बादल राग सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, कविता – शब्दार्थ,भावार्थ, महत्त्वपूर्ण प्रश्न
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कवि परिचय
जीवन परिचय- महाप्राण कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन 1899 में बंगाल राज्य के महिषादल नामक रियासत के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी मूलत: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे। जब निराला तीन वर्ष के थे, तब इनकी माता का देहांत हो गया। इन्होंने स्कूली शिक्षा अधिक नहीं प्राप्त की, परंतु स्वाध्याय द्वारा इन्होंने अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। पिता की मृत्यु के बाद ये रियासत की पुलिस में भर्ती हो गए। 14 वर्ष की आयु में इनका विवाह मनोहरा देवी से हुआ। इन्हें एक पुत्री व एक पुत्र प्राप्त हुआ। 1918 में पत्नी के देहांत का इन पर गहरा प्रभाव पड़ा। आर्थिक संकटों, संघर्षों व जीवन की यथार्थ अनुभूतियों ने निराला जी के जीवन की दिशा ही मोड़ दी। ये रामकृष्ण मिशन, अद्वैत आश्रम, बैलूर मठ चले गए। वहाँ इन्होंने दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया तथा आश्रम के पत्र ‘समन्वय’ का संपादन किया।सन 1935 में इनकी पुत्री सरोज का निधन हो गया। इसके बाद ये टूट गए तथा इनका शरीर बीमारियों से ग्रस्त हो गया। 15 अक्तूबर, 1961 ई० को इस महान साहित्यकार ने प्रयाग में सदा के लिए आँखें मूंद लीं।
साहित्यिक रचनाएँ- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ प्रतिभा-संपन्न व प्रखर साहित्यकार थे। इन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर लेखनी चलाई।
इनकी रचनाएँ हैं-
(i) काव्य- संग्रह-परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना आदि।
(ii) उपन्यास- अलका, अप्सरा, प्रभावती, निरुपमा, काले कारनामे आदि।
(iii) कहानी- संग्रह-लिली, सखी, चतुरी चमार, अपने घर।
(iv) निबंध- प्रबंध-पद्य, प्रबंध प्रतिभा, चाबुक आदि।
(v) नाटक- समाज, शंकुतला, उषा–अनिरुद्ध।
(vi) अनुवाद- आनंद मठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेशनंदिनी, रजनी, देवी चौधरानी।
(vii) रेखाचित्र- कुल्लीभाट, बिल्लेसुर बकरिहा।
(viii) संपादन-‘समन्वय’ पत्र तथा ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन।
काव्यगत विशेषताएँ- निराला जी छायावाद के आधार स्तंभ थे। इनके काव्य में छायावाद, प्रगतिवाद तथा प्रयोगवादी काव्य की विशेषताएँ मिलती हैं। ये एक ओर कबीर की परंपरा से जुड़े हैं तो दूसरी ओर समकालीन कवियों की प्रेरणा के स्रोत भी हैं। इनका यह विस्तृत काव्य-संसार अपने भीतर संघर्ष और जीवन, क्रांति और निर्माण, ओज और माधुर्य, आशा-निराशा के द्वंद्व को कुछ इस तरह समेटे हुए है कि वह किसी सीमा में बँध नहीं पाता। उनका यह निर्बध और उदात्त काव्य-व्यक्तित्व कविता और जीवन में फ़र्क नहीं रखता। वे आपस में घुले-मिले हैं। उनकी कविता उल्लास-शोक, राग-विराग, उत्थान-पतन, अंधकार-प्रकाश का सजीव कोलाज है। भाषा-शैली-निराला जी ने अपने काव्य में तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। बँगला भाषा के प्रभाव के कारण इनकी भाषा में संगीतात्मकता और गेयता का गुण पाया जाता है। प्रगतिवाद की भाषा सरल, सहज तथा बोधगम्य है। इनकी भाषा में उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेजी के शब्द इस तरह प्रयुक्त हुए हैं मानो हिंदी के ही हों।
बादल राग कविता की व्याख्या
काव्यांश 1 –तिरती हैं समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
जगके दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
उर में पृथ्वी के, आशावों से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
कठिन शब्द –
तिरती – तैरती, तैरना
समीर – वायु, हवा, सुबह की खुशबू
सागर – समुद्र, जलधि, उदधि
अस्थिर – क्षणिक, जो स्थिर न हो, डाँवाडोल, चंचल
दग्ध – जला या जलाया हुआ, भस्मीकृत
निर्दय – बेदर्द, जिसके मन में दया न हो, दयाहीन, निष्ठुर, क्रूर, बेरहम
विप्लव – विनाश, उपद्रव, उत्पात, उथल-पुथल, विपदा, विपत्ति, आफ़त
प्लावित – बाढ़ से ग्रस्त, डूबा हुआ (बाढ़ में), जलमग्न, जिसपर बाढ़ का पानी चढ़ आया हो, जल से व्याप्त, तैराया हुआ
माया – खेल, दौलत, भ्रम, इंद्रजाल, जादू, कपट, धोखा
रण – युद्ध, लड़ाई, जंग
तरी – नाव, नौका
आकांक्षा – कामना, अभिलाषा, इच्छा, चाह
गर्जन – गरजना, बादलों की गड़गड़ाहट, गुस्सा, युद्ध
सजग – जागरूक, सचेत, सावधान
सुप्त – सोया हुआ, निद्रित, रुका, थमा या दबा हुआ
अंकुर – बीज से निकला नन्हा पौधा, कोंपल, पल्लव, कली
उर – हृदय
नवजीवन – नया जीवन
काव्यांश 2 –
फिर-फिर
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार-
शस्य अपार,
कठिन शब्द –
वर्षण – वृष्टि, वर्षा, बारिश
मूसलधार – भयंकर या भीषण, जोरों की बारिश
हृदय थामना – भयभीत होना
घोर – भयंकर, भयावह, विकराल, डरावना
वज्र-हुंकार – वज्रपात के समान भयंकर आवाज़
अशनि-पात – बिजली गिरना
शापित – शाप से ग्रस्त, शाप दिया हुआ
उन्नत – बड़ा, उच्च, उठा हुआ
शत-शत -सैकड़ो, सौ का संग्रह
विक्षप्त – घायल, पागलपन, उन्माद
हत – मरे हुए, जो मार डाला गया हो, वध किया हुआ
अचल – स्थिर, गतिहीन, पर्वत
गगन-स्पर्शी – आकाश को छूने वाला
स्पर्द्धा-धीर – आगे बढ़ने की होड़ करने हेतु बेचैनी
लघुभार – हलके
शस्य – हरियाली, अन्न, गल्ला, खाद्यान्न, धान्य
अपार – बहुत, जिसका पार न हो, अनंत, असीम
रव – शोर, शब्द, आवाज़
काव्यांश 3 –
अट्टालिका नहीं है रे
आंतक–भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लवन,
सदा छलकता नीर,
शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष हैं, क्षुब्ध तोष
अंगना-अगा सो लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।
कठिन शब्द –
आतंक-भवन – भय का निवास
यक – कीचड़, अकेला, एक
प्लावन – बाढ़, जल-प्रलय
क्षुद्र – तुच्छ, नगण्य, महत्वहीन, दरिद्र
प्रफुल- खिला हुआ, प्रसन्न, विकसित
जलज – कमल, जल में उत्पन्न होने वाला, जो जल में उत्पन्न हो
नीर – पानी, जल
शोक – दुख, गम, दर्द, दुखड़ा
शैशव – बचपन, लड़कपन
सुकुमार – कोमल, कोमलता, नर्मी, मुलायमत
रुदध – रुका हुआ
कोष – ख़ज़ाना, भंडार, धन-दौलत रखने की जगह
क्षुब्ध – क्रुद्ध, चिंतित, भयभीत
तोष – शांति, आनंद, प्रसन्नता, ख़ुशी
अंगना – पत्नी
अंग – शरीर
अंक – गोद
वज्र-गर्जन – वज्र के समान गर्जन
त्रस्त – पीड़ित, जो कष्ट में हो, डरा हुआ, भयभीत
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ से महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है। कवि कहता है कि पूँजीपतियों के द्वारा बनाए गए ऊँचे-ऊँचे भवन केवल भवन नहीं हैं बल्कि ये तो गरीबों में भय पैदा करने वाले भवन हैं। क्योंकि पूंजीपति लोगों ने इन्हें गरीबों का शोषण करके ही बनाया है। कवि कहता है कि सदैव कीचड़ पर ही अत्यधिक वर्षा के कारण होने वाली बाढ़ का प्रभाव पड़ता है। अर्थात भयंकर जल-प्रलय सदैव कीचड़ पर ही होता है। यही जल जब कमल की कोमल पंखुड़ियों पर पड़ता है तो वह और अधिक विकसित हो उठती है। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रलय से पूँजीपति वर्ग ही प्रभावित होता है। जबकि निम्न वर्ग में बच्चे कोमल शरीर के होते हैं तथा रोग व कष्ट की स्थिति में भी हमेशा हँसते-मुस्कराते रहते हैं। पूँजीपतियों ने उनके आर्थिक साधनों व् धन पर कब्जा कर रखा है। इतना धन इकट्ठा कर लेने पर भी उन्हें शांति प्राप्त नहीं हुई है। अपनी प्रियाओं की गोद में लिपटे हुए होने के बावजूद भी बादलों की गर्जना अर्थात क्रान्ति की गूँज सुनकर काँप रहे हैं। उन्होंने क्रांति की गर्जन सुनकर के भय से अपनी आँखें बँद की हुई है तथा मुँह को छिपाए हुए हैं।
काव्यांश 4 –
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
चूस लिया हैं उसका सार,
ऐ जीवन के पारावार!
जीर्ण – पुरानी, शिथिल, बदहाल, अत्यधिक पुराना
बहु – भुजा, जिसमें अनेक कोण हों, बहुभुज, कई तरह से होने वाला
शीण – कमजोर
कृषक – किसान, खेतिहर, हलवाहा
अधीर – व्याकुल, धैर्यहीन, उतावला, आतुर
विप्लव – विनाश, उपद्रव, उत्पात, उथल-पुथल, विपदा, विपत्ति, आफ़त
सार – प्राण, तत्व, सत्त
हाड़-मात्र – केवल हड्डयों का ढाँचा
यारावार – समुद्र
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ से
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है।
कवि बादल अर्थात क्रांतिकारी से कहता है कि हे विप्लव के वीर! शोषण के कारण किसान
की भुजाएँ बलहीन हो गई हैं,
उसका शरीर कमजोर हो
गया है। वह बैचेन हो कर तुझे बुला रहा है। कहने का अभिप्राय यह है कि शोषित वर्ग
शोषण के कारण अत्यधिक कमजोर हो गया है और अब वह शोषण को ख़त्म करने के लिए बैचेन
है। शोषकों ने शोषित वर्ग की जीवन-शक्ति छीन ली है अर्थात उनका रक्त रूपी सार
तत्त्व चूस लिया है। अब वह केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। कवि बादल
अर्थात क्रांतिकारियों से कहता है कि हे जीवन-दाता! तुम बरस कर किसान की गरीबी दूर
करो अर्थात क्रांति करके शोषण को समाप्त करो।
पाठ्यपुस्तक
पर आधारित प्रश्न –
प्रश्न
1 – ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में
‘दुख की छाया’ किसे कहा गया हैं और क्यों?
उत्तर –
कवि ने ‘अस्थिर सुख पर दुख
की छाया’ पंक्ति में ‘दुख की छाया’ मानव-जीवन में आने वाले दुखों व् कष्टों को कहा
है। मानव जीवन में सुख व् दुःख हवा के समान चंचल है अथवा अस्थायी है। क्योंकि मानव
जीवन में सुख और दुःख दोनों आते-जाते रहते हैं। धनी लोगों के पास सुविधाओं की कोई
कमी नहीं होती, गरीबों का शोषण करके वे अत्यधिक संपत्ति जमा
करते हैं, परन्तु उन्हें सदैव क्रांति अर्थात विद्रोह
की संभावना रहती है। वह अपना सब कुछ छिन जाने के डर से भयभीत रहते हैं। यही कारण
है कि कवि ने धनी वर्ग के सुख को अस्थिर कहा है और उस पर सदैव दुःख की छाया का
प्रयोग किया है।
प्रश्न
2 – ‘अशानि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’
पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया है?
उत्तर
– ‘अशानि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ इस
पंक्ति में कवि ने शोषक वर्ग की ओर संकेत किया है। ‘अशानि-पात’ का तात्पर्य
क्रांति से है। जिस प्रकार भयंकर बिजली गिरने से बड़े-बड़े पहाड़ खंडित हो जाते हैं
ठीक उसी प्रकार क्रांति से शोषक वर्ग का गर्व चूर-चूर हो जाता है।
प्रश्न
3 – ‘विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते’
पंक्ति में ‘विप्लव-रव’ से क्या तात्पर्य है? ‘छोटे
ही है हैं शोभा पाते’ ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर – विप्लव-रव
से तात्पर्य है – क्रांति की गर्जन। समाज में जब-जब क्रांति होती है तब-तब शोषक
वर्ग भय से काँप जाते हैं। क्योंकि उनका धन,
उनका घमंड आदि
समाप्त हो जाते हैं। ‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ ऐसा कवि ने इसलिए कहा है क्योंकि
क्रांति से छोटे ही शोभा पाते हैं। यहाँ ‘छोटे’ से आशय आम आदमी से है। क्योंकि आम
आदमी ही शोषण का शिकार होता है इसलिए जब भी क्रान्ति होती है तो आम आदमी के पास
खोने को कुछ नहीं होता बल्कि इसके विपरीत उन्हें
कुछ अधिकार मिलते हैं।
उसका शोषण समाप्त हो जाता है।
प्रश्न
4 – बादलों के आगमन से प्रकृति में होने
वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती हैं?
उत्तर – बादलों
के आगमन से प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं –
(i) बादल गर्जन करते हैं।
(ii) मूसलाधार वर्षा होती है।
(iii) पृथ्वी से पौधों का अंकुरण होने लगता
है।
(iv) बिजली चमकती है तथा उसके गिरने से
बड़े-बड़े पर्वत-शिखर खंडित हो जाते हैं।
(v) तेज़ हवा चलने से छोटे-छोटे पौधे हाथ हिलाते
से प्रतीत होते हैं।
(vi) गरमी के कारण दुखी हुए प्राणी बादलों
को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं।
बादल राग कविता पर आधारित कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न –
प्रश्न
1 – ‘बादल राग’ कविता में कवि ने किसे
अस्थायी कहा है?
उत्तर –
मानव जीवन में सुख व् दुःख
हवा के समान चंचल है अथवा अस्थायी है। क्योंकि मानव जीवन में सुख और दुःख दोनों
आते-जाते रहते हैं। और सुखों पर सैदेव दुःख रूपी बादल मंडराते रहते हैं। अमीर व्
समृद्ध व्यक्तियों के पास सुख के हर साधन मौजूद होते हैं जिन्हें उन्होंने गरीबों
का शोषण करके प्राप्त किया होता है। उन्हें उन साधनों के छिन जाने का डर सदा बना
रहता है इसी वजह से कवि ने अमीरों के सुख को अस्थायी कहा है।
प्रश्न
2 – बादल व् क्रान्ति से लोगों को क्या
उम्मीद है?
उत्तर –
संसार का हृदय शोषण
रूपी अग्नि से जला हुआ है और बादल दुःख व् शोषण से ग्रस्त संसार पर जल बरसा कर
शोषण के खिलाफ लोगों के मन में दबे क्रान्ति के बीज को अंकुरित करता है। जिस
प्रकार लोगों को उम्मीद होती है कि बादल जल बरसा कर गर्मी से राहत देगा उसी प्रकार
लोगों को क्रान्ति से उम्मीद है कि उन्हें शोषण से मुक्ति मिलेगी।
प्रश्न
3 – ‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर, क्षत-विक्षत
हत अचल-शरीर, गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर।’ का क्या
आशय है।
उत्तर –
आकाश की ऊँचाइयों को छूने
की इच्छा रखने वाले ऊँचे-ऊँचे पर्वत भी बिजली गिरने से उस प्रकार खंडित अथवा नष्ट
हो जाते हैं जिस प्रकार युद्ध भूमि में हथियारों के प्रहार से बड़े-बड़े वीर
मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि क्रांति से बड़े लोग या
पूँजीपति ही प्रभावित होते हैं।
प्रश्न
4 – ‘विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।’
से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
– क्रांति से बड़े लोग या पूँजीपति ही
प्रभावित होते हैं। इसके विपरीत, पर्वतों के खंडित होने पर छोटे पौधे
हँसते हैं, वे इससे अपार हरियाली प्राप्त करते हैं, और
प्रसन्न होकर हाथ हिलाकर तुझे अर्थात बादल को बुलाते हैं। विनाश के शोर से सदा
छोटे प्राणियों को ही लाभ मिलता है। क्रांति से शोषित व दलित वर्ग को लाभ मिलता है
अर्थात शोषित वर्ग जब शोषण के विरुद्ध आवाज उठाते हैं, तो
बड़े से बड़े पूंजीपतियों का घमंड चूर-चूर हो जाता है।
प्रश्न
5 – ‘तुझे बुलाता कृषक अधीर’ से कवि क्या
कहना चाहता है?
उत्तर – कवि
बादल अर्थात क्रांतिकारी से कहता है कि शोषण के कारण किसान की भुजाएँ बलहीन हो गई
हैं, उसका शरीर कमजोर हो गया है। वह बैचेन हो कर
तुझे बुला रहा है। कहने का अभिप्राय यह है कि शोषित वर्ग शोषण के कारण अत्यधिक
कमजोर हो गया है और अब वह शोषण को ख़त्म करने के लिए बैचेन है। शोषकों ने शोषित
वर्ग की जीवन-शक्ति छीन ली है अर्थात उनका रक्त रूपी सार तत्त्व चूस लिया है। अब
वह केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। कवि बादल अर्थात क्रांतिकारियों से
कहता है कि तुम बरस कर किसान की गरीबी दूर करो अर्थात क्रांति करके शोषण को समाप्त
करो।
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