नेह
तगा – धागा / बंधन
नाहिन – नहीं
अनुरागी – प्रेम से भरा हुआ ,
अनुराग करने वाला , प्रेमी , भक्त , आसक्त
पुरइनि पात – कमल का पत्ता
दागी – दाग , धब्बा
ज्यौं – जैसे
माहँ – बीच में
गागरि – मटका
ताकौं – उसको
प्रीति नदी – प्रेम की नदी
पाउँ – पैर
बोरयौ – डुबोया
दृष्टि – नज़र , निगाह
परागी – मुग्ध होना
अबला – बेचारी नारी , जिसमें बल न हो , असहाय , कमज़ोर
भोरी – भोली
गुर चाँटी ज्यौं पागी – जिस
प्रकार चींटी गुड़ में लिपटती है
टीप
Note : – प्रस्तुत पद सूरदास जी द्वारा रचित सूरसागर के भ्रमरगीत से लिया गया हैं।
प्रस्तुत पद में सूरदास जी ने गोपियों एवं उद्धव के बीच हुए वार्तालाप का वर्णन
किया है। जब श्री कृष्ण मथुरा वापस नहीं आते और उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेश
भेजा देते हैं कि वह वापस नहीं आ पाएंगे , तो गोपियाँ उद्धव
को भाग्यशाली बताती हैं क्योंकि श्री कृष्ण के वापिस न आने पर जितना प्रभाव उन पर
पड़ा है उद्धव उससे कोसों दूर है।
व्याख्या
– प्रस्तुत पद में गोपियाँ
उद्धव अर्थात श्री कृष्ण के मित्र से व्यंग करते हुए कह रही हैं कि हे उद्धव ! तुम
बहुत भाग्यशाली हो, जो अभी तक श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी
उनके प्रेम के बंधन से तुम अब तक अछूते हो और न ही तुम्हारे मन में श्रीकृष्ण के
प्रति कोई प्रेम – भाव उत्पन्न हुआ है । गोपियाँ उद्धव की तुलना कमल के पत्तों व
तेल के मटके के साथ करती हुई कहती हैं कि जिस प्रकार कमल के पत्ते हमेशा जल के
अंदर ही रहते हैं , लेकिन उन पर जल के कारण कोई दाग दिखाई
नहीं देता अर्थात् वे जल के प्रभाव से अछूती रहती हैं और इसके अतिरिक्त जिस प्रकार
तेल से भरी हुई मटकी पानी के मध्य में रहने पर भी उसमें रखा हुआ तेल पानी के
प्रभाव से अप्रभावित रहता है , उसी प्रकार श्री कृष्ण के साथ
रहने पर भी तुम्हारे ऊपर उनके प्रेम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उनके अनुसार श्री
कृष्ण के साथ रहते हुए भी उद्धव ने कृष्ण के प्रेम – रूपी दरिया या नदी में कभी
पाँव नहीं रखा और न ही कभी उनके रूप – सौंदर्य पर मुग्ध हुए। यही कारण है कि
गोपियाँ उद्धव को भाग्यशाली समझती हैं , जबकि वे खुद को
अभागिन अबला नारी समझती हैं , जिस प्रकार चींटियाँ गुड़ से
चिपक जाती हैं , ठीक उसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण के
प्रेम में उलझ गई हैं , उनके मोहपाश में लिपट गई हैं।
भावार्थ – प्रस्तुत पद में गोपियाँ उद्धव अर्थात श्री कृष्ण के मित्र से व्यंग कर रही हैं वे उद्धव को भाग्यशाली कहती हैं क्योंकि वे श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम के बंधन से अछूते रहे हैं जबकि गोपियाँ श्री कृष्ण के मोहजाल में ऐसी फस गई हैं जैसे चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं।
दूसरा
पद
मन की मन ही माँझ रही ।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ , नाहीं परत कही ।
अवधि अधार आस आवन की , तन मन बिथा सही ।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि – सुनि , बिरहिनि बिरह
दही ।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं , उत तैं धार
बही ।
‘ सूरदास ’ अब धीर धरहिं क्यौं , मरजादा न लही
।
शब्दार्थ
माँझ – अंदर ही
जाइ – जा कर
अवधि – समय
अधार – आधार , अवलंब , सहारा , नींव
आस – आशा , किसी
कार्य या बात के पूर्ण हो जाने की उम्मीद , इच्छा , विश्वास , उम्मीद , संभावना
आवन – आने की
बिथा – व्यथा , मानसिक या शारीरिक क्लेश , पीड़ा , वेदना , चिंता , कष्ट
जोग सँदेसनि – योग के संदेशों को
बिरहिनि – वियोग में जीने वाली
बिरह दही – विरह की आग में जल रही
हैं
हुती – थीं
गुहारि – रक्षा के लिए पुकारना
जितहि तैं – जहाँ से
उत तैं- उधर से
धार – योग की धारा
धीर – धैर्य
धरहिं – धारण करें / रखें
मरजादा – मर्यादा
लही – रही
टीप
Note :– जब श्री कृष्ण मथुरा वापस
नहीं आते और उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेश भेजा देते हैं कि वह वापस नहीं आ
पाएंगे, तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट – सी गईं और उनकी
विरह की व्यथा और बढ़ गई।
व्याख्या
– जब श्री कृष्ण के मथुरा
वापस नहीं आने का संदेश गोपियाँ सुनती हैं तो गोपियाँ उद्धव से अपनी पीड़ा बताते
हुए कह रही हैं कि हमारे मन की इच्छाएँ हमारे मन में
ही रह गईं , क्योंकि हम श्री कृष्ण से यह कह नहीं पाईं कि हम
उनसे प्रेम करती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि श्री कृष्ण के गोकुल छोड़ कर चले
जाने के उपरांत, उनके मन में स्थित श्री कृष्ण के प्रति
प्रेम – भावना मन में ही रह गई है। वे उद्धव से शिकायत करती हुई कहती हैं कि हे
उद्धव ! अब तुम ही बताओ कि हम अपनी यह व्यथा / यह पीड़ा किसे जाकर कहें ? उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है। अब तक श्री कृष्ण के आने की आशा ही हमारे
जीने का आधार थी। अर्थात वे अब तक इसी कारण जी रहीं थी कि श्री कृष्ण जल्द ही
वापिस आ जाएंगे और वे सिर्फ़ इसी आशा से अपने तन – मन की पीड़ा को सह रही थीं कि जब
श्री कृष्ण वापस लौटेंगे , तो वे अपने प्रेम को कृष्ण के
समक्ष व्यक्त करेंगी। परन्तु जब उन्हें श्री कृष्ण का जोग अर्थात् योग – संदेश
मिला , जिसमें उन्हें पता चला कि वे अब लौटकर नहीं आएंगे ,
तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट – सी गईं , जिस
कारण उनकी विरह की व्यथा और बढ़ गई। अब तो उनके विरह सहने का सहारा भी उनसे छिन गया
अर्थात अब श्री कृष्ण वापस लौटकर नहीं आने वाले हैं और इसी कारण अब उनकी प्रेम –
भावना कभी संतुष्ट होने वाली नहीं है। वे जहाँ से भी श्री कृष्ण के विरह की ज्वाला
से अपनी रक्षा करने के लिए सहारा चाह रही थीं , उधर से ही
योग की धारा बहती चली आ रही है । उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब वह हमेशा के
लिए श्री कृष्ण से बिछड़ चुकी हैं और किसी कारणवश गोपियों के अंदर जो धैर्य बसा हुआ
था, अब वह टूट चुका है। इसी वजह से गोपियाँ वियोग में कह रही
हैं कि श्री कृष्ण ने सारी लोक – मर्यादा का उल्लंघन किया है , उन्होंने हमें धोखा दिया है। तो भला हम धैर्य धारण कैसे कर सकती हैं ?
भावार्थ
– इस पद में गोपियाँ उद्धव से
कहती हैं कि उनके मन की अभिलाषाएँ उनके मन में ही रह गईं , क्योंकि
वे श्री कृष्ण से यह कह नहीं पाईं कि वे उनसे प्रेम करती हैं । अब वे अपनी यह
व्यथा किसे जाकर कहें ? क्योंकि श्री कृष्ण के आने की आशा के
आधार पर उन्होंने अपने तन – मन के दुःखों को सहन किया था। अब उनके द्वारा भेजे गए
जोग अर्थात् योग के संदेश को सुनकर वे विरह की ज्वाला में जल रही हैं। और कहती हैं
कि अब जब श्रीकृष्ण ने ही सभी मर्यादाओं का त्याग कर दिया , तो
भला वे धैर्य धारण कैसे कर सकती हैं ? कहने का तात्पर्य यह
है कि गोपियाँ श्री कृष्ण के मोह में इतनी बांध चुकी हैं कि अब वे श्री कृष्ण से
दूर रह कर जीवन जीना असंभव मानती हैं।
तीसरा
पद
हमारैं
हरि हारिल की लकरी ।
मन क्रम बचन नंद – नंदन उर , यह दृढ़ करि पकरी
।
जागत सोवत स्वप्न दिवस – निसि , कान्ह – कान्ह
जक री ।
सुनत जोग लागत है ऐसौ , ज्यौं करुई ककरी ।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए , देखी सुनी न करी ।
यह तौ ‘ सूर ’ तिनहिं लै सौंपौ , जिनके मन
चकरी ।।
शब्दार्थ
हरि – श्री कृष्ण
हारिल – ऐसा पक्षी , जो अपने पैरों में लकड़ी दबाए रहता है
लकरी – लकड़ी
क्रम – कार्य
नंद – नंदन – नंद का पुत्र अर्थात
श्री कृष्ण
उर – हृदय
दृढ़ – मज़बूती से / दृढ़तापूर्वक
पकरी- पकड़ी
जागत – जागना
सोवत – सोना
दिवस – दिन
निसि – रात
जक री – रटती रहती हैं
जोग – योग का संदेश
करुई – कड़वी
ककरी – ककड़ी / खीरा
सु – वह
ब्याधि – रोग
तिनहिं – उनको
मन चकरी – जिनका मन स्थिर नहीं
रहता
व्याख्या
– इस पद में गोपियाँ उद्धव से
कहती हैं कि हमारे श्री कृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जिस
तरह हारिल पक्षी अपने पंजों में लकड़ी को बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़े रहता है , उसे कहीं भी गिरने नहीं देता , उसी प्रकार हमने भी
मन , वचन और कर्म से नंद पुत्र श्री कृष्ण को अपने ह्रदय के
प्रेम – रूपी पंजों से बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़ा हुआ है अर्थात दृढ़तापूर्वक अपने हृदय
में बसाया हुआ है। हम तो जागते सोते , सपने में और दिन – रात
कान्हा – कान्हा रटती रहती हैं। इसी के कारण हमें तो जोग का नाम सुनते ही ऐसा लगता
है , जैसे मुँह में कड़वी ककड़ी चली गई हो। योग रूपी जिस
बीमारी को तुम हमारे लिए लाए हो , उसे हमने न तो पहले कभी
देखा है , न उसके बारे में सुना है और न ही इसका कभी व्यवहार
करके देखा है। सूरदास गोपियों के माध्यम से कहते हैं कि इस जोग को तो तुम उन्हीं
को जाकर सौंप दो , जिनका मन चकरी के समान चंचल है। अर्थात
हमारा मन तो स्थिर है , वह तो सदैव श्री कृष्ण के प्रेम में
ही रमा रहता है। हमारे ऊपर तुम्हारे इस संदेश का कोई
असर नहीं पड़ने वाला है।
भावार्थ
– सूरदास जी के इन पदों में
गोपियां उद्धव से यह कह रही हैं कि उनके हृदय में श्री कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम
है , जो कि किसी योग – संदेश द्वारा कम होने वाला नहीं है।
उनके ऊपर उद्धव के द्वारा लाए गए संदेश का कुछ असर होने वाला नहीं है। इसलिए
उन्हें इस योग – संदेश की कोई आवश्यकता नहीं है। यह संदेश उन्हें सुनाओ , जिनका मन पूरी तरह से कृष्ण की भक्ति में डूबा नहीं और शायद वे यह संदेश
सुनकर विचलित हो जाएँ। पर उनके ऊपर उद्धव के इस संदेश का कोई असर नहीं पड़ने वाला
है। क्योंकि उनका श्री कृष्ण के प्रति प्रेम अटूट है।
चौथा
पद
हरि
हैं राजनीति पढ़ि आए ।
समुझी बात कहत मधुकर के , समाचार सब पाए ।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही , अब गुरु ग्रंथ
पढ़ाए ।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी , जोग – सँदेस पठाए ।
ऊधौ भले लोग आगे के , पर हित डोलत धाए ।
अब अपनै मन फेर पाइहैं , चलत जु हुते चुराए ।
ते क्यौं अनीति करैं आपुन , जे और अनीति छुड़ाए
।
राज धरम तौ यहै ‘ सूर ’ , जो प्रजा न जाहिं
सताए ।।
शब्दार्थ
पढ़ि
आए – पढ़कर / सीखकर आए
मधुकर – भौरा , गोपियों द्वारा उद्धव के लिए प्रयुक्त संबोधन
पाए – प्राप्त करना
पठाए – भेजा
आगे के – पहले के
पर हित- दूसरों की भलाई के लिए
डोलत धाए – घूमते – फिरते थे
फेर – फिर से
पाइहैं – चाहिए
हुते – थे
आपुन – अपनों पर
अनीति – अन्याय
टीप Note :– इस पद में गोपियाँ उद्धव को
ताना मारती हैं कि श्री कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। जिसके कारण वे और अधिक
बुद्धिमान हो गए हैं और अंत में गोपियों द्वारा उद्धव को राजधर्म ( प्रजा का हित )
याद दिलाया जाना सूरदास की लोकधर्मिता को दर्शाता है।
व्याख्या
– इस पद में गोपियाँ
व्यंग्यपूर्वक उद्धव से कहती हैं कि श्री कृष्ण ने राजनीति का पाठ पढ़ लिया है। जो
कि मधुकर अर्थात उद्धव के द्वारा सब समाचार प्राप्त कर लेते हैं और उन्हीं को
माध्यम बनाकर संदेश भी भेज देते हैं। श्री कृष्ण पहले से ही बहुत चतुर चालाक थे ,
अब मथुरा पहुँचकर शायद उन्होंने राजनीति शास्त्र भी पढ़ लिया है ,
जिस के कारण वे और अधिक बुद्धिमान हो गए हैं , जो उन्होंने तुम्हारे द्वारा जोग ( योग ) का संदेश भेजा है । हे उद्धव !
पहले के लोग बहुत भले थे , जो दूसरों की भलाई करने के लिए
दौड़े चले आते थे। यहाँ गोपियाँ श्री कृष्ण की ओर संकेत कर रही हैं क्योंकि उन्हें
लगता है कि अब श्री कृष्ण बदल गए हैं। गोपियाँ कहती हैं कि मथुरा जाते समय हमारा
मन श्री कृष्ण अपने साथ ले गए थे , जो अब हमें वापस चाहिए।
वे तो दूसरों को अन्याय से बचाते हैं , फिर हमारे लिए योग का
संदेश भेजकर हम पर अन्याय क्यों कर रहे हैं ? सूरदास के
शब्दों में गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव ! राजधर्म तो यही कहता है कि प्रजा के
साथ अन्याय नहीं करना चाहिए अथवा न ही सताना चाहिए। इसलिए श्री कृष्ण को योग का
संदेश वापस लेकर स्वयं दर्शन के लिए आना चाहिए।
भावार्थ :- प्रस्तुत पद में सूरदास जी ने हमें यह बताने का प्रयास किया है कि किस प्रकार गोपियाँ श्री कृष्ण के वियोग में खुद को दिलासा दे रही हैं। सूरदास गोपियों के माध्यम से कह रहे हैं कि श्री कृष्ण ने राजनीति का पाठ पढ़ लिया है। जो कि मधुकर (उद्धव) के द्वारा सब समाचार प्राप्त कर लेते हैं और उन्हीं को माध्यम बनाकर संदेश भी भेज देते हैं। राजधर्म तो यही कहता है कि राजा को प्रजा के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए और न ही सताना चाहिए। इसलिए गोपियाँ चाहती हैं कि श्री कृष्ण को योग का संदेश वापस लेकर स्वयं दर्शन के लिए आना चाहिए।
पदयांश आधारित बहु विकल्पीय प्रश्न MCQ
अपरस राहत स्नेह तगा तें, नाहिन मन अनुरागी।
प्रश्न 1 ऊधौ को बड़भागी किसके द्वारा कहा गया है ?
(b) मथुरा वासियों के द्वारा
(c) गोपियों के द्वारा
(d) स्वयं ऊधौ के द्वारा
उत्तर Answer: (c) गोपियों के द्वारा
प्रश्न 2 अपरस शब्द का क्या अर्थ है ?
(b) अनासक्त
(c) दुर्भाग्यशाली
(d) निर्विकार
उत्तर Answer: (b) अनासक्त
प्रश्न 3 गोपियों ने ऊधौ की तुलना किससे की है ?
(b) तेल की गगरी से
(c) कमल के पत्ते एवं तेल की गगरी दोनों से
(d) सूखी नदी से
उत्तर (c) कमल के पत्ते और तेल की गगरी दोनों से
(b) उपमा
(c) उत्प्रेक्षा
(d) यमक
उत्तर Answer: (a) रूपक
(b) गुर का प्रयोग राधा के लिए, चाँटी का प्रयोग कृष्ण के लिए
(c) गुर का प्रयोग गोपियों के लिए और चाँटी का प्रयोग कृष्ण के लिए
(d) गुर का प्रयोग कृष्ण एवं चाँटी का प्रयोग गोपियों के लिए हुआ है ।
उत्तर Answer: (d) गुर का प्रयोग कृष्ण एवं चाँटी का प्रयोग गोपियों के लिए हुआ है ।
सूरदास के पद प्रश्न – अभ्यास (Question Answers)
प्रश्न
1 – गोपियों द्वारा उद्धव को
भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है ?
उत्तर
– गोपियाँ उद्धव को भाग्यवान
कहते हुए व्यंग्य कसती हैं। उनकी बातों में वक्रोक्ति है। क्योंकि सुनने में तो
उनकी बातें प्रशंसा लग रही हैं किंतु वास्तव में वे कहना चाह रही हैं कि उद्धव
बड़े अभागे हैं क्योंकि वे श्री कृष्ण के सानिध्य में रहते हुए भी , श्री कृष्ण के प्रेम का अनुभव नहीं कर सके। न तो वे श्री कृष्ण के हो सके,
न किसी श्री कृष्ण को अपना बना सके। उन्होंने प्रेम का आनंद जाना ही
नहीं। यह उद्धव का दुर्भाग्य है क्योंकि जो कोई भी श्री कृष्ण के साथ एक क्षण भी
व्यतीत कर लेता है वह कृष्णमय हो जाता है।
प्रश्न
2 – उद्धव के व्यवहार की तुलना
किस – किस से की गई है ?
उत्तर
– उद्धव के व्यवहार की तुलना
दो वस्तुओं से की गई है –
कमल के पत्ते से – जो पानी में रहकर भी गीला नहीं होता है।
तेल में डूबी गागर से – जो तेल के कारण पानी से गीली नहीं होती है।
गोपियाँ
उद्धव की तुलना कमल के पत्तों व तेल के मटके के साथ करती हुई कहती हैं कि जिस
प्रकार कमल के पत्ते हमेशा जल के अंदर ही रहते हैं ,
लेकिन उन पर जल के कारण कोई दाग दिखाई नहीं देता अर्थात् वे जल के
प्रभाव से अछूती रहती हैं और इसके अतिरिक्त जिस प्रकार तेल से भरी हुई मटकी पानी
के मध्य में रहने पर भी उसमें रखा हुआ तेल पानी के प्रभाव से अप्रभावित रहता है ,
उसी प्रकार श्री कृष्ण के साथ रहने पर भी तुम्हारे ऊपर उनके प्रेम
का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
प्रश्न
3 – गोपियों ने किन – किन
उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं ?
उत्तर
– गोपियों ने निम्नलिखित
उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं –
- वे कृष्ण के आने की इंतज़ार
में ही जी रही थीं , किंतु जब श्री कृष्ण मथुरा वापस नहीं आते और उद्धव के
द्वारा मथुरा यह संदेश भेजा देते हैं कि वह वापस नहीं आ पाएंगे, तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट – सी गईं और उनकी विरह की व्यथा और
बढ़ गई।
- वे अब तक इसी कारण जी रहीं
थी कि श्री कृष्ण जल्द ही वापिस आ जाएंगे और वे सिर्फ़ इसी आशा से अपने तन –
मन की पीड़ा को सह रही थीं कि जब श्री कृष्ण वापस लौटेंगे , तो वे अपने
प्रेम को कृष्ण के समक्ष व्यक्त करेंगी।
- वे कृष्ण से रक्षा की गुहार
लगाना चाह रही थीं , वहाँ से प्रेम का संदेश चाह रही थीं। परंतु वहीं से
योग – संदेश की धारा को आया देखकर उनका दिल टूट गया।
- वे
उद्धव की योग साधना को कड़वी ककड़ी जैसा बताकर अपने एकनिष्ठ प्रेम में दृढ़
विश्वास प्रकट करती हैं।
- गोपियाँ श्री कृष्ण को हारिल
पक्षी की लकड़ी के समान मानती हैं। जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजों में लकड़ी
को बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़े रहता है , उसी प्रकार उन्होंने भी मन , वचन
और कर्म से श्री कृष्ण को अपने ह्रदय के प्रेम – रूपी पंजों से बड़ी ही
दृढ़तापूर्वक अपने हृदय में बसाया हुआ है।
- वे श्री कृष्ण से अपेक्षा
करती थीं कि वे उनके प्रेम की मर्यादा को रखेंगे। वे उनके प्रेम का बदला
प्रेम से देंगे। किंतु उन्होंने योग – संदेश भेजकर प्रेम की मर्यादा ही तोड़
डाली।
प्रश्न
4 – उद्धव द्वारा दिए गए योग के
संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया ?
उत्तर
– श्री कृष्ण के मथुरा चले
जाने पर गोपियाँ पहले से विरहाग्नि में जल रही थीं। वे श्री कृष्ण के प्रेम –
संदेश और उनके आने की प्रतीक्षा कर रही थीं। जब श्री कृष्ण मथुरा वापस नहीं आते और
उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेश भेजा देते हैं कि वह वापस नहीं आ पाएंगे, तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट – सी गईं और उनकी विरह की व्यथा और बढ़
गई। श्री कृष्ण के गोकुल छोड़ कर चले जाने के उपरांत , गोपियों
के मन में स्थित श्री कृष्ण के प्रति प्रेम – भावना मन में ही रह गई है। वे उद्धव
से शिकायत करती हैं कि अब वे अपनी यह व्यथा / यह पीड़ा किसे जाकर कहें ? उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है। वे अब तक इसी कारण जी रहीं थी कि श्री कृष्ण
जल्द ही वापिस आ जाएंगे और वे सिर्फ़ इसी आशा से अपने तन – मन की पीड़ा को सह रही
थीं कि जब श्री कृष्ण वापस लौटेंगे , तो वे अपने प्रेम को
कृष्ण के समक्ष व्यक्त करेंगी। उनके हृदय में श्री कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम है ,
जो कि किसी योग – संदेश द्वारा कम होने वाला नहीं है। बल्कि इससे
उनका प्रेम और भी दृढ़ हो जाएगा। उनसे मिलने आने के बजाए जब श्री कृष्ण ने उन्हें
योग साधना का संदेश भेज दिया , जिससे उनकी व्यथा कम होने के
बजाय और भी बढ़ गई। इस तरह उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेशों ने गोपियों की
विरहाग्नि में घी का काम किया।
प्रश्न
5 – ‘ मरजादा न लही ’ के माध्यम
से कौन – सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है ?
उत्तर
– गोपियों का कहना था कि उनके
मन में श्री कृष्ण के प्रति प्रेम था और उन्हें पूर्ण विश्वास था कि प्रेम की
मर्यादा का निर्वाह श्री कृष्ण की ओर से भी वैसे ही होगा जैसे उनकी ओर से हो रहा
है। प्रेम की यही मर्यादा है कि प्रेमी और प्रेमिका दोनों प्रेम को निभाएँ। वे
प्रेम की सच्ची भावना को समझें और उसकी मर्यादा की रक्षा करें। परंतु कृष्ण ने
गोपियों से प्रेम निभाने की बजाय उनके लिए नीरस योग – संदेश भेज दिया , जो कि एक छलावा था , भटकाव था। इसी छल को गोपियों ने
मर्यादा का उल्लंघन कहा है।
प्रश्न
6 – कृष्ण के प्रति अपने अनन्य
प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर – गोपियाँ श्री कृष्ण के
प्रति अपनी अनन्य भक्ति की अभिव्यक्ति निम्नलिखित रूपों में करती हैं –
- वे अपनी स्थिति गुड़ से
चिपटी चींटियों जैसी पाती हैं जो किसी भी दशा में श्री कृष्ण के प्रेम से दूर
नहीं रह सकती हैं।
- वे खुद को अभागिन अबला नारी
समझती हैं , जो
श्रीकृष्ण के प्रेम में उलझ गई हैं , उनके मोहपाश में
लिपट गई हैं।
- वे श्री कृष्ण को हारिल की
लकड़ी के समान मानती हैं। जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजों में लकड़ी को बड़ी ही
ढृढ़ता से पकड़े रहता है , उसी प्रकार
- उन्होंने भी श्री कृष्ण को
अपने ह्रदय के प्रेम – रूपी पंजों से बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़ा हुआ है।
- वे श्री कृष्ण के प्रति मन –
कर्म और वचन से समर्पित हैं।
- वे सोते – जागते , दिन – रात
श्री कृष्ण का जाप करती हैं।
- उन्हें कृष्ण प्रेम के आगे
योग – संदेश किसी कड़वी ककड़ी जैसा लगता है।
प्रश्न
7 – गोपियों ने उधव से योग की
शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है ?
उत्तर
– गोपियों ने उद्धव को कहा है
कि वे योग की शिक्षा ऐसे लोगों को दें जिनके मन स्थिर नहीं हैं। जिनका मन चकरी के
समान चंचल है। जिनके हृदयों में श्री कृष्ण के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है। जिनके
मन में भटकाव है , दुविधा है , भ्रम है
और चक्कर हैं। अर्थात गोपियों द्वारा उनका मन तो स्थिर है , वह
तो सदैव श्री कृष्ण के प्रेम में ही रमा रहता है। उनके ऊपर उद्धव के इस योग –
संदेश का कोई असर नहीं पड़ने वाला है।
प्रश्न
8 – प्रस्तुत पदों के आधार पर
गोपियों का योग – साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर
– सूरदास द्वारा रचित इन पदों
के आधार पर स्पष्ट है कि गोपियाँ योग – साधना को नीरस , व्यर्थ
और अवांछित मानती हैं। उनके अनुसार योग – साधना प्रेम का स्थान नहीं ले सकती। उनके
अनुसार तो योग – साधना उनके प्रेम मार्ग में बाधा है ,
जिस कारण योग – सन्देश सुन कर उनके मन की विरहाग्नि और अधिक बढ़ जाती
है।
इन
पदों में गोपियों की श्री कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम , भक्ति , आसक्ति
और स्नेहमयता प्रकट हुई है। जिस पर किसी अन्य का असर अप्रभावित रह जाता है।
गोपियों पर श्री कृष्ण के प्रेम का ऐसा रंग चढ़ा है कि खुद श्री कृष्ण का भेजा योग
– संदेश उन्हें कड़वी ककड़ी और रोग – व्याधि के समान लगता है , जिसे वे किसी भी दशा में अपनाने को तैयार नहीं हैं।
प्रश्न
9 – गोपियों के अनुसार राजा का
धर्म क्या होना चाहिए ?
उत्तर
– गोपियों के अनुसार ,
राजा का धर्म उसकी प्रजा की हर तरह से रक्षा करना होता है तथा नीति
के अनुसार राजधर्म का पालन करना होता है। एक राजा को तभी अच्छा राजा कहा जाता है
जब वह अनीति का साथ न दे कर नीति का साथ दे। राजा का राजधर्म होना चाहिए कि वह प्रजा को अन्याय से बचाए। उन्हें सताए जाने से रोके।
प्रश्न
10 – गोपियों को कृष्ण में ऐसे
कौन – से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?
उत्तर
– गोपियों को कृष्ण में ऐसे
अनेक परिवर्तन दिखाई दिए , जिनके कारण वे अपना मन श्री कृष्ण
से वापस पाना चाहती हैं , जैसे –
- गोपियों के अनुसार मथुरा जा
कर श्री कृष्ण ने अब राजनीति शास्त्र पढ़ लिया है , जिससे उनके
व्यवहार में छल – कपट आ गया है।
- श्री कृष्ण को अब प्रेम की
मर्यादा का पालन करने का ध्यान नहीं रह गया है।
- श्री कृष्ण अब राजधर्म भूलते
जा रहे हैं।
- दूसरों को अत्याचार से छुड़ाने वाले श्री कृष्ण अब स्वयं अनीति पर उतर आए हैं। इन सभी कारणों के कारण गोपियाँ अब अपने मन को वापिस चाहती हैं , जो उनके अनुसार श्री कृष्ण मथुरा जाते समय अपने साथ ले गए थे।
प्रश्न
11 – गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य
के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया , उनके
वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए ?
उत्तर – गोपियाँ वाक्चतुर हैं। वे बात बनाने में किसी को भी पछाड़ देती हैं। यहाँ तक कि ज्ञानी उद्धव उनके सामने गूँगे होकर खड़े रह जाते हैं। कारण यह है कि गोपियों के हृदय में कृष्ण – प्रेम का सच्चा ज्वार है। यही उमड़ाव , यही जबरदस्त आवेग उद्धव की बोलती बंद कर देता है। सच्चे प्रेम में इतनी शक्ति है कि बड़े – से – बड़ा ज्ञानी भी उसके सामने घुटने टेक देता है। गोपियों की वाक्चातुर्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- स्पष्टता – गोपियाँ अपनी बात
को बिना किसी लाग – लपेट के स्पष्ट कह देती हैं। उद्धव द्वारा लाए गए श्री
कृष्ण के योग – सन्देश को भी बिना किसी हिचकिचाहट के मना कर देती हैं।
- व्यंग्यात्मकता – गोपियाँ
व्यंग्य करने में प्रवीण हैं। उद्धव की भाग्यहीनता को भाग्यवान बताते हुए वे
कहती हैं कि उद्धव से बड़ा भाग्यशाली कौन हो सकता है जो श्री कृष्ण के साथ
रहते हुए भी उनके प्रेम से अछूता रह गया।
- सहृदयता – उनकी सहृदयता उनकी
बातों में स्पष्ट झलकती है। वे कितनी भावुक हैं इसका ज्ञान तब होता है जब वे
भावुक हो कर कहती हैं कि वे अपनी प्रेम – भावना को श्री कृष्ण से नहीं कह
पाईं।
- तानों द्वारा – गोपियाँ अपने
तानों द्वारा उद्धव को चुप करवा देतीं हैं। उद्धव के पास उनका कोई जवाब नहीं
होता।
प्रश्न
12 – संकलित पदों को ध्यान में
रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए ?
उत्तर
– सूरदास के पदों के आधार पर
भ्रमरगीत की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- इसमें ब्रजभाषा की कोमलता , मधुरता और
सरसता के दर्शन होते हैं।
- सूरदास के भ्रमरगीत में विरह
व्यथा का मार्मिक वर्णन है।
- इस गीत में सगुण ब्रह्म की
सराहना है।
- इसमें गोपियों के माध्यम से
उपालंभ , वाक्पटुता ,
व्यंग्यात्मकता का भाव मुखरित हुआ है।
- गोपियों का श्री कृष्ण के
प्रति एकनिष्ठ प्रेम अथवा अनन्य प्रेम का प्रदर्शन है।
- उद्धव के ज्ञान पर गोपियों
के वाक्चातुर्य और प्रेम की विजय का चित्रण है।
- पदों में गेयता और
संगीतात्मकता का गुण है ।
बहुविकल्पीय प्रश्न MCQ
१. विष्णु
२. शिव
३. श्री कृष्ण
४. ब्रह्मा
उत्तर: श्री कृष्ण
प्रश्न 2. गोपिया किस पर व्यंग्य कर रही हैं:
१. उद्धव पर
२. श्री कृष्ण पर
३. कवि पर
४. स्वयं पर
उत्तर: उद्धव पर
प्रश्न 3. गोपियों को किस तरह की पीड़ा सहन करनी पड़ रही है:
१. प्रेम पीड़ा
२. हृदय पीड़ा
३. वियोग पीड़ा
४. उपरोक्त सभी
उत्तर: प्रेम पीड़ा
प्रश्न 4. उद्धव किसके पास रहकर भी उनके प्रेम में मोहित नहीं हुए।
१. माता पिता
२. परिवार
३. दोस्तों
४. श्री कृष्ण
उत्तर: श्री कृष्ण
प्रश्न 5. उद्धव कृष्ण के प्रेम से उस तरह छूते हैं जैसे ……….. के पत्ते कमल के भीतर रहकर भी जल्द से अछूते रहते हैं।
१. गुलाब
२. आम
३. सेब
४. कमल
उत्तर: कमल
प्रश्न 6. तेल में डूबी हुई गगरी को क्या स्पर्श नहीं कर पाता:
१. जल
२. कृष्ण का प्रेम
३. गोपियां
४. उद्धव
उत्तर: जल
प्रश्न 7. कौन गुड से लिपट कर अपना प्राण त्याग देता है:
१. गोपियां
२. चिंटिया
३. लोग
४. कवि
उत्तर: चिंटिया
प्रश्न 8. गोपिया मन की …….. को मन में ही दबाने की कोशिश करती रहती हैं।
१. व्यथा
२. भाव
३. बात
४. आवाज
उत्तर: व्यथा
प्रश्न 9. श्री कृष्ण ने अपने स्थान पर, किसको गोपियों से मिलने भेज दिया था।
१. सैनिक को
२. पत्र
३. कबूतर
४. उद्धव
उत्तर: उद्धव
प्रश्न10. उद्धव आगमन ने गोपियों की वीर अग्नि को:
१. शांत कर दिया।
२. प्रज्वलित कर दिया।
३. कुछ नहीं किया।
४. उपरोक्त कोई भी नहीं।
उत्तर: प्रज्वलित कर दिया
प्रश्न11. गोपियों की दशा ……….. पक्षी की तरह हो गई है?
१. बेचारे
२. एक
३. मारे
४. हारिल
उत्तर: हारिल
प्रश्न12. कौन पक्षी सदैव एक पंजे पर लकड़ी को पकड़े हुए रहता है।
१. मोर
२. कौआ
३. हारिल
४. चिड़िया
उत्तर: हारिल
प्रश्न13. गोपियों को उद्धव द्वारा दिया गया योग का ज्ञान ………….. के समान लगता है।
१. कड़वी-ककड़ी
२. मिट्ठी-ककड़ी
३. खट्टे रस
४. मीठे फल
उत्तर: कड़वी-ककड़ी
प्रश्न14. योग का क्या कार्य है?
१. बीमारियां दूर करना
२. मन को स्वस्थ करना
३. मन को एकाग्र करना
४. उपरोक्त सभी
उत्तर: उपरोक्त सभी
प्रश्न15. गोपियों को किस प्रकार के उपदेश की जरूरत नहीं है।
१. योग का उपदेश
२. शांति का उपदेश
३. ज्ञान का उपदेश
४. कोई भी नहीं
उत्तर: योग का उपदेश
प्रश्न16. गोपियों के अनुसार श्री कृष्ण ने क्या पढ़ लिया है।
१. विज्ञान
२. राजनीति
३. उपदेश
४. शास्त्र
उत्तर: राजनीति
प्रश्न17. गोपियों को लगता है कि अब उन्हें कृष्ण से अपना मन फेर लेना चाहिए?
१. सही
२. गलत
उत्तर: सही
सूरदास के पद
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. गोपियों का मन चुराकर कौन ले गया था?
क. उद्धव ख. अक्रूर
ग. नंद घ. श्रीकृष्ण
उत्तर- घ. श्रीकृष्ण
2. सूरदास के अनुसार सच्चा राज धर्म क्या है?
क. प्रजा का हित करना ख. प्रजा से कर लेना
ग. अनीति दूर करना घ. राज्य प्राप्त करना
उत्तर= क. प्रजा का हित करना
3. सूरदास के उपास्य देव कौन थे?
क. श्रीकृष्ण ख. श्रीराम
ग. विष्णु घ. निर्गुण ईश्वर
उत्तर= क. श्रीकृष्ण
4. श्रीकृष्ण के मित्र का क्या नाम है, जो गोपियों को योग का संदेश देता है?
क. बलराम ख. नंद
ग. उद्धव घ. अक्रूर
उत्तर= ग. उद्धव
5. उद्धव को 'बड़भागी' किसने कहा है?
क. यशोदा माता ने ख. नंद ने
ग. कंस ने घ. गोपियों ने
उत्तर= घ. गोपियों ने
6. गोपियों ने किसके प्रति अपना प्रेमभाव व्यक्त किया है?
क. श्रीराम के ख. निर्गुण ईश्वर के
ग. श्रीकृष्ण के घ. उद्धव के
उत्तर= ग. श्रीकृष्ण के
7. 'प्रीति-नदी' किसके लिए प्रयोग किया गया है?
क. ऊद्धव के लिए ख. यशोदा के लिए
ग. नंद के लिए घ. श्रीकृष्ण के लिए
उत्तर= घ. श्रीकृष्ण के लिए
8. प्रथम पद में कौन अपने-आपको भोली और अबला समझती हैं?
क. देवकी ख. यशोदा
ग. गोपियाँ घ राधा
उत्तर= ग. गोपियाँ
9. 'गुर चाँटी ज्यौं पागी'-इस पंक्ति में 'गुर' अर्थात् गुड़ किसे कहा गया है?
क. श्रीकृष्ण को ख. उद्धव को
ग. श्रीकृष्ण के प्रेम को घ. गोपियों को
उत्तर= ग. श्रीकृष्ण के प्रेम को
10. 'मन की मन ही माँझ रही' का अर्थ है?
क. मन की दृढ़ता ख. मन की बात मन में ही रहना
ग. मन का भेद घ. मन का पाप
उत्तर= ख. मन की बात मन में ही रहना
11. गोपियाँ कौन-सी बात किसे बताना चाहती थीं?
क. अपने मन की बात श्रीकृष्ण को ख. अपने मन की बात उद्धव को
ग. संसार के व्यवहार की बात अक्रूर को घ. समाज की बात नंद को
उत्तर= क. अपने मन की बात श्रीकृष्ण को
12. उद्धव गोपियों को कौन-सा संदेश देता है?
क. प्रेम का ख. योग-साधना का
ग. मोक्ष-प्राप्ति का घ. भक्ति का
उत्तर= ख. योग-साधना का
13. गोपियों ने हरि (श्रीकृष्ण) की तुलना किससे की है?
क. गिद्ध से ख. बाज से
ग. हारिल से घ. कबूतर से
उत्तर= ग. हारिल से
14: गोपियाँ सोते जागते रात-दिन किसका ध्यान करती हैं?
क. श्रीकृष्ण का ख. उद्धव का
ग. कंस का घ. बलराम का
उत्तर= क. श्रीकृष्ण का
15. गोपियाँ 'कड़वी ककड़ी' किसे कहती हैं?
क. ककड़ी को ख. श्रीकृष्ण को
ग. यशोदा को घ. उद्धव द्वारा दिए गए योग संदेश को
उत्तर=घ. उद्धव द्वारा दिए गए योग संदेश को
16. 'मन चकरी' से क्या अभिप्राय है?
क. मन की चालाकी ख. मन का चक्र
ग. मन की अस्थिरता घ. मन की स्थिरता
उत्तर= ग. मन की अस्थिरता
17. 'सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए' पंक्ति में 'ब्याधि' किसे कहा गया है?
क. योग साधना को ख. भक्ति संदेश को
ग. श्रीकृष्ण को घ. विरह को
उत्तर= क. योग साधना को
18. गोपियों के अनुसार किसने राजनीति की शिक्षा प्राप्त की है?
क. कंस ने ख. नंद ने
ग. श्रीकृष्ण ने घ. ऊधौ ने
उत्तर= ग. श्रीकृष्ण ने
19. 'मधुकर' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
क., भ्रमर के लिए ख. श्रीकृष्ण के लिए
ग. नंद के लिए घ. उद्धव के लिए
उत्तर= घ. उद्धव के लिए
20. गोपियों के अनुसार पहले से ही चतुर कौन था? .
क. बलराम ख. श्रीकृष्ण
ग. कंस घ. उद्धव
उत्तर= ख. श्रीकृष्ण
21. कवि सूरदास के
गुरु कौन थे?
क. शंकराचार्य ख.
वल्लभाचार्य
ग. कुंभनदास घ.
हरिदास
उत्तर= ख. वल्लभाचार्य
22. सूरदास ने किस भाषा में साहित्य की रचना की है?
क. अवधी ख.
मैथिलि
ग. ब्रज घ.
भोजपुरी
उत्तर= ग. ब्रज
23. काव्यग्रंथ ‘सूरसागर’ के जिस भाग में उद्धव गोपियों को
योगसंदेश देते है वह भाग किस नाम से जाना जाता है?
क. भ्रमर गीत ख. योग संदेश
ग. कर्मसंदेश घ.
राजसंदेश
उत्तर= क. भ्रमर गीत
24. गोपियों को उद्धव योग संदेश देने आये I गोपियों ने उनपर
किसके बहाने व्यंग्य बाण छोड़े?
क. तितली ख.
कौवा
ग. भ्रमर घ.
ततेया
उत्तर= ग. भ्रमर
25. ‘पुरइनि पात रहत जल भीतर , ता रस देह ना दागी’ प्रस्तुत
पंक्ति में कमल के पत्ते की क्या विशेषता बताई गई है?
क. पानी के संपर्क में रहने से कमल का पत्ता गल जाता है.
ख. कमल के पत्ते पर पानी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
ग. पानी में रहकर पत्ता गहरे रंग का हो जाता है.
घ. पानी में रहने से पत्ते का आकार छोटा हो जाता है.
उत्तर= ख. कमल के पत्ते पर पानी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
26. ज्यों जल माहें तेल की गागरि, बूँद न ताकौ लागी .’
प्रस्तुत पंक्ति में पानी की बूँद की कौन-सी विशेषता बताई गई है?
क. पानी की बूँद तेल में डूब जाती है. ख. पानी की
बूँद तेल लगी मटकी पर टिकती नहीं.
ग. पानी की बूँद पर तेल का कोई असर नहीं होता. घ. उपरोक्त सभी.
उत्तर= ख. पानी की बूँद तेल लगी मटकी पर टिकती नहीं.
27. ‘प्रीति नदी मैं पाऊं न बोरयो, दृष्टि न रूप
परागी.’ इस पंक्ति में किसने प्रीति रूपी
नदी में पैर नहीं डुबोया?
क. उद्धव ने ख.
सूरदास ने
ग. सुदामा ने घ.
श्रीकृष्ण ने
उत्तर= क. उद्धव ने
28. ‘सूरदास अबला हम भोरी, गुर चांटी ज्यो पागी II’ पंक्ति
में गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को बताते हुए अपनी स्थिति किसके समान
बताई है?
क. गुड के चूरे के समान ख.
गुड पर भिनभिनाती मक्खी के समान
ग. गुड से चिपकी चींटी के समान घ. इनमें से कोई नहीं
उत्तर= ग. गुड से चिपकी चींटी के समान
29. 'मन की मन ही माँझ रहीI’ इस
पंक्ति में किसके मन की बात मन रह गई?
क. उद्धव की ख.
गोपियों की
ग. सुदामा की घ.
नंद-नंदन की
उत्तर= ख. गोपियों की
30. 'मन की मन ही माँझ रहीI’- पद
के अनुसार गोपियों ने किस उम्मीद से तन-मन की पीड़ा सहन की?
क. उद्धव के आने की ख.
कृष्ण के साथ मथुरा जाने की
ग. कृष्ण के आने की घ.
कृष्ण का संदेश मिलने की
उत्तर= ग. कृष्ण के आने की
31. ‘अब जोग संदेशनी सुनि- सुनि , बिरहिनि बिरह दही’-
उपर्युक्त पंक्ति में किस अलंकार का प्रयोग हुआ है?
क. उपमा ख.
यमक
ग. अनुप्रास घ.
श्लेष
उत्तर= ग. अनुप्रास
32. ‘चाहति हुतीं गुहारि जितहीं तै, उत तै धार बहीI’
प्रस्तुत पंक्ति के अनुसार गोपियाँ उद्धव को उलाहना देते हुए कहती है कि वे जिससे
उम्मीद कर रही थी कि उनकी रक्षा की जाएगी , वहीँ से धार बह रही थीI वहां किसकी धार
बह रही थी?
क. प्रेम की ख.
योग की
ग. कर्म की घ.
ख और ग दोनों की
उत्तर= ख. योग की
33. ‘सूरदास अब धीर धरहिं क्यों, मरजादा न लहीI’ उपर्युक्त पंक्ति में गोपियाँ कहती है कि अब मर्यादा क्यों धारण करे जब मर्यादा का पालन नहीं किया? किसने मर्यादा का पालन नहीं किया?
क. कृष्ण ने ख.
राधा ने
ग. उद्धव ने घ.
गोपियों ने
उत्तर= क. कृष्ण ने
34. ‘हमारे हरि हारिल की लकरीI ‘- इसमें हारिल पक्षी के
विषय में बताया गया है जो अपने पंजों में लकड़ी पकडे रखता हैI गोपियों ने अपने
प्रभु को हरिल पक्षी के समान बताया हैI इससे उनका कृष्ण के प्रति कैसा प्रेम दिखता
है-
क. एकनिष्ठ प्रेम ख.
चंचल प्रेम
ग. अस्थायी प्रेम घ.
ख और ग दोनों
उत्तर= क. एकनिष्ठ प्रेम
35. गोपियाँ जागते –सोते , सपने में, दिन-रात किसका नाम
जपती है?
क. राधा ख.
उद्धव
ग. कृष्ण घ.
बलराम
उत्तर= ग. कृष्ण
36. गोपियों को योग संदेश किसके सामान लगता है?
क. आम जैसा मीठा ख.
माखन जैसा कोमल
ग. सागर के पानी जैसा खारा घ.
कड़वी ककड़ी के समान
उत्तर= घ. कड़वी ककड़ी के समान
37. गोपियन ने योग संदेश किसे देने को कहा है?
क. जिनके मन चंचल है ख.
जिनके मन चंचल नहीं है
ग. जिनके मन भगवान के चरणों में नहीं लगे है घ. उपरोक्त सभी
उत्तर= क. जिनके मन चंचल है
38. गोपियों ने पहले के लोगों को भला बताया हैI इसके पीछे
क्या कारण दिया है?
क. जिनके मन चंचल है ख.
अपने काम से काम रखना
ग. भोला स्वभाव होना घ.
चालाक होना
उत्तर= क. जिनके मन चंचल है
39. निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द कृष्ण का पर्यायवाची नहीं है-
क. कान्हा ख.
माधव
ग. हलधर घ.
मुरलीधर
उत्तर= ग. हलधर
40. गोपियों को अब
अपना मन वापस मिलने की आशा हैI उनका मन अपने साथ कौन ले गया था?
क. अर्जुन ख.
उद्धव
ग. कृष्ण घ.
बलराम
उत्तर= ग. कृष्ण
41. निम्नलिखित में से क्या भ्रमर का पर्यायवाची है-
क. माधव ख.
मधुप
ग. माधुर्य घ.
मधुर
उत्तर= ख. मधुप
42.गोपियाँ किससे गुहार लगाना चाहती थी?
क. राम से ख.
प्रभु से
ग. उद्धव से घ.
कृष्ण से
उत्तर= घ. कृष्ण से
43. गोपियों ने कृष्ण को किस प्रकार धारण किया था?
क. मन से ख.
कर्म से
ग. वचन से घ.
उपरोक्त सभी तरह से
उत्तर= घ. उपरोक्त सभी तरह से
44.’जकरी ‘ शब्द का क्या अर्थ है?
क. व्यर्थ होना ख.
रटना
ग. जर्जर होना घ.
दुखी होना
उत्तर= ख. रटना
45.गोपियों के अनुसार सच्चा राजधर्म क्या है?
क. प्रजा का पालन करना ख.
प्रजा के सुखों का ध्यान रखना
ग. प्रजा को बिलकुल न सताना घ. उपर्युक्त सभी
उत्तर= घ. उपर्युक्त सभी
46. सूरदास के साहित्य में किस रस की प्रधानता है?
क. वात्सल्य रस ख.
वीर रस
ग. भयानक रस घ.
हास्य रस
उत्तर= क. वात्सल्य रस
47. सूरदास के साहित्य में किस भाषा की प्रमुखता है?
क. अवधी भाषा ख.
राजस्थानी
ग. ब्रज भाषा घ.
बुन्देली
उत्तर= ग. ब्रज भाषा
48. गोपियों ने उद्धव को बडभागी क्यों कहा है?
क. ऐसा कहकर गोपियों ने उद्धव पर व्यंग्य किया है
ख. क्योंकि उद्धव बहुत ही भाग्यवान है
ग. उद्धव बहुत ज्ञानी थे और गोपियाँ उनके ज्ञान का लोहा
मानती थी
घ. वे कृष्ण के सखा थे , इसलिए उनको बडभागी कहा है
उत्तर= क. ऐसा कहकर गोपियों ने उद्धव पर व्यंग्य किया है
49. गोपियों ने उद्धव के अनासक्त (अलग) रहने की तुलना किससे
की है?
क. कमल के पत्ते से ख.
तेल की मटकी से
ग. कमल के पत्ते और तेल की मटकी दोनों से घ.
इनमें से कोई नहीं
उत्तर= ग. कमल के पत्ते और तेल की मटकी दोनों से
50. ‘प्रीति-नदी’ में कौन-सा अलंकार है?
क. यमक ख.
रूपक
ग. अनुप्रास घ.
उपमा
उत्तर= ख. रूपक
51. ‘गुर चांटी ज्यो पागी’ में गुर (गुड) से किसकी तुलना
हुई है और चांटी (चींटी) से किसकी?
क. गुड से उद्धव की तुलना हुई है और चींटी से गोपियों की
ख. गुड से कृष्ण की
तुलना हुई है और चींटी से राधा की
ग. गुड से ब्रजवासियों
की तुलना हुई है और चींटी से कृष्ण
की
घ. गुड से कृष्ण की तुलना हुई है और चींटी से गोपियों की
उत्तर= घ. गुड से कृष्ण की तुलना हुई है और चींटी से गोपियों की
52. गोपियों ने स्वयं को ‘भोरी’ क्यों कहा है?
क. वे मूर्ख थी ख.
वे छल-कपट और चतुराई से दूर थी
ग. वे उद्धव की बैटन में आ गई थी घ. वे किसी का कहना नहीं मानती थी
उत्तर= ख. वे छल-कपट और चतुराई से दूर थ
53. समुझी बात कहत ................ के, समाचार सब पाएI
निम्नलिखित में से रिक्त स्थान की उचित
शब्द से पूर्ति कीजिए-
क. दिनकर ख.
मधुकर
ग. उद्धव घ.
कृष्ण
उत्तर= ख. मधुकर
54. उद्धव की बडभागी किसके द्वारा कहा गया है?
क. कृष्ण के द्वारा ख.
मथुरा वासियों के द्वारा
ग. गोपियों के द्वारा घ.
स्वयं उद्धव के द्वारा
उत्तर= ग. गोपियों के द्वारा
55. ‘अपरस’ शब्द का क्या अर्थ है-
क. सूखा ख.
अनासक्त
ग. दुर्भाग्यशाली घ.
निर्विकार
उत्तर= ख. अनासक्त
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