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Saturday, August 31, 2024

उत्साह और अट नहीं रही है पाठ सार, पाठ-व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ, दक्षता आधारित प्रश्नोत्तर

 

उत्साह और अट नहीं रही है सारांश, पाठ-व्याख्या, 

उत्साह पाठ का सार

” उत्साह ” एक आह्वान गीत है अर्थात एक ऐसा गीत है जिसमें अलग – अलग  रूप से बादलों को आज्ञा देकर बुलाया जा रहा है। यह गीत बादल को संबोधित है अर्थात  इस गीत में बादलों का बोध या ज्ञान कराया गया है। बादल ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ’ जी का प्रिय विषय है। कहने का तात्पर्य यह है कि ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ’ जी ने अपनी बहुत सी कविताओं में बादलों का वर्णन किया है। प्रस्तुत कविता में बादल एक तरफ पीड़ित – प्यासे लोगों की इच्छायों को पूरा करने वाला है , तो दूसरी तरफ वही बादल नयी कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस , विप्लव और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी है। कवि जीवन को विस्तृत और संपूर्ण दृष्टि से देखता है। कविता में सुंदर कल्पना और क्रांति – चेतना दोनों हैं। सामाजिक क्रांति या बदलाव में साहित्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है , निराला इसे ‘ नवजीवन ’ और ‘ नूतन कविता ’ के संदर्भों में देखते हैं।

प्रस्तुत कविता आजादी से पहले लिखी गई है। गुलाम भारत के लोग जब निराश और हताश हो चुके थे। तब उन लोगों में उत्साह जगाने के लिए कवि एक ऐसे कवि को आमंत्रित कर रहे हैं जो अपनी कविता से लोगों को जागृत कर सकें। उनमें नया उत्साह भर सके और उनका खोया हुआ आत्मविश्वास दुबारा लौटा सके।


बादल , गरजो !
घेर घेर घोर गगन , धाराधर ओ !
ललित ललित , काले घुंघराले ,
बाल कल्पना के – से पाले ,
विद्युत छबि उर में , कवि नवजीवन वाले !
वज्र छिपा , नूतन कविता
फिर भर दो –
बादल गरजो !
शब्दार्थ
गरजो – जोरदार गर्जना ( जोरदार आवाज करना )
घेर घेर – पूरी तरह से घेर लेना
घोर – भयङ्कर
गगन – आकाश
धाराधर – बादल
ललित ललित – सुंदर – सुंदर
घुंघराले – गोल – गोल छल्ले का सा आकार
बाल कल्पना – छोटे बच्चों की कल्पनाएँ  ( इच्छाएँ )
के – से पाले – की तरह बदलना
विद्युत – बिजली
छबि – चित्र , चलचित्र , प्रतिच्छाया ,  तसवीर
उर – हृदय , मन , चित्त
नवजीवन – नया जीवन
वज्र – कठोर
नूतन – नया
विकल विकल , उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन ,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन !
तप्त धरा , जल से फिर
शीतल कर दो
बादल , गरजो !
शब्दार्थ
विकल – व्याकुल , विह्वल , बेचैन , अधीर
उन्मन – अनमना , उदास , अनमनापन
विश्व – संसार
निदाघ – गरमी , ताप , वह मौसम या समय जब कड़ी धूप होती है
सकल – सब
जन – लोग
अज्ञात – जो ज्ञात न हो ,  जिसके बारे में पता न हो
अनंत – जिसका कोई अन्त न हो
घन – मेघ , बादल
तप्त धरा – तपती धरती , गर्म धरती
शीतल – ठंडा , शीत उत्पन्न करने वाला , सर्द , जो ठंडक उत्पन्न करता हो

व्याख्या – कवि बादलों से जोर – जोर से गरजने का निवेदन करते हुए बादलों से कहते हैं कि हे बादल ! तुम जोरदार गर्जना अर्थात जोरदार आवाज करो और आकाश को चारों तरफ से , पूरी तरह से घेर लो यानि इस पूरे आकाश में भयानक रूप से छा जाओ और फिर जोरदार तरीके से बरसो क्योंकि यह समय शान्त होकर बरसने का नहीं हैं। कवि बादलों के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सुंदर – सुंदर , काले घुंघराले अर्थात  गोल – गोल छल्ले के आकार के समान बादलों , तुम किसी छोटे बच्चे की कल्पना की तरह हो। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे छोटे बच्चों की कल्पनाएँ ( इच्छाएँ )  पल – पल बदलती रहती हैं तथा हर पल उनके मन में नई – नई बातें या कल्पनाएँ जन्म लेती हैं। ठीक उसी प्रकार तुम भी अर्थात बादल भी आकाश में हर पल अपना रूप यानि आकार बदल रहे हो। कवि आगे बादलों से कहते हैं कि तुम अपने हृदय में बिजली के समान ऊर्जा वाले विचारों को जन्म दो और फिर उनसे एक नई कविता का सृजन करो। कवि ने बादलों की तुलना कवि से की है क्योंकि जिस प्रकार बादल धरती के सभी प्राणियों को नया जीवन प्रदान करते हैं , उसी प्रकार कवि भी हमारे अंदर के सोये हुए साहस को जगाते हैं। कवि बादलों से निवेदन करते हुए कहते हैं कि बादलों तुम अपनी कविता से निराश , हताश लोगों के मन में एक नई आशा का संचार कर दो। बादल जोरदार आवाज के साथ गरजो ताकि लोगों में फिर से नया उत्साह भर जाए।

भावार्थ – इस काव्यांश में कवि बादलों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि तुम जोरदार गर्जना करो और अपनी गर्जना से सोये हुए लोगों को जागृत करो , उनके अंदर एक नया उत्साह , एक नया जोश भर दो। कवि बादलों को एक कवि के रूप में देखते हैं जो अपनी कविता से धरती को नवजीवन देते हैं क्योंकि बादलों के बरसने के साथ ही धरती पर नया जीवन शुरु होता हैं। पानी मिलने से बीज अंकुरित होते हैं और नये – नये पौधें उगने शुरू हो जाते हैं। धरती हरी – भरी होनी शुरू हो जाती हैं। लोगों की सोई चेतना भी जागृत होती है। अत्यधिक गर्मी से परेशान लोग जब धरती पर वर्षा हो जाने के बाद भीषण गर्मी से राहत पाते हैं , तो उनका मन फिर से नये उत्साह व उमंग से भर जाता है। इसी कारण कवि बादलों से निवेदन करते हैं कि वो जोरदार बरसात कर धरती को ठंडक दें और लोगों में नया उत्साह भर दे।

प्रश्न अभ्यास 

प्रश्न 1.कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों?

उत्तर- ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ‘ जी ने बादल से फुहार , रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहा बल्कि ‘ गरजने ’ के लिए कहा है , क्योंकि कवि बादलों को क्रांति का सूत्रधार मानता है। ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ‘ जी एक क्रांतिकारी कवि माने जाते हैं। वो अपने विचारों व अपनी कविता के माध्यम से समाज में बदलाव लाना चाहते थे। लोगों की चेतना को जागृत करना चाहते थे। “ गरजना ” शब्द क्रांति , बदलाव और विद्रोह का प्रतीक है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान किया है।

प्रश्न 2.कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर-कवि ने कविता का शीर्षक उत्साह इसलिए रखा है, क्योंकि कवि बादलों के माध्यम से क्रांति और बदलाव लाना चाहता है। वह बादलों से गरजने के लिए कहता है। एक ओर बादलों के गर्जन में उत्साह समाया है तो दूसरी ओर लोगों में उत्साह का संचार करके क्रांति के लिए तैयार करना है।

प्रश्न 3.कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है
1.
बच्चे की मुसकान से मृतक में भी जान आ जाती है।
2.
यों लगता है मानो झोंपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों।
3.
यों लगता है मानो चट्टानें पिघलकर जलधारा बन गई हों।
4.
यों लगता है मानो बबूल से शेफालिका के फूल झरने लगे हों।

प्रश्न 4.शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद हैं, छाँटकर लिखें।
उत्तर-उत्साह’ कविता में नाद सौंदर्य वाले शब्द निम्नलिखित हैं

बादल गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!

ललित ललित , काले घुंघराले , बाल कल्पना के – से पाले।

विद्युत छबि उर में।

विकल विकल , उन्मन थे उन्मन।

अन्य महत्वपूर्ण  हल प्रश्न

प्रश्न 1.कवि ने क्रांति लाने के लिए किसका आह्वान किया है और क्यों ?
उत्तर-कवि ने क्रांति लाने के लिए बादलों का आह्वान किया है। कवि का मानना है कि बादल क्रांतिदूत हैं। उनके अंदर घोर गर्जना की शक्ति है जो लोगों को जागरूक करने में सक्षम है। इसके अलावा बादलों के हृदय में बिजली छिपी है।

प्रश्न 2.कवि युवा कवियों से क्या आवान करता है?
उत्तर-कवि युवा कवियों से आह्वान करता है कि वे प्रेम और सौंदर्य की कविताओं की रचना न करके लोगों में जोश और उमंग भरने वाली कविताओं की रचना करें, जो लोगों पर बज्र-सा असर करे और लोग क्रांति के लिए तैयार हो सकें।

प्रश्न 3.कवि ने ‘नवजीवन’ का प्रयोग बादलों के लिए भी किया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-कवि बादलों को कल्याणकारी मानता है। बादल विविध रूपों में जनकल्याण करते हैं। वे अपनी वर्षा से लोगों की बेचैनी दूर करते हैं और तपती धरती का ताप शीतल करके मुरझाई-सी धरती में नया जीवन फेंक देते हैं। वे धरती को फ़सल उगाने योग्य बनाकर लोगों में नवजीवन का संचार करते हैं।

प्रश्न 4.बादल आने से पूर्व प्राणियों की मनोदशा का चित्रण कीजिए।
उत्तर-जब तक आसमान में बादलों का आगमन नहीं हुआ था, गरमी अपने चरम सीमा पर थी। इससे लोग बेचैन, परेशान और उदास थे। उन्हें कहीं भी चैन नहीं था। गरमी ने उनका जीना दूभर कर दिया था। उनका मन कहीं भी नहीं लग रहा था।

प्रश्न 5. कवि निराला बादलों में क्या-क्या संभावनाएँ देखते हैं?
उत्तर-कवि निराला बादलों में निम्नलिखित संभावनाएँ देखते हैं

  • बादल लोगों को क्रांति लाने योग्य बनाने में समर्थ हैं।
  • बादल धरती और धरती के प्राणियों दोनों को नवजीवन प्रदान करते हैं।
  • बादल धरती और लोगों का ताप हरकर शीतलता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 6.कवि ने बादलों के किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-कवि ने बादलों को ‘आज्ञात दिशा के घन’ और ‘नवजीवन वाले’ जैसे विशेषणों का प्रयोग किया है। कवि उन्हें अज्ञात दिशा के घन इसलिए कहा है क्योंकि बादल किस दिशा से आकर आकाश में छा गए, पता नहीं। इसके अलावा वे धरती और प्राणियों को नवजीवन देते हैं।



अट नहीं रही 

‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन महीने के सौंदर्य का वर्णन है। इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य कहीं भी नहीं समा रहा है और धरती पर बाहर बिखर गया है। इस महीने सुगंधित हवाएँ वातावरण को महका रही हैं। इस समय प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है और मस्ती से इठलाती है। पेड़ों पर आए लाल – हरे पत्ते और फूलों से यह सौंदर्य और भी बढ़ गया है। इससे मन में उमंगें उड़ान भरने लगी हैं। फागुन का सौंदर्य अन्य ऋतुओं और महीनों से बढ़कर होता है। इस समय चारों ओर हरियाली छा जाती है। खेतों में कुछ फसलें पकने को तैयार होती हैं। सरसों के पीले फूलों की चादर बिछ जाती है। लताएँ और डालियाँ रंग – बिरंगे फूलों से सज जाती हैं। प्राणियों का मन उल्लासमय हुआ जाता है। ऐसा लगता है कि इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य छलक उठा है। कवि के अनुसार फागुन मास में प्रकृति इतनी सुन्दर नजर आती है कि उस पर से नजर हटाने को मन ही नहीं करता। फागुन के महीने में प्रकृति में होने वाले बदलावों से सभी प्राणी बेहद ख़ुश हो जाते हैं। कविता में कवि स्वयं भी बहुत ही खुश लग रहे हैं। फागुन माह में ऐसा लगता हैं मानो प्रकृति एक बार फिर दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार हो गयी हैं क्योंकि वसंत ऋतु के आगमन से सभी पेड़ – पौधे नई – नई कोपलों ( नई कोमल पत्तियों ) व रंग – बिरंगे फूलों से लद जाते हैं। और जब भी हवा चलती हैं तो सारा वातावरण उन फूलों की मधुर खुशबू से महक उठता हैं। पेड़ों पर नए पत्ते निकल आए हैं , जो कई रंगों के हैं। कहीं – कहीं पर कुछ पेड़ों में लगता है कि धीमी – धीमी खुशबू देने वाले फूलों की माला लटकी हुई है। हर तरफ सुंदरता बिखरी पड़ी है और वह इतनी अधिक है कि धरा पर समा नहीं रही है। ‘ उड़ने को नभ में तुम पर – पर कर देते हो ’ से ज्ञात होता है कि फागुन में चारों ओर इस तरह सौंदर्य फैल जाता है कि वातावरण मनोरम बन जाता है। रंग – बिरंगे फूलों के खुशबू से हवा में मादकता घुल जाती है। ऐसे में लोगों का मन कल्पनाओं में खोकर उड़ान भरने लगता है।फागुन महीने में तेज हवाएँ चलती हैं जिनसे पत्तियों की सरसराहट के बीच साँय – साँय की आवाज़ आती है। इसे सुनकर ऐसा लगता है , मानो फागुन साँस ले रहा है। कवि इन हवाओं में फागुन के साँस लेने की कल्पना कर रहा है। इस तरह कवि ने फागुन का मानवीकरण किया है।

1. छायावाद की एक खास विशेषता है अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है?लिखिए।

उत्तर कविता के निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है कि प्रस्तुत कविता में अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाया गया है :
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है|
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है

2. कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?

उत्तर कवि की आँख फागुन की सुंदरता से इसलिए हट नहीं रही है क्योंकि इस महीने में प्रकृति का सौंदर्य अत्यंत मनमोहक होता है| पेड़ों पर हरी और लाल पत्तियाँ लटक रहे हैं| चारों ओर फैली हरियाली और खिले रंग-बिरंगे फूल अपनी सुगंध से मुग्ध कर देते हैं| प्रकृति का नया रंग और सुगंध जीवन में नयी ऊर्जा का संचार करती है|

3. 
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है ?

उत्तर-प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन निम्नलिखित रूपों में किया है -
पेड़-पौधे नए पत्ते पाकर खिलखिला रहे हैं|
फूलों की खुशबू वातावरण को सुगन्धित कर रही है|
डालियाँ कहीं हरी तो कहीं लाल पत्तियों से भर जाती हैं|
बाग़-बगीचों में चारों ओर हरियाली छा गयी है|
कवि को प्रकृति के सौंदर्य से आँख हटाना मुश्किल लग रहा है

4. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?

उत्तर - फागुन में प्रकृति की शोभा अपने चरम पर होती है| पेड़-पौधें नए पत्तों, फल और फूलों से लद जाते हैं, हवा सुगन्धित हो उठती है। आकाश साफ-स्वच्छ होता है। पक्षियों के समूह आकाश में विहार करते दिखाई देते हैं। बाग-बगीचों और पक्षियों में उल्लास भर जाता हैं। इस तरह फागुन का सौंदर्य बाकी ऋतुओं से भिन्न है।


5. 
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी छायावाद के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनके काव्य-शिल्प की विशेषताएँ हैं- 
दोनों कविताओं में प्रकृति चित्रण द्वारा मन के भावों को प्रकट किया गया है|

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Friday, August 16, 2024

बादल राग सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, कविता – शब्दार्थ,भावार्थ, महत्त्वपूर्ण प्रश्न PPT कविता आधारित बहु विकल्पीय प्रश्न MCQ दक्षता आधारित प्रश्नोत्तर PDF

बादल राग सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, कविता – शब्दार्थ,भावार्थ, महत्त्वपूर्ण प्रश्न  

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कवि परिचय

जीवन परिचय- महाप्राण कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन 1899 में बंगाल राज्य के महिषादल नामक रियासत के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी मूलत: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे। जब निराला तीन वर्ष के थे, तब इनकी माता का देहांत हो गया। इन्होंने स्कूली शिक्षा अधिक नहीं प्राप्त की, परंतु स्वाध्याय द्वारा इन्होंने अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। पिता की मृत्यु के बाद ये रियासत की पुलिस में भर्ती हो गए। 14 वर्ष की आयु में इनका विवाह मनोहरा देवी से हुआ। इन्हें एक पुत्री व एक पुत्र प्राप्त हुआ। 1918 में पत्नी के देहांत का इन पर गहरा प्रभाव पड़ा। आर्थिक संकटों, संघर्षों व जीवन की यथार्थ अनुभूतियों ने निराला जी के जीवन की दिशा ही मोड़ दी। ये रामकृष्ण मिशन, अद्वैत आश्रम, बैलूर मठ चले गए। वहाँ इन्होंने दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया तथा आश्रम के पत्र ‘समन्वय’ का संपादन किया।
सन 1935 में इनकी पुत्री सरोज का निधन हो गया। इसके बाद ये टूट गए तथा इनका शरीर बीमारियों से ग्रस्त हो गया। 15 अक्तूबर, 1961 ई० को इस महान साहित्यकार ने प्रयाग में सदा के लिए आँखें मूंद लीं।
साहित्यिक रचनाएँ- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ प्रतिभा-संपन्न व प्रखर साहित्यकार थे। इन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर लेखनी चलाई।
इनकी रचनाएँ हैं-
(i) काव्य- संग्रह-परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना आदि।
(ii) उपन्यास- अलका, अप्सरा, प्रभावती, निरुपमा, काले कारनामे आदि।
(iii) कहानी- संग्रह-लिली, सखी, चतुरी चमार, अपने घर।
(iv) निबंध- प्रबंध-पद्य, प्रबंध प्रतिभा, चाबुक आदि।
(v) नाटक- समाज, शंकुतला, उषा–अनिरुद्ध।
(vi) अनुवाद- आनंद मठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेशनंदिनी, रजनी, देवी चौधरानी।
(vii) रेखाचित्र- कुल्लीभाट, बिल्लेसुर बकरिहा।
(viii) संपादन-समन्वय’ पत्र तथा ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन।
काव्यगत विशेषताएँ- निराला जी छायावाद के आधार स्तंभ थे। इनके काव्य में छायावाद, प्रगतिवाद तथा प्रयोगवादी काव्य की विशेषताएँ मिलती हैं। ये एक ओर कबीर की परंपरा से जुड़े हैं तो दूसरी ओर समकालीन कवियों की प्रेरणा के स्रोत भी हैं। इनका यह विस्तृत काव्य-संसार अपने भीतर संघर्ष और जीवन, क्रांति और निर्माण, ओज और माधुर्य, आशा-निराशा के द्वंद्व को कुछ इस तरह समेटे हुए है कि वह किसी सीमा में बँध नहीं पाता। उनका यह निर्बध और उदात्त काव्य-व्यक्तित्व कविता और जीवन में फ़र्क नहीं रखता। वे आपस में घुले-मिले हैं। उनकी कविता उल्लास-शोक, राग-विराग, उत्थान-पतन, अंधकार-प्रकाश का सजीव कोलाज है। भाषा-शैली-निराला जी ने अपने काव्य में तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। बँगला भाषा के प्रभाव के कारण इनकी भाषा में संगीतात्मकता और गेयता का गुण पाया जाता है। प्रगतिवाद की भाषा सरल, सहज तथा बोधगम्य है। इनकी भाषा में उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेजी के शब्द इस तरह प्रयुक्त हुए हैं मानो हिंदी के ही हों।

बादल राग कविता की व्याख्या

काव्यांश 1 –
तिरती हैं समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
जगके दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
धन्, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशावों से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
तक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
 
कठिन शब्द –
तिरती – तैरती, तैरना
समीर वायु, हवा, सुबह की खुशबू
सागर – समुद्र, जलधि, उदधि
अस्थिर – क्षणिक, जो स्थिर न हो, डाँवाडोल, चंचल
दग्ध –  जला या जलाया हुआ, भस्मीकृत
निर्दय बेदर्द, जिसके मन में दया न हो, दयाहीन, निष्ठुर, क्रूर, बेरहम
विप्लव – विनाश, उपद्रव, उत्पात, उथल-पुथल, विपदा, विपत्ति, आफ़त
प्लावित बाढ़ से ग्रस्त, डूबा हुआ (बाढ़ में), जलमग्न, जिसपर बाढ़ का पानी चढ़ आया हो, जल से व्याप्त, तैराया हुआ
माया – खेल, दौलत, भ्रम, इंद्रजाल, जादू, कपट, धोखा
रण युद्ध, लड़ाई, जंग
तरी नाव, नौका
आकांक्षा – कामना, अभिलाषा, इच्छा, चाह 
भेरी – नगाड़ा, युद्ध क्षेत्र का बाजा नगाड़ा
गर्जन गरजना, बादलों की गड़गड़ाहट, गुस्सा, युद्ध
सजग – जागरूक, सचेत, सावधान
सुप्त – सोया हुआ, निद्रित, रुका, थमा या दबा हुआ
अंकुर बीज से निकला नन्हा पौधा, कोंपल, पल्लव, कली
उर हृदय
नवजीवन – नया जीवन
व्याख्या – इस कविता में कवि ने बादलों को क्रान्ति का प्रतिक बतलाया है। कवि कहते है कि बादल वायु रूपी सागर पर ऐसे तैरते रहते हैं जैसे अस्थिर सुख पर दुख की छाया मंडराती रहती है। कहने का अभिप्राय यह है कि मानव जीवन में सुख व् दुःख हवा के समान चंचल है अथवा अस्थायी है। क्योंकि मानव जीवन में सुख और दुःख दोनों आते-जाते रहते हैं। और सुखों पर सैदेव दुःख रूपी बादल मंडराते रहते हैं। संसार के जले हुए हृदय पर निर्दयी विनाशरूपी माया के रूप में बादल हमेशा स्थित रहते हैं। अर्थात संसार का हृदय  शोषण रूपी अग्नि से जला हुआ है और बादल दुःख व् शोषण से ग्रस्त संसार पर जल बरसा कर शोषण के खिलाफ लोगों के मन में दबे क्रान्ति के बीज को अंकुरित करता है। कवि बादलों से कहते हैं कि तुम्हारी युद्धरूपी नाव में आम आदमी की बहुत सारी इच्छाएँ भरी हुई हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार लोगों की उम्मीद होती है कि बादल जल बरसा कर गर्मी से राहत देगा उसी प्रकार लोगों को क्रान्ति से उम्मीद है कि उन्हें शोषण से मुक्ति मिलेगी। कवि कहता है कि हे बादल! तुम्हारे युद्ध क्षेत्र के नगाड़ों अर्थात तुम्हारी गरजना से धरती के अंदर सोए हुए अंकुर अर्थात बीज जाग जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि क्रांति की हुँकार से कमजोर व निष्क्रिय व्यक्ति भी शोषण के विरुद्ध संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं। आगे कवि कहते हैं कि हे विप्लव के बादल! पृथ्वी के अंदर ये अंकुर नए जीवन की आशा में सिर उठाकर तुझे देख रहे हैं अर्थात शोषण का शिकार हुए लोग अपने मन में अपने उद्धार की आशाएँ लिए क्रान्ति की ओर ताकते रहते हैं।
 
काव्यांश 2 –
फिर-फिर
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार-
शस्य अपार,
हिल-हिल ,
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
 
कठिन शब्द –
वर्षण वृष्टि, वर्षा, बारिश
मूसलधार भयंकर या भीषण, जोरों की बारिश
हृदय थामना भयभीत होना
घोर भयंकर, भयावह, विकराल, डरावना
वज्र-हुंकार वज्रपात के समान भयंकर आवाज़
अशनि-पात बिजली गिरना
शापित – शाप से ग्रस्त, शाप दिया हुआ
उन्नत – बड़ा, उच्च, उठा हुआ
शत-शत -सैकड़ो, सौ का संग्रह
विक्षप्त घायल, पागलपन, उन्माद
हत मरे हुए, जो मार डाला गया हो, वध किया हुआ
अचल – स्थिर, गतिहीन, पर्वत
गगन-स्पर्शी – आकाश को छूने वाला
स्पर्द्धा-धीर – आगे बढ़ने की होड़ करने हेतु बेचैनी
लघुभार – हलके
शस्य हरियाली, अन्न, गल्ला, खाद्यान्न, धान्य
अपार बहुत, जिसका पार न हो, अनंत, असीम
रव शोर, शब्द, आवाज़
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ से महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है। कवि बादलों से कहता है कि तुम बार-बार गरजना करते हो तथा मूसलाधार बारिश करते हो। बार-बार तुम्हारी वज्र के समान भयानक आवाज को सुनकर संसार अपना हृदय थाम लेता है अर्थात संसार तुम्हारी वज्र के समान भयंकर आवाज से भयभीत हो जाता है। आकाश की ऊँचाइयों को छूने की इच्छा रखने वाले ऊँचे-ऊँचे पर्वत भी बिजली गिरने से उस प्रकार खंडित अथवा नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार  युद्ध भूमि में हथियारों के प्रहार से बड़े-बड़े वीर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि क्रांति से बड़े लोग या पूँजीपति ही प्रभावित होते हैं। इसके विपरीत, पर्वतों के खंडित होने पर छोटे पौधे हँसते हैं, वे इससे अपार हरियाली प्राप्त करते हैं, और प्रसन्न होकर हाथ हिलाकर तुझे अर्थात बादल को बुलाते हैं। विनाश के शोर से सदा छोटे प्राणियों को ही लाभ मिलता है। कहने का अभिप्राय यह है कि क्रांति से शोषित व दलित वर्ग को लाभ मिलता है अर्थात शोषित वर्ग जब शोषण के विरुद्ध आवाज उठाते हैं, तो बड़े से बड़े पूंजीपतियों का घमंड चूर-चूर हो जाता है।
 
काव्यांश 3 –
अट्टालिका नहीं है रे
आंतक–भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लवन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलजं से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष हैं, क्षुब्ध तोष
अंगना-अगा सो लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।
 
कठिन शब्द 
अट्टालिका – अटारी, महल
आतंक-भवन – भय का निवास
यक कीचड़, अकेला, एक
प्लावन – बाढ़, जल-प्रलय
क्षुद्र तुच्छ, नगण्य, महत्वहीन, दरिद्र
प्रफुल- खिला हुआ, प्रसन्न, विकसित
जलज – कमल, जल में उत्पन्न होने वाला, जो जल में उत्पन्न हो
नीर पानी, जल
शोक दुख, गम, दर्द, दुखड़ा
शैशव बचपन, लड़कपन
सुकुमार – कोमल, कोमलता, नर्मी, मुलायमत
रुदध रुका हुआ
कोष ख़ज़ाना, भंडार, धन-दौलत रखने की जगह
क्षुब्ध क्रुद्ध, चिंतित, भयभीत
तोष शांति, आनंद, प्रसन्नता, ख़ुशी
अंगना – पत्नी
अंग – शरीर
अंक गोद
वज्र-गर्जन – वज्र के समान गर्जन
त्रस्त पीड़ित, जो कष्ट में हो, डरा हुआ, भयभीत
 
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ से महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है। कवि कहता है कि पूँजीपतियों के द्वारा बनाए गए ऊँचे-ऊँचे भवन केवल भवन नहीं हैं बल्कि ये तो गरीबों में  भय पैदा करने वाले भवन हैं। क्योंकि पूंजीपति लोगों ने इन्हें गरीबों का शोषण करके ही बनाया है। कवि कहता है कि सदैव कीचड़ पर ही अत्यधिक वर्षा के कारण होने वाली बाढ़ का प्रभाव पड़ता है। अर्थात भयंकर जल-प्रलय  सदैव कीचड़ पर ही होता है। यही जल जब कमल की कोमल पंखुड़ियों पर पड़ता है तो वह और अधिक विकसित हो उठती है। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रलय से पूँजीपति वर्ग ही प्रभावित होता है। जबकि निम्न वर्ग में बच्चे कोमल शरीर के होते हैं तथा रोग व कष्ट की स्थिति में भी हमेशा हँसते-मुस्कराते रहते हैं। पूँजीपतियों ने उनके आर्थिक साधनों व् धन पर कब्जा कर रखा है। इतना धन इकट्ठा कर लेने पर भी उन्हें शांति प्राप्त नहीं हुई है। अपनी प्रियाओं की गोद में लिपटे हुए होने के बावजूद भी बादलों की गर्जना अर्थात क्रान्ति की गूँज सुनकर काँप रहे हैं। उन्होंने क्रांति की गर्जन सुनकर के भय से अपनी आँखें बँद की हुई है तथा मुँह को छिपाए हुए हैं।
 
काव्यांश 4 –
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया हैं उसका सार,
धनी, वज़-गजन से बादल।
ऐ जीवन के पारावार! 
कठिन शब्द –
जीर्ण पुरानी, शिथिल, बदहाल, अत्यधिक पुराना
बहु – भुजाजिसमें अनेक कोण हों, बहुभुज, कई तरह से होने वाला
शीण कमजोर
कृषक किसान, खेतिहर, हलवाहा
अधीर – व्याकुल, धैर्यहीन, उतावला, आतुर
विप्लव – विनाश, उपद्रव, उत्पात, उथल-पुथल, विपदा, विपत्ति, आफ़त
सार प्राण, तत्व, सत्त
हाड़-मात्र केवल हड्डयों का ढाँचा
यारावार – समुद्र

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ से महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है। कवि बादल अर्थात क्रांतिकारी से कहता है कि हे विप्लव के वीर! शोषण के कारण किसान की भुजाएँ बलहीन हो गई हैं, उसका शरीर कमजोर हो गया है। वह बैचेन हो कर तुझे बुला रहा है। कहने का अभिप्राय यह है कि शोषित वर्ग शोषण के कारण अत्यधिक कमजोर हो गया है और अब वह शोषण को ख़त्म करने के लिए बैचेन है। शोषकों ने शोषित वर्ग की जीवन-शक्ति छीन ली है अर्थात उनका रक्त रूपी सार तत्त्व चूस लिया है। अब वह केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। कवि बादल अर्थात क्रांतिकारियों से कहता है कि हे जीवन-दाता! तुम बरस कर किसान की गरीबी दूर करो अर्थात क्रांति करके शोषण को समाप्त करो।




पाठ्यपुस्तक पर आधारित प्रश्न –

 

प्रश्न 1 – ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में ‘दुख की छाया’ किसे कहा गया हैं और क्यों?

उत्तर कवि ने ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में ‘दुख की छाया’ मानव-जीवन में आने वाले दुखों व् कष्टों को कहा है। मानव जीवन में सुख व् दुःख हवा के समान चंचल है अथवा अस्थायी है। क्योंकि मानव जीवन में सुख और दुःख दोनों आते-जाते रहते हैं। धनी लोगों के पास सुविधाओं की कोई कमी नहीं होती, गरीबों का शोषण करके वे अत्यधिक संपत्ति जमा करते हैं, परन्तु उन्हें सदैव क्रांति अर्थात विद्रोह की संभावना रहती है। वह अपना सब कुछ छिन जाने के डर से भयभीत रहते हैं। यही कारण है कि कवि ने धनी वर्ग के सुख को अस्थिर कहा है और उस पर सदैव दुःख की छाया का प्रयोग किया है।

 

प्रश्न 2 – ‘अशानि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया है?

उत्तर – ‘अशानि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ इस पंक्ति में कवि ने शोषक वर्ग की ओर संकेत किया है। ‘अशानि-पात’ का तात्पर्य क्रांति से है। जिस प्रकार भयंकर बिजली गिरने से बड़े-बड़े पहाड़ खंडित हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार क्रांति से शोषक वर्ग का गर्व चूर-चूर हो जाता है।

 

प्रश्न 3  – ‘विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते’ पंक्ति में  ‘विप्लव-रव’ से क्या तात्पर्य है? ‘छोटे ही है हैं शोभा पाते’ ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर – विप्लव-रव से तात्पर्य है – क्रांति की गर्जन। समाज में जब-जब क्रांति होती है तब-तब शोषक वर्ग भय से काँप जाते हैं। क्योंकि उनका धन, उनका घमंड  आदि समाप्त हो जाते हैं। ‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ ऐसा कवि ने इसलिए कहा है क्योंकि क्रांति से छोटे ही शोभा पाते हैं। यहाँ ‘छोटे’ से आशय आम आदमी से है। क्योंकि आम आदमी ही शोषण का शिकार होता है इसलिए जब भी क्रान्ति होती है तो आम आदमी के पास खोने को कुछ नहीं होता बल्कि इसके विपरीत उन्हें  कुछ अधिकार मिलते हैं। उसका शोषण समाप्त हो जाता है।

 

प्रश्न 4 – बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती हैं?

उत्तर – बादलों के आगमन से प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं –

(i) बादल गर्जन करते हैं।

(ii) मूसलाधार वर्षा होती है।

(iii) पृथ्वी से पौधों का अंकुरण होने लगता है।

(iv) बिजली चमकती है तथा उसके गिरने से बड़े-बड़े पर्वत-शिखर खंडित हो जाते हैं।

(v) तेज़ हवा चलने से छोटे-छोटे पौधे हाथ हिलाते से प्रतीत होते हैं।

(vi) गरमी के कारण दुखी हुए प्राणी बादलों को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं।

 

बादल राग कविता पर आधारित कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न – 

प्रश्न 1 – ‘बादल राग’ कविता में कवि ने किसे अस्थायी कहा है?

उत्तर मानव जीवन में सुख व् दुःख हवा के समान चंचल है अथवा अस्थायी है। क्योंकि मानव जीवन में सुख और दुःख दोनों आते-जाते रहते हैं। और सुखों पर सैदेव दुःख रूपी बादल मंडराते रहते हैं। अमीर व् समृद्ध व्यक्तियों के पास सुख के हर साधन मौजूद होते हैं जिन्हें उन्होंने गरीबों का शोषण करके प्राप्त किया होता है। उन्हें उन साधनों के छिन जाने का डर सदा बना रहता है इसी वजह से कवि ने अमीरों के सुख को अस्थायी कहा है।

 

प्रश्न 2 – बादल व् क्रान्ति से लोगों को क्या उम्मीद है?

उत्तर संसार का हृदय  शोषण रूपी अग्नि से जला हुआ है और बादल दुःख व् शोषण से ग्रस्त संसार पर जल बरसा कर शोषण के खिलाफ लोगों के मन में दबे क्रान्ति के बीज को अंकुरित करता है। जिस प्रकार लोगों को उम्मीद होती है कि बादल जल बरसा कर गर्मी से राहत देगा उसी प्रकार लोगों को क्रान्ति से उम्मीद है कि उन्हें शोषण से मुक्ति मिलेगी।

प्रश्न 3 – ‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर, क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर, गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर।’ का क्या आशय है।

उत्तर आकाश की ऊँचाइयों को छूने की इच्छा रखने वाले ऊँचे-ऊँचे पर्वत भी बिजली गिरने से उस प्रकार खंडित अथवा नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार युद्ध भूमि में हथियारों के प्रहार से बड़े-बड़े वीर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि क्रांति से बड़े लोग या पूँजीपति ही प्रभावित होते हैं।

 

प्रश्न 4  – ‘विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर – क्रांति से बड़े लोग या पूँजीपति ही प्रभावित होते हैं। इसके विपरीत, पर्वतों के खंडित होने पर छोटे पौधे हँसते हैं, वे इससे अपार हरियाली प्राप्त करते हैं, और प्रसन्न होकर हाथ हिलाकर तुझे अर्थात बादल को बुलाते हैं। विनाश के शोर से सदा छोटे प्राणियों को ही लाभ मिलता है। क्रांति से शोषित व दलित वर्ग को लाभ मिलता है अर्थात शोषित वर्ग जब शोषण के विरुद्ध आवाज उठाते हैं, तो बड़े से बड़े पूंजीपतियों का घमंड चूर-चूर हो जाता है।

 

प्रश्न 5 – ‘तुझे बुलाता कृषक अधीर’ से कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर – कवि बादल अर्थात क्रांतिकारी से कहता है कि शोषण के कारण किसान की भुजाएँ बलहीन हो गई हैं, उसका शरीर कमजोर हो गया है। वह बैचेन हो कर तुझे बुला रहा है। कहने का अभिप्राय यह है कि शोषित वर्ग शोषण के कारण अत्यधिक कमजोर हो गया है और अब वह शोषण को ख़त्म करने के लिए बैचेन है। शोषकों ने शोषित वर्ग की जीवन-शक्ति छीन ली है अर्थात उनका रक्त रूपी सार तत्त्व चूस लिया है। अब वह केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। कवि बादल अर्थात क्रांतिकारियों से कहता है कि तुम बरस कर किसान की गरीबी दूर करो अर्थात क्रांति करके शोषण को समाप्त करो।


लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप

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