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Wednesday, August 14, 2024

उषा कविता शमशेर बहादुर सिंह , पाठ सार, व्याख्या, काव्यांश पर आधारित वस्तुनिष्ठ प्रश्न

 

उषा कविता - शमशेर बहादुर सिंह 







USHA KAVITA उषा शमशेर बहादुर सिंह    PPT के लिए यहाँ 

उषा कविता का पाठ सार 

उषा’ कविता कवि ‘शमशेर बहादुर सिंह’ द्वारा लिखित सुंदर कविता है। इस कविता में कवि ने सूर्योदय से ठीक पहले आकाश में होने वाले परिवर्तनों को सुंदर शब्दों में उकेरा है। कवि ने नए बिंब, नए उपमान, नए प्रतीकों का प्रयोग किया है। कवि कहता है कि प्रातः कालीन अर्थात सुबह सूर्योदय से पहले के समय का आकाश बहुत गहरा नीला दिखाई दे रहा है। जो कवि को किसी नीले शंख के समान प्रतीत हो रहा है कहने का आशय यह है कि कवि को सूर्योदय से पहले का आकाश किसी नील शंख के सामान पवित्र व सुंदर दिखाई दे रहा हैं। धीरे-धीरे सुबह का आसमान कवि को ऐसा लगने लगता है जैसे किसी ने राख से चौका लीपा हो अर्थात आसमान धीरे-धीरे गहरे नीले रंग से राख के रंग यानी गहरा स्लेटी होने लगता है। प्रात:काल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अत: नीले नभ को गीला बताया गया है। साथ ही प्रातः कालीन वातावरण की नमी ने सुबह के वातावरण को किसी शंख की भांति और भी सुंदर, निर्मल व पवित्र बना दिया है। धीरे-धीरे जैसे-जैसे सूर्योदय होने लगता है तो हलकी लालिमा आकाश में फैल जाती है। उस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है जैसे काली रंग की सिल अर्थात मसाला पीसने के काले पत्थर को लाल केसर से धो दिया गया है। सुबह के समय आकाश ऐसा लगता है मानो किसी बच्चे की काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी (चिह्न बनाने के काम आने वाली मिट्टी) मल दी हो। सूरज की किरणें सूर्योदय के समय ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे किसी युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर साफ़ नीले जल में झिलमिला रहा हो। कुछ समय बाद जब सूर्योदय हो जाता है अर्थात जब सूर्य पूरी तरह से आकाश में निकल आता है तब उषा यानी ब्रह्म वेला का हर पल बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रात: कालीन आकाश का जादू भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा हैं।

 

उषा कविता की व्याख्या 

काव्यांश 1 –
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लिपा चौका
(अभी गिला पडा है)

कठिन शब्द –
प्रात – सुबह
भोर – प्रभात
नभ – आकाश
चौका – रसोई बनाने का स्थान

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवि शमशेर बहादुर सिंह’ द्वारा रचित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवि सूर्योदय का मनोहारी वर्णन करते हुए कहता है कि प्रातः कालीन अर्थात सुबह सूर्योदय से पहले के समय का आकाश बहुत गहरा नीला दिखाई दे रहा है। जो कवि को किसी नीले शंख के समान प्रतीत हो रहा है कहने का आशय यह है कि कवि को सूर्योदय से पहले का आकाश किसी नील शंख के सामान पवित्र व सुंदर दिखाई दे रहा हैं।
धीरे-धीरे सुबह का आसमान कवि को ऐसा लगने लगता है जैसे किसी ने राख से चौका लीपा हो अर्थात आसमान धीरे-धीरे गहरे नीले रंग से राख के रंग यानी गहरा स्लेटी होने लगता है। और सुबह वातावरण में नमी होने के कारण कवि को वह गहरे स्लेटी रंग का आकाश ऐसा प्रतीत होता है जैसे राख से किसी ने चौके यानी खाना बनाने की जगह को लीप दिया हो, जिस कारण वो अभी भी गीला है। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रात:काल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अत: नीले नभ को गीला बताया गया है। साथ ही प्रातः कालीन वातावरण की नमी ने सुबह के वातावरण को किसी शंख की भांति और भी सुंदर, निर्मल व पवित्र बना दिया है।

काव्यांश 2 –

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने

कठिन शब्द –
सिल – मसाला पीसने के लिए बनाया गया पत्थर
केसर – विशेष फूल, एक सुगंध देनेवाला पौधा
खड़िया – सफ़ेद रंग की चिकनी मुलायम मिट्टी जो पुताई और लिखने के काम आती है, चिह्न बनाने के काम आने वाली मिट्टी
मल देना – लगा देना

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवि शमशेर बहादुर सिंह’ द्वारा रचित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवि सूर्योदय का मनोहारी वर्णन करते हुए कहता है कि धीरे-धीरे जैसे-जैसे सूर्योदय होने लगता है तो हलकी लालिमा आकाश में फैल जाती है। उस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है जैसे काली रंग की सिल अर्थात मसाला पीसने के काले पत्थर को लाल केसर से धो दिया गया है। यहाँ कवि ने काली सिल को अँधेरे के समान तथा सूरज की लालिमा को केसर के समान बताया है। एक और उदाहरण देते हुए कवि कहते हैं कि सुबह के समय आकाश ऐसा लगता है मानो किसी बच्चे की काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी (चिह्न बनाने के काम आने वाली मिट्टी) मल दी हो। यहाँ कवि ने अँधेरे को काली स्लेट के समान व सुबह की लालिमा को लाल खड़िया मिट्टी के समान बताया है।

काव्यांश 1 –

नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और …….
जादू टूटता हैं इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा हैं।

कठिन शब्द –
गौर – गोरी
झिलमिल – मचलती हुई, रह-रह कर घटता-बढ़ता हुआ प्रकाश
देह – शरीर, काया, तन
जादू – आकर्षण, सौंदर्य, हाथ की सफ़ाई
उषा – सुबह होने के कुछ पहले का मंद प्रकाश, भोर, प्रभात, तड़का, ब्रह्म वेला, प्रात:काल
सूर्योदय – सूर्य का उदित होना या निकलना, सूर्य के उगने का समय, प्रातःकाल, सवेरा

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवि शमशेर बहादुर सिंह’ द्वारा रचित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवि सूर्योदय के बाद का वर्णन कर रहे है। कवि कहते है कि सूरज की किरणें सूर्योदय के समय ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे किसी युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर साफ़ नीले जल में झिलमिला रहा हो। कहने का अभिप्राय यह है कि धीमी हवा व नमी के कारण सूर्य का प्रतिबिंब नील आकाश में हिलता-सा प्रतीत होता है। यहाँ पर कवि ने नीले आकाश की तुलना नीले जल से और सूरज की किरणों की तुलना युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर से की है। कवि आगे कहते हैं कि कुछ समय बाद जब सूर्योदय हो जाता है अर्थात जब सूर्य पूरी तरह से आकाश में निकल आता है तब उषा यानी ब्रह्म वेला का हर पल बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रात: कालीन आकाश का जादू भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि सूर्योदय से पहले आकाश में जो बदलाव होते हैं वे सूर्योदय होने पर समाप्त हो जाते हैं।

 

पठित काव्यांश पर आधारित वस्तुनिष्ठ प्रश्न

पठित काव्यांश - 1

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)

बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि

जैसे घुल गई हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने ।

(1) प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे ... नीला शंख नभ के किस प्रकार के रंग को रुपायित कर रहा है?

() नीले रंग को

(ख) नील आभा युक्त हल्का श्वेत

(ग) हल्का नीला

(घ) पूरा नीला

2) कवि ने भोर के नभ की तुलना राख से लीपे हुए गीले चौके से क्यों की है? (

() भोर का नभ गहरा सलेटी रंग का दिख रहा है

() भोर का नभ गहरी श्यामल आभा से युक्त है।

() भोर का नभ काले सफेद रंग से युक्त है।

() भोर का नम प्रकाश से युक्त है।

(3) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो.. उपमान में कवि कया कहना चाहता है

(1) काले रंग की सिल पर केसर पीस कर उसे धोकर रखा गया है।

(2) भोर के आकाश की कालिमा पर अब धीरे-धीरे उगते हुए सूरज की केसरी किरणों की आभा झलकने लगी है।

(3) भोर का आकाश प्रखर सूर्य किरणों से जगमगा रहा है।

(4) सूर्योदय हो गया है।

(4) प्रातःकालीन नभ के लिए कवि ने कौन से उपमान का प्रयोग नहीं किया है ?

() नीला शंख

(ख) राख से लीपा हुआ गीला चौका

(ग) नील-जल में झलकता आसमान

(घ) बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से धुली हो

(5) बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो ..... पंक्ति में कौन सा अलंकार है ?

() उपमा अलंकार (ख) रूपक अलंकार (ग) उत्प्रेक्षा अलंकार   (घ) मानवीकरण अलंकार

 

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो ।

और…...

जादू टूटता है इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा है।

(1) नील जल में गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो.... का तात्पर्य है ?

(1) नील आकाश में अब उगते हुए सूर्य का बिम्ब झलकने लगा है।

(2) नील नभ में अब सूर्य पूरी तरह चमक रहा है।

(3) नील नभ सूर्य रश्मियों से जगमगा उठा है।    (4) नील नभ में पक्षी उड़ने लगे हैं।

(2) उषा का जादू क्या है?

(I) भोर के आकाश का गहरा काला रंग                      (II) भोर के आकाश में झलकते हुए सुंदर रंग

(III) भोर के आकाश का पल पल परिवर्तित सौन्दर्य        (IV) भोर के आकाश में टिमटिमाते तारों का सौन्दर्य

() केवल (1)            (ख) (II) और (III)         (ग) केवल (IV)            (घ) (1) और (IV)

(3) उषा का जादू सूर्योदय होने पर टूट जाता है क्योंकि -

(1) अब सब ओर सुनहला उजाला फैल गया है।

(2) अब आकाश में झलकते हुए विभिन्न रंग छिप गए हैं।

(3) अब आकाश में पक्षियों का आवागमन शुरू हो गया है।

(4) अब आकाश बादलों से ढक गया है।

(4) सूर्योदय - शब्द का सही संधि विच्छेद है-

(1) सूर्यो +दय             (ख) सूर्य +ओदय                   (ग) सूर्य +उदय           (घ) सूर्यो +उदय

(5) नील जल में गौर झिलमिल देह उपमान किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?

(1) नील जल में झलकते हुए सूर्य के प्रतिबिम्ब के लिए ।

(2) नील नभ में चमकते हुए सूर्य के लिए ।

(3) नील नभ में फैले हुए सूर्य के स्वर्णिम प्रकाश के लिए।

(4) नील जल में झलकते हुए नील नभ के प्रतिबिम्ब के लिए

 

जीवन कौशल एवं मूल्य आधारित प्रश्न

 

(1) मान लीजिये आप अरुण है और आपको सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं है, ऐसे में जब आपको

यात्रा के लिए अथवा अन्य कारण से सुबह 4 बजे उठना पड़ता है तो किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

 

(2) प्रकृति के सुन्दर दृश्य देखकर आपको किस तरह की अनुभूति होती है अपने शब्दों में अभिव्यक्त कीजिए ।

 

लघु उत्तरीय प्रश्न -

(1) उषा कविता में प्रयुक्त बिम्बों (शब्द छवियों) को लिखिए ।

(2) कविता में गाँव की सुबह को किस तरह दिखाया गया है?

(3) उषा का जादू कब टूटता है?

(4) लाल केसर और बहुत काली सिल किसके प्रतीक हैं?

(5) राख से लीपा हुआ गीला चौका.... किसका प्रतीक है?

(6) नील जल में गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो के माध्यम से कवि क्या रुपायित करना चाहता है

Ans 1. नीला शंख जैसे नभ, राख से लीपा हुआ चौका गीला पड़ा है

बहुत काली सिल पर ज़रा लाल खड़िया चाक मल से लाल केसर घुल गई हो

 

 

उत्तर 2 - सुबह होते ही चौके चूल्हे को गीली राख से लीप कर स्वच्छ कर लिया गया है, काली सिल पर लाल केसर पीस कर उसे धो पोंछ कर साफ़ कर रख दिया गया है। बच्चे अपनी स्लेट लेकर लिखने - पढ़ने बैठ गए हैं।

उत्तर 3- जब सूर्योदय हो जाता तब ओर के आकाश में छाये हुए सतरंगी रंग छुप जाते हैं तब उषा का जादू टूट जाता है।

उत्तर 4- बहुत काली सिल भोर की कालिमा से युक्त आकाश और लाल केसर भोर के आकाश में छाई हुई लाली का प्रतीक है।

उत्तर 5- भोर का श्यामल आभा युक्त आकाश |

उत्तर-6 नीले आसमान में झिलमिलाता हुआ सूर्य ।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न -

 

(1) उषा कविता ग्राम्य जनजीवन का शब्द चित्र है कैसे ?

(2) गाँव और शहर की सुबह में क्या अंतर है? एक लेख लिखिए ।

(3) सूर्यास्त के समय आपके आस- पास के परिवेश का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।

(4) सूर्योदय की तरह सूर्यास्त का वर्णन करते हुए एक कविता की रचना करें।

(5) उषा कविता पल पल बदलती हुई प्रकृति का शब्द चित्र है, कैसे? अपने शब्दों में लिखिए ।

(6) उषा कविता के माध्यम से कवि ने क्या सन्देश दिया है?

दीर्घ उतरीय प्रश्नों के उत्तर

 

उत्तर 1- उषा कविता ग्राम्य जन जीवन का सुंदर शब्दचित्र है। कवि ने ग्राम्य जन जीवन के उपमानों से जोडकर भोर की उषा वेला आकाशीय सौन्दर्य के पल पल परिवर्तित होने वाले रंगों एवं दृश्यों का सहज - स्वाभाविक चित्रण यहाँ किया है। भोर की श्यामल आभा से युक्त आकाश राख से लिपा हुआ गीला चौका है, काली सिल पर पीस कर धूलि हुई केसर की अरुणिम आभा - से दृश्यमान भोर का आकाश मनभावन लग रहा है जैसे स्लेट पर बच्चों ने लाल खड़िया से लिख कर कुछ मिटाया हो । इस प्रकार भोर की वेला में ग्राम्य जन जीवन का सुंदर चित्र यहाँ कवि ने विभिन्न उपमानों के माध्यम से साकार किया है।

कथन और कारण पर आधारित प्रश्न

नीचे दिए गए कथन और कारण को ठीक से समझकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर दीजिए

(1) कथन (A) प्रातः कालीन नभ शंख की तरह बहुत नीला था |

कारण (R) प्रातः कालीन नभ में अब धीरे धीरे रात्रि का गहन अन्धकार छंटने लगा था, दूर क्षितिज पर सूर्य उदय होने से ठीक पूर्व आकाश का रंग परिवर्तित होने लगा था |

(1) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही है, कथन कारण की सही व्याख्या नहीं करता है।

(2) कथन (A) सही है और कारण (R) उसकी सही व्याख्या नहीं करता है।

(3) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं। कारण कथन की सही व्याख्या करता है।

(4) कथन और कारण दोनों अनुपयुक्त हैं कोई किसी से सम्बद्ध नहीं है ।

 

(2) कथन (A) उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है ।

कारण (१) राख से लीपा हुआ चौका गीला पड़ा है। बहुत काली सिल पर पीसी हुई लाल कैसर की आभा झलक रही है।

(1) कथन कारण से सम्बद्ध नहीं है तथा कथन कारण की सही व्याख्या करने में असमर्थ है।

(2) कथन और कारण परस्पर सम्बद्ध है फन्तु एक दूसरे की व्याख्या नहीं करते हैं।

(२) कथन सही है परन्तु कारण गलत है।

(घ) कथन और कारण एक दूसरे के पूरक है तथा कथन कारण की सही व्याख्या करता है।

 

(3) कविता में आए हुए उपमानों से उपमेय का सही मिलान करिए -

उपमान                                                                       उपमेय

I) राख से लीपा हुआ चौका                                               (A) सूर्योदय हो रहा है

(II) बहुत काली सिल जरा से लाल कैसर से कि जैसे घुल गई हो   (B) नील नभ में सूर्य का प्रतिबिम्ब झिलमिला

रहा है

() जादू टूटता है इस उषा का            (C) आकाश की काली रंगत पर उगते हुए सूरज की केसरिया आभा छाने  लगी है।

(IV) नील जल में गौर झिलमिल देह का हिलना    (D) भोर का नभ अभी हलकी कालिगा से युक्त

 


 


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