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Thursday, April 11, 2024

भक्तिन : महादेवी वर्मा CLASS : XII (NCERT) HINDI ‘CORE’ BHAKTIN - MAHADEVI CBSE

 

भक्तिन   :  महादेवी वर्मा  CLASS : XII (NCERT) HINDI CORE CBSE



लेखिका परिचय

जीवन परिचय-श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म फ़रुखाबाद (उ०प्र०) में 1907 ई० में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर के मिशन स्कूल में हुई थी। नौ वर्ष की आयु में इनका विवाह हो गया था। परंतु इनका अध्ययन चलता रहा। 1929 ई० में इन्होंने बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहा, परंतु महात्मा गांधी के संपर्क में आने पर ये समाज-सेवा की ओर उन्मुख हो गई। 1932 ई० में इन्होंने इलाहाबाद से संस्कृत में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण कीं और प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना करके उसकी प्रधानाचार्या के रूप में कार्य करने लगीं। मासिक पत्रिका ‘चाँद’ का भी इन्होंने कुछ समय तक संपादन-कार्य किया। इनका कर्मक्षेत्र बहुमुखी रहा है। इन्हें 1952 ई० में उत्तर प्रदेश की विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। 1954 ई० में ये साहित्य अकादमी की संस्थापक सदस्या बनीं। 1960 ई० में इन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ का कुलपति बनाया गया। इनके व्यापक शैक्षिक, साहित्यिक और सामाजिक कार्यों के लिए भारत सरकार ने 1956 ई० में इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। 1983 ई० में ‘यामा’ कृति पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने भी इन्हें ‘भारत-भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया। सन 1987 में इनकी मृत्यु हो गई।
रचनाएँ – इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य-संग्रह – नीहार, रश्मि, नीरजा, यामा, दीपशिखा।
संस्मरण – अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ पथ के साथी, मेरा परिवार।
निबंध-संग्रह – श्रृंखला की कड़ियाँ आपदा, संकल्पिता, भारतीय संस्कृति के स्वर।
साहित्यिक विशेषताएँ – साहित्य सेविका और समाज-सेविका दोनों रूपों में महादेवी वर्मा की प्रतिष्ठा रही है। महात्मा गाँधी की दिखाई राह पर अपना जीवन समर्पित करके इन्होंने शिक्षा और समाज-कल्याण के क्षेत्र में निरंतर कार्य किया। ये बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। ये छायावाद के चार स्तंभों में से एक हैं। इनकी चर्चा निबंधों और संस्मरणात्मक रेखाचित्रों के कारण एक अप्रतिम गद्यकार के रूप में भी होती है। कविताओं में ये अपनी आंतरिक वेदना और पीड़ा को व्यक्त करती हुई इस लोक से परे किसी और सत्ता की ओर अभिमुख दिखाई पड़ती हैं, तो गद्य में इनका गहरा सामाजिक सरोकार स्थान पाता है। इनकी श्रृंखला की कड़ियाँ कृति एक अद्वतीय रचना है जो हिंदी में स्त्री-विमर्श की भव्य प्रस्तावना है। इनके संस्मरणात्मक रेखाचित्र अपने आस-पास के ऐसे चरित्रों और प्रसंगों को लेकर लिखे गए हैं जिनकी ओर साधारणतया हमारा ध्यान नहीं खिच पाता। महादेवी जी की मर्मभेदी व करुणामयी दृष्टि उन चरित्रों की साधारणता में असाधारण तत्वों का संधान करती है। इस तरह इन्होंने समाज के शोषित-पीड़ित तबके को अपने साहित्य में नायकत्व प्रदान किया है।
भाषा-शैली – लेखिका ने अंतर्मन की अनुभूतियों का अंकन अत्यंत मार्मिकता से किया है। इनकी भाषा में बनावटीपन नहीं है। इनकी भाषा में संस्कृतनिष्ठ शब्दों की प्रमुखता है। इनके गद्य-साहित्य में भावनात्मक, संस्मरणात्मक, समीक्षात्मक, इत्तिवृत्तात्मक आदि अनेक शैलियों का रूप दृष्टिगोचर होता है। मर्मस्पर्शिता इनके गद्य की प्रमुख विशेषता है।

सारांश SUMMARY

भक्तिन कहानी की लेखिका “महादेवी वर्मा जी” हैं। यह एक संस्मरणात्मक रेखाचित्र हैं। इस कहानी में उन्होंने अपनी सेविका भक्तिन के जीवन के उतार चढ़ावों उसके आचार – व्यवहार व स्वभाव के बारे में लिखा है।

उन्होंने यह भी बताया हैं कि भक्तिन एक ऐसी झुझारू महिला थी। जिसने अपने जीवन के संधर्षों से कभी हार नही मानी। और अपना पूरा जीवन अपने उसूलों व अपने ग्रामीण संस्कृति के अनुसार ही जिया।

कहानी की शुरुआत करते हुए लेखिका कहती हैं कि भक्तिन छोटे कद व दुबले पतले शरीर वाली बहुत ही सादगी पूर्ण जीवन जीने वाली महिला थी। लेकिन लेखिका की सेवा वह कुछ इस तरह से करती थी जैसे पवन पुत्र हनुमान राम जी की किया करते थे। यानि बिना थके रात दिन उनके लिए काम करती है।

लेखिका के पास जब वह पहली बार नौकरी के लिए आई तो उसने अपना नाम लक्ष्मी बताया था लेकिन वह नहीं चाहती थी कि उसे कोई उस नाम से पुकारे।

लक्ष्मी के गले में कंठी माला और उसका स्वभाव देखकर लेखिका ने उसका नाम भक्तिन रख दिया जिसे सुनकर वह बहुत खुश हो गई। महादेवी वर्मा जी ने इस कहानी को चार भागों में बांटा है।

सबसे पहले भाग में ………….

लेखिका ने भक्तिन के जन्म व उसकी शादी के बारे में बताया है।वह इलाहाबाद के झूंसी गाँव के एक गौपालक की इकलौती बेटी थी। वर्ष की आयु में उसका विवाह हंडियां ग्राम के एक संपन्न गौपालक के पुत्र से हुआ। लेकिन छोटी आयु में उसके मां के मरने के बाद उसकी सौतेली मां ने महज नौ वर्ष की उम्र में उसका गौना (ससुराल भेज देना) करवा दिया।

भक्तिन की शादी के बाद भक्तिन के पिता बीमार रहने लगे और एक दिन उनकी मृत्यु हो गई लेकिन उनकी मृत्यु का समाचार सौतेली मां ने भक्तिन को नहीं दिया और सास ने भी पिता की मृत्यु का समाचार सीधे तो भक्तिन को नहीं बताया लेकिन उसने किसी बहाने से भक्तिन को मायके भेज दिया।

पिता से मिलने की आस में जब भक्तिन मायके पहुंची तो वहां पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर बहुत दुखी हुई। घर वापस पहुंचने पर उसने अपनी सास को खूब खरी-खोटी सुनााई।

कहानी के दूसरे हिस्से में ………

भक्तिन के शादीशुदा जीवन के बारे में बताया गया है। भक्तिन ने तीन बेटियों को जन्म दिया जिसके कारण उसे अपने परिजनों खासकर जेठानी व सास की उपेक्षा को सहन करना पड़ा था क्योंकि जेठानी के दो बेटे थे। और उन दिनों समाज में बेटियों को अहमियत नहीं दी जाती थी। इसीलिए भक्तिन व उसकी बेटियों के साथ भी हर चीज में भेदभाव किया जाता था। जहां जेठानी के बेटों को दूध मलाई और अच्छा भोजन दिया जाता था वही भक्तिन की बेटियों को मोटा अनाज खाने को दिया जाता था।

भक्तिन के खिलाफ उसके पति को भी परिवार के सदस्यों द्वारा उकसाया जाता था लेकिन भक्तिन का पति उसको बहुत प्यार करता था इसलिए वह उनके बहकावे में नहीं आता था। भक्तिन बाग-बगीचों खेत-खलिहानों के साथ-साथ जानवरों की भी देखभाल करती थी।

उसने अपनी बड़ी बेटी का विवाह बड़े धूमधाम से किया लेकिन महज 36 साल की उम्र में भक्तिन के पति की मृत्यु हो गई। इसके बाद तो भक्तिन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन उसने किसी प्रकार अपनी दोनों बेटियों की शादी की और बड़े दामाद को घर जमाई बना कर अपने पास रखा।

कहानी के तीसरे भाग में ………..

दुर्भाग्यवश बड़ी बेटी का पति भी मर गया और वह विधवा हो गई। परिजनों ने संपत्ति के लालच में भक्तिन की विधवा बेटी का विवाह भक्तिन के जेठ के बड़े बेटे के तीतरबाज साले से करवाना चाहा जिसे उसने मना कर दिया।

लेकिन कुछ समय बाद वह तीतरबाज भक्तिन की बेटी के घर में धुस गया। उस समय भक्तिन घर में नही थी । हालाँकि बेटी ने उस तीतरबाज को धक्का देकर बाहर निकाल दिया लेकिन बात गांव में फैल गई। पंचायत बुलाई गई जिसने दोनों का विवाह कराने का आदेश दे दिया। भक्तिन और उसकी बेटी को न चाहते हुए भी पंचायत का यह फैसला मानना पड़ा।

भक्तिन के जीवन को चार परिच्छेदों में विभक्त किया जा सकता है

v पहला परिच्छेद-   भक्तिन का बचपनमाँ की मृत्युविमाता के द्वारा  

                              भक्तिन का बाल-विवाह करा देना  ।

v द्वितीय परिच्छेद-  भक्तिन का वैवाहिक जीवनसास तथा जिठानियों का

                              अन्यायपूर्ण व्यवहारपरिवार से अलगौझा कर लेना ।

v तृतीय परिच्छेद-   पति की मृत्युविधवा के रूप में संघर्षशील जीवन।

v चतुर्थ परिच्छेद महादेवी वर्मा की सेविका के रूप में ।

शब्दार्थ-

संकल्य – निश्चय। विचित्र-आश्चर्यजनक। जिज़ासु – उत्सुक। चिंतन – विचार। स्यदध – मुकाबला। अंजना – हनुमान की माता। दुवह – जिसे ढोना मुश्किल हो। कयाल – भाग्य, माथा। कुचित – सिकुड़ी हुई। शेष द्वतिवृत्त – पूरी कथा। अंशत: – थोड़ा-सा।
विमाता – सौतेली माता। किंवदंती – जनता में प्रचलित बातें। वय – आयु, जवानी। गोना – विवाह के बाद पति का अपने ससुराल से अपनी पत्नी को पहली बार अपने घर ले आना। अगाध – अधिक, गहरा । मरयातक – जानलेवा। नेहर – मायका। अप्रत्याशित – जिसकी आशा न हो। अनुग्रह – कृपा। युनरावृतियाँ – बार-बार कहना। ठेले ले जाना –पहुँचाना। लेश – तनिक। चिर बिछह – स्थायी वियोग। ममव्यथा – हृदय को कष्ट देने वाली पीड़ा। परिच्छेद – अध्याय। विधात्री – जन्म देने वाली। माचिया – खाट की तरह बुनी हुई छोटी चौकी (बैठकी) । विराजमान – बैठना। युरखिन – बड़ी-बूढ़ी। अभिषिक्त – जिसका अभिषेक हुआ हो, अधिका-प्राप्त। काकभुशडी – राम का एक भक्त जो शापवश एक कौआ बना। सृष्टि – रचना, संसार। लीक छोड़ना – परंपरा को तोड़ना। राब – खाँड़, गाढ़ा सीरा। औटना – ताप से गाढ़ा करना। टकसाल – वह स्थान जहाँ सिक्के ढाले जाते हैं। चुगली-चबाड़ – निंदा। परिणति – निष्कर्ष।

अलगढ़ा – बँटवारा। खलिहान – कटी फसल को रखने का स्थान। निरंतर – लगातार। कुकुरी – कुतिया। बिलारी – बिल्ली। होरहा – होला, आग पर भुना हरे चने का रूप। आजिया ससुर – पति का बाबा। कै – कितने ही। उपार्जित – कमाई। कटिबद्ध – तैयार। जिठत – पति के बड़े भाई का पुत्र। गठबंधन – विवाह, शादी।
परिमाजन – शुद्ध करना, सुधार करना। कर्मठता – मेहनत। दीक्षित – जिसने दीक्षा ग्रहण किया हो। अथ – प्रारंभ। अभिनदन – स्वागत।
नितांत – पूर्णत:। वीतराग – आसक्तिरहित। आसीन – बैठा। निर्दिष्ट – निश्चित। पितिया ससुर – पति का चाचा। मौखिक – जबानी। निवारण – दूर करना। उपचार – इलाज। जाग्रत – सचेत।

मकड़ – मक्का। लयसी-पतला – सा हलुवा। क्रियात्मक – व्यावहारिक। पोयला – दाँतरहित मुँह। दत-कथाएँ – परंपरा से चले आ रहे किस्से। कंठस्थ – याद। नरो वा कुंजरो वा  मनुष्य या हाथी। सिर घुटाना – जड़ से बाल कटवाना। अंकुरित भाव – बिना संकोच के। चूड़ाकम – सिर के बाल को पहले-पहल कटवाना। नायित – नाई। निष्यन्न – पूर्ण।अपमान – निरादर। मंथरता – धीमी गति। पटु – चतुर। पिंड छुड़ाया – छुटकारा पाया।
अतिशयोक्तियाँ – बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातें। अमरबेल – जड़रहित बेल जो दूसरे वृक्षों से जीवनरस लेकर फैलती है। आभा – प्रकाश। उदभासित – आलोकित। पागुर –जुगाली। निस्तब्धता – शांति। प्रशांत – पूरी तरह शांत।
आतांकित – भयभीत। नाती – बेटी का पुत्र। विनीत – विनम्र। मचान – बाँस आदि की सहायता से बनाया गया ऊँचा आसन।
स्नेह – प्रेम। सम्मान – आदर। अपभ्रंश – बिगड़ा हुआ। कारागार – जेल।
माड़ – माँ। बड़े लाट – वायसराय। विषम – विपरीत। दुलभ – कठिन।


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