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Thursday, August 15, 2024

पहलवान की ढोलक, फणीश्वर नाथ रेणु, व्याख्या, प्रश्न उत्तर PPT

 पहलवान की ढोलक, फणीश्वर नाथ रेणु PPT 



पहलवान की ढोलक - फणीश्वर नाथ रेणु PPT पीपीटी 

पहलवान की ढोलक पाठ के पाठ्यपुस्तक पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1 – कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।

उत्तर – लुट्टन सिंह को कुश्ती सिखाने वाला कोई गुरु नहीं था। वह ढोलक को ही अपना गुरु मनाता था। जब लुट्टन कुश्ती लड़ता था तो उस समय ढोल के बजने की आवाज से लुट्टन की रगों में मानो जोश भर जाता था। ऐसा प्रतीत आता था कि उसे ढोल की थाप कुश्ती में दाँव-पेंच लड़ने के निर्देश दे रही हैं। पाठ में ढोल की आवाज की कई ध्वन्यात्मक शब्दों का उल्लेख भी कहानीकार ने किया है। ढोल के इन शब्दों के साथ लुट्टन ने अपनी कुश्ती के दाँव-पेंचों का अद्भुत तालमेल बना लिया था। जैसे –

चट्-धा, गिड़-धा – आ जा भिड़ जा।

ढाक्र-ढिना – वाह पट्ठे।

चट्-गिड़-धा – मत डरना

धाक-धिना, तिरकट-तिना – दाँव काटो, बाहर हो जा

चटाक्-चट्-धा – उठा पटक दे

धिना-धिना, धिक-धिना – चित करो

धा-गिड़-गिड़ – वाह बहादुर

जब ढोल के से ध्वन्यात्मक शब्द लुट्टन के कानों में पड़ते थे तब उसके मन में कुश्ती लड़ते वक्त एक नया जोश व उत्साह भर जाता था।

प्रश्न 2 – कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवतन आए?

उत्तर कहानी में अनेक मोड़ ऐसे हैं जहाँ पर लुट्टन के जीवन में निम्नलिखित परिवर्तन आते हैं –

बचपन में ही लुट्टन के माता-पिता की मृत्यु हो गई और उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया। सास पर होते हुए अत्याचारों को देखकर बदला लेने के लिए लुट्टन पहलवानी करने लगा।

किशोरावस्था में दंगल में चाँद सिंह नामक पहलवान को हराकर उसने ‘राज-पहलवान’ का दर्जा हासिल किया।

काला खाँ’ जैसे प्रसिद्ध पहलवानों को हराकर वह अजेय पहलवान बन गया। और वह पंद्रह वर्ष तक राज-दरबार में राज-पहलवान बन कर रहा। उसने अपने दोनों बेटों को भी पहलवानी सिखाई।

राजा साहब के अचानक स्वर्गवास के बाद नए राजा ने उसे दरबार से हटा दिया जिसके बाद वह गाँव लौट आया। गाँव आकर उसने गाँव के बाहर अपना अखाड़ा बनाया तथा गाँव के बच्चों को कुश्ती सिखाने लगा।

अकस्मात सूखा और महामारी से गाँव में हाहाकार मच गया। उसके दोनों बेटे भी इस महामारी की चपेट में आ गए। उनकी मृत्यु पर वह उन्हें कंधे पर लादकर नदी में बहा आया। पुत्रों की मृत्यु के बाद वह कुछ दिन अकेला रहा और अंत में चल बसा।

प्रश्न 3 – लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि ‘मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं यहीं ढोल है’?

उत्तर – लुट्टन पहलवान ने किसी से भी पहलवानी नहीं सीखी थी अतः लुट्टन पहलवान हमेशा कहता था कि उसका कोई गुरु नहीं है। वह ढोलक को ही अपना गुरु मनाता था क्योंकि जब पहली बार वह दंगल देखने गया था, वहाँ ढोल की थाप पर दांव-पेंच चल रहे थे। उसे लग रहा था जैसे उस ढोल की हर थाप उसे कुश्ती में दाँव-पेंच लड़ने के निर्देश दे रही हैं। और थापों को ध्यान से सुनने पर उसे एक ऊर्जा का एहसास हुआ। उसने चाँद सिंह को ललकारा और उसे हरा दिया। इसीलिए लुट्टन पहलवान ने कहा होगा कि उसका गुरु कोई पहलवान नहीं बल्कि यही ढोल है। उसने ढोल बजाकर ही अपने दोनों बेटों और गाँव के बच्चों को कुश्ती सिखाई थी।

प्रश्न 4 – गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?

उत्तर गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल बजाता रहा। इसका मुख्य कारण गाँव में निराशा का माहौल था, जिसे दूर करने के लिए लुट्टन सिंह ढोल बजाता था। महामारी व सूखे के कारण गाँव में चारों तरफ मृत्यु का सन्नाटा था क्योंकि आए दिन किसी न किसी घर में कोई नं कोई मर रहा था। रात में जब चारों तरफ सन्नाटा होता था, तब पहलवान की ढोलक ही उसे चुनौती देती थी। लोगों में फैली निराशा को पहलवान की ढोल की आवाज आशा और उमंग भरने का काम करती थी। ढोल बजा कर वह लोगों को बताना चाहता था कि आशा न छोड़ो और अंत तक जोश व उत्साह से लड़ते रहो।

प्रश्न 5 – ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?

उत्तर – ढोलक की आवाज गाँव वालों के लिए संजीवनी का काम करती थी। महामारी के कारण उनके मन में जो उदासी थी उसको दूर करने में ढोलक की आवाज मददगार थी। पहलवान की ढोलक की आवाज ग्रामीणों को एक आंतरिक शक्ति प्रदान करती थी। महामारी से लड़ने में उनका मनोबल बढ़ाती थी। इसका एक कारण यह भी था कि महामारी की चपेट में आने के कारण पहलवान के दोनों बेटे मर चुके थे। फिर भी वह ढोलक बजाता रहता था। उसने अपने मनोबल को टूटने नहीं दिया था। उसके इसी साहस के कारण सारे गांव वालों को भी जीवन जीने व संधर्ष करने की प्रेरणा मिलती थी।

प्रश्न 6 – महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?

उत्तर सूर्योदय का दृश्य – महामारी फैलने की वजह से पूरा गांव किसी नन्हें शिशु की तरह कांप रहा था। गाँव में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूंखते, कराहते अपने घरों से निकलकर अपने पड़ोसियों व परिजनों को साँत्वना देते थे और शोक न मनाने की बात कहते थे। गाँव के लोग इस कठिन परिस्थिति में भी सामान्य जीवन जीने की कोशिश करते थे। यदि बीती रात में किसी परिजन की मृत्यु हो गई हो तो सुबह सभी लोग उसके अंतिम संस्कार के कार्य में जुट जाते थे।

सूर्यास्त का दृश्य – सूर्यास्त होते ही सभी लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों में घुस जाते थे। और पुरे गाँव में खामोशी छा जाती थी। उस समय कोई भी आवाज तक नहीं करता था। ऐसे समय में पहलवान की ढोलक की आवाज रात्रि की विभीषिका को चुनौती देती हुई सभी को हिम्मत देती रहती थी।

प्रश्न 7 – कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शोक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था –

(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं हैं?

उत्तर अब न तो राजा रहे हैं और न ही राजाओं जैसा शोक रखने वाले लोग। असल में पहलवानी बहुत खर्चीला खेल है। क्योंकि इसमें पहलवानों के लिए पौष्टिक आहार की आवश्यकता रहती है और फिर इसके लिए अभ्यास की भी नियमित आवश्यकता होती है। आज कल के व्यस्त माहौल में लोगों के पास इतना समय नहीं कि वे दिन में कई घंटे कसरत करने के लिए निकालें। इसके साथ ही एक और अन्य कारण यह है कि इस खेल से बदले में खिलाड़ियों को कुछ ख़ास भी नहीं मिलता। पुराने समय में मनोरंजन के कम साधन होते हुए कुश्ती मनोरंजन का एक अच्छा साधन था। किन्तु समय के साथ मनोरंजन के साधनों में वृद्धि हुई जिसके कारण लोगो की कुश्ती में रूचि भी समाप्त होती गई।

(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?

उत्तर – कुश्ती की जगह अब घुड़सवारी, फुटबाल, क्रिकेट, टेनिस, बॉलीबाल, बेसबॉल, हॉकी, शतरंज आदि खेलों ने ले ली है। इन खेलों में रूचि का मुख्य कारण पैसा और शोहरत दोनों हैं। और साथ ही साथ इन खेलों से रिटायर होने के बाद भी जीविका बनी रहती है।

(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?

उत्तर कुश्ती को यदि फिर से प्रिय खेल बनाना है तो लोगों के अंदर कुश्ती के प्रति लोकप्रियता जगानी होगी। इसके लिए राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को ठोस कदम उठाने होंगे। पहलवानों के लिए उचित व्यायामशालाएँ बनवानी होगी। उनके खानपान का भी सही से ध्यान रखना होगा और अन्य खेलों की तरह ही जीतने वाले पहलवान को अच्छी खासी रकम इनाम में देनी होगी। यदि कोई पहलवान रिटायर हो जाए या किसी दुर्घटना में उसे चोट लग जाए तो जीवनभर उसके लिए उसकी आजीविका का प्रबंध भी किया जाना चाहिए।

प्रश्न 8 – आशय स्पष्ट करें –

आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

उत्तर – उपरोक्त पंक्तियों में लेखक ने तारों के माध्यम से गाँव वालों की मदद करने की चाह रखने वालों की स्थिति को दर्शाया है। महामारी के कारण गाँव में अत्यंत सन्नाटा छाया हुआ है। अकाल और महामारी के कारण गाँव के लोग असहनीय दुख व कष्ट से गुजर रहे हैं। गाँव के लोग एक दूसरे की मदद करना तो चाहते हैं परन्तु चाहकर भी एक दूसरे की मदद करने में असमर्थ हैं। और यदि गाँव के बाहर का कोई व्यक्ति उनकी मदद करने की भी सोचता था तो उसकी सारी हिम्मत गाँव में फैली महामारी के कारण टूट जाती थी। क्योंकि कोई भी व्यक्ति उस भयंकर महामारी की चपेट में आकर अपनी जिंदगी गवाँना नहीं चाहेगा। इसीलिए कोई भी उनकी मदद को चाह कर भी नहीं आ पता था।

प्रश्न 9 – पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया हैं। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।

(क) “अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।”

उत्तर  -गाँव में फैली महामारी के कारण गाँव में हर दिन कोई न कोई मृत्यु को प्राप्त हो ही जाता था। जिसके कारण गाँव में चारों ओर दुःख ही दुःख था। दिन में तो लोग एक दूसरे को सांत्वना दे दिया करते थे परन्तु रात में कोई भी आवाज नहीं करता था जिससे चारों ओर सन्नाटा छा जाता था और ऐसा प्रतीत होता था जैसे रात भी लोगों के दुःख में दुखी हो कर चुपचाप आँसू बहा रही हो। 

(ख) “रात्रि अपने भीषणताओं के साथ चलती रही।”

उत्तर – यद्यपि महामारी के कारण गाँव में चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है और लोगों में भयानक दर्द और उदासी भरी हुई है। लोगो का साथ देते हुए रात भी मायूसी को समेटे अपनी गति से बीत रही है।

(ग) “रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी।”

उत्तर रात जो अपने अन्धकार व् खामोशी के कारण बहुत ही भयानक प्रतीत होती थी। अपने स्वाभाविक शोर अर्थात कुत्तों के रोने व् सियार की आवाजों आदि से वह सभी को भयभीत कर देती थी। लेकिन पहलवान की ढोलक की थाप ने इस भयानकता को चुनौती देती थी।

पहलवान की ढोलक पाठ पर आधारित अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 – जाड़ों के मौसम की रातें अत्यधिक डरावनी क्यों लग रही थी?

उत्तर – जाड़ों के मौसम में गाँव में महामारी फैली हुई थी। गांव के अधिकतर लोग मलेरिया और हैजे से ग्रस्त थे। जिस कारण आए दिन कोई न कोई मर रहा था। लोगों में मन में मौत का डर घर कर गया था इसी कारण जाडे के दिन और रातें एकदम काली अंधेरी व डरावनी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रात उस गाँव के दुःख में दुःखी होकर चुपचाप आँसू बहा रही हो।

प्रश्न 2 – टूटते तारे का उदाहरण दे कर लेखक क्या बताना चाह रहा है?

उत्तर टूटते तारे का उदाहरण देते हुए लेखक बताता है कि उस गाँव के दुःख को देख कर यदि कोई बाहरी व्यक्ति उस गाँव के लोगों की कुछ मदद करना भी चाहता था तो  चाह कर भी नहीं कर सकता था क्योंकि उस गाँव में फैली महामारी के कारण कोई भी अपने जीवन को कष्ट नहीं डालना चाहता था।

प्रश्न 3 – पहलवान की ढोलक क्या काम करती थी?

उत्तर –  रात की खमोशी को सिर्फ लुट्टन सिंह पहलवान की ढोलक ही तोड़ती थी। पहलवान की ढोलक संध्याकाल से लेकर प्रात:काल तक लगातार एक ही गति से बजती रहती थी और गाँव में फैली महामारी से होने वाली मौतों को चुनौती देती रहती थी। ढोलक की आवाज निराश, हताश, कमजोर और अपनों को खो चुके लोगों में संजीवनी भरने का काम करती थी।

प्रश्न 4 – राजा का संरक्षण मिलने के बाद लुट्टन सिंह के जीवन में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर राजा का संरक्षण मिलने के बाद लुट्टन सिंह को अच्छा खाना व कसरत करने की सभी सुविधाएं मिलने लगी। बाद में काले खाँ जैसे कई प्रसिद्ध पहलवानों को हराकर वह लगभग 15 वर्षों तक अजेय रहा। इसीलिए उसके ऊपर हमेशा राजा की विशेष कृपा दृष्टि रहती थी। धीरे-धीरे राजा उसे किसी से लड़ने भी नहीं देते थे क्योंकि लुट्टन सिंह सभी पहलवानों को आसानी से हरा देता था और खेल का मज़ा खराब हो जाता था। अब वह राज दरबार का सिर्फ एक दर्शनीय जीव बन कर रह गया था। लुट्टन सिंह के दो बेटे थे और उसने अपने दोनों बेटों को भी पहलवान बना दिया था। वह ढोलक को ही अपना गुरु मनाता था इसीलिए अपने दोनों बेटों को भी ढोलक की थाप में पूरा ध्यान देने को कहता था।

प्रश्न 5 – नए राजा ने लुट्टन सिंह के साथ क्या किया?

उत्तर लुट्टन सिंह की जिंदगी ठीक-ठाक चल रही थी। लेकिन 15 साल बाद अचानक एक दिन वृद्ध राजा की मृत्यु हो गई जिसके बाद लुट्टन की जिंदगी ने एक मोड़ लिया। राजा की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने राज्य का भार संभाल लिया। नये राजा को कुश्ती में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं थी। और लुट्टन सिंह पर होने वाला खर्चा सुन कर वह हक्का-बक्का रह गया अतः उसने लुट्टन सिंह को राजदरबार से निकाल दिया।

 

प्रश्न 6 – राज महल से निकाले जाने के बाद लुट्टन सिंह की जिंदगी कैसी थी?

उत्तर राज महल से निकाले जाने के बाद लुट्टन सिंह अपने दोनों बेटों के साथ गाँव वापस आ गया। गाँव वालों ने उसकी मदद के लिए गाँव के एक छोर पर उसकी एक छोटी सी झोपड़ी बना दी और उसके खाने-पीने का इंतजाम भी कर दिया। इसके बदले में वह गाँव के नौजवानों को पहलवानी सिखाने लगा। लेकिन यह सब ज्यादा दिनों तक नही चला क्योंकि गाँव के गरीब नौजवान पहलवानी करने के लिए पौष्टिक आहार आदि का खर्च नहीं उठा पाते थे। इसीलिए अब वह अपनी ढोलक की थाप पर अपने दोनों बेटों को ही कुश्ती सिखाया करता था। उसके बेटे दिन भर मजदूरी करते जिससे उनका गुजर-बसर चलता और शाम को कुश्ती के दांव पेंच सीखते थे।

प्रश्न 7 –  गाँव वालों का मनोबल टूटने का क्या कारण था?

उत्तर – एक बार गांव में सूखा पड़ गया और साथ ही साथ गांव के लोगों को हैजे और मलेरिया ने जकड़ लिया। बारिश ने होने के कारण गाँव में चारों ओर हाहाकार मच गया। भुखमरी, गरीबी और सही उपचार न मिलने के कारण लोग रोज मर रहे थे और लोगों में निराशा व् हताशा फैल गई थी। घर के घर खाली हो रहे थे और लोगों का मनोबल दिन प्रतिदिन टूटता जा रहा था।

प्रश्न  8 – पहलवान की अंतिम इच्छा क्या थी?

उत्तर पहलवान को मृत देखकर आँसू पूछते हुए उसके एक शिष्य ने कहा कि “गुरुजी कहा करते थे कि जब मैं मर जाऊं तो मुझे पीठ के बल नहीं बल्कि पेट के बल चिता पर लिटाना और चिता जलाते वक्त ढोलक अवश्य बजाना”।  वह शिष्य आगे नहीं बोल पाया।

 


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