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Saturday, April 27, 2024

अलंकार कक्षा 9 वी व 10 वी अलंकार की परिभाषा भेद और उदाहरण –ALANKAR CLASS 9,10

 

अलंकार कक्षा 9 वी व 10 वी



अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण :-

अलंकारकाव्य (कविता ) के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्त्व होते हैं। जिस प्रकार आभूषण से नारी का लावण्य बढ़ जाता है, उसी प्रकार अलंकार से कविता की शोभा बढ़ जाती है। शब्द तथा अर्थ की जिस विशेषता से काव्य का शृंगार होता है उसे ही अलंकार कहते हैं। कहा गया है - 'अलंकरोति इति अलंकारः' (जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।)

जिस साधन से काव्य के शब्द और अर्थ में वृद्धि होती हैउसे अलंकार कहते हैं।

अलंकार के भेद उदाहरण सहित

अलंकार के दो भेद होते हैं-

1.      शब्दालंकार (कक्षा - 9 वी के लिए )

2.      अर्थालंकार (कक्षा - 10 वी के लिए )

1. शब्दालंकार-जहाँ काव्य में शब्दों के प्रयोग से चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ शब्दालंकार होता है। शब्द के दो रूप होते हैं-ध्वनि और अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार होता है। इस अलंकार में वर्ण या शब्द की लयात्मकता और संगीतात्मकता होती है। इसमें अर्थ का चमत्कार नहीं होता।

शब्दालंकार के भेद शब्दालंकार के तीन भेद होते हैं-

1.      अनुप्रास,

2.      यमक,

3.      श्लेष।

1. अनुप्रास-वर्णों की आवृत्ति अनुप्रास कहलाती है। कविता में जहाँ वर्णों की आवृत्ति से चमत्कार उत्पन्न होता है, उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
कल कानन कुंडल मोरपखा,
उर पै बनमाल बिराजति है।

इसमें ‘क’ और ‘ल’ की तीन-तीन बार और ‘ब’ वर्ण की दो बार आवृत्ति के कारण काव्य-सौंदर्य में चमत्कार उत्पन्न हुआ है। इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार का उदाहरण

1.      चारुचंद्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल-थल में।

2.      ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल-गैल।

3.      रस सिंगार मंजनु किए, कंजनु भंजनु नैन। अंजनु रंजनु हूँ बिना, खंजनु गंजनु नैन।

4.      पूत सपूत तो क्यों धन संचय? पूत कपूत तो क्यों धन संचय?

5.   यवन को दिया दया का दान।

6.      जेठ के दारुण आतप से तप के जगती-तल जावे जला।

7.      पर पहुँचेगा पक्षी दूसरे तट पर उस दिन।

8.      कितनी करुणा कितने संदेश।

9.      बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला।

10.  इस सोते संसार बीच।

11.  संसार की समर-स्थली में धीरता धारण करो।

12.  बढ़त-बढ़त संपत्ति सलिल, मन-सरोज बढ़ जाइ।

13.  तरणि तनूजा तट-तमाल तरुवर बहु छाए।

14.  लाजति लपेटी चितवन भेद माघ भरी लसित ललित लोल चख तिरछनि मैं।

2. यमक-कविता की जिन पंक्तियों में एक शब्द एक से अधिक बार आकर भिन्न-भिन्न अर्थ प्रदान करता है, वहाँ यमक अलंकार होता है। जैसे-
कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय।

बिहारी के दोहे की इस पंक्ति में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। पहले ‘कनक’ शब्द का अर्थ ‘सोना’ है और दूसरे ‘कनक’ का अर्थ धतूरा है। इसका अर्थ है सोने अर्थात् धन में धतूरे से सौ गुणा अधिक नशा होता है। इसलिए यहाँ यमक अलंकार है।

यमक अलंकार के उदाहरण

1. माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर॥

इस दोहे में ‘मनका’ शब्द का प्रयोग चार बार हुआ है। दूसरे और चौथे ‘मनका’ का अर्थ है ‘माला का दाना’। पहले और तीसरे शब्द ‘मन का’ तोड़कर आए हैं। इनका अर्थ है ‘हृदय का’।

इसमें ‘फेर’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। पहले ‘फेर’ का अर्थ है-हेरा-फेरी, चक्कर आदि। दूसरे ‘फेर’ का अर्थ है ‘फेरना’। इसलिए यहाँ यमक अलंकार है।

2. काली घटा का घमंड घटा।
घटा = बादलों का समूह; घटा = कम हो गया।

3. तो पर वारौं उरबसी, सुनि राधिके सुजान।
तू मोहन के उर बसी, ह्वै उरबसी समान॥
उरबसी = उर्वशी, अप्सरा;
उर बसी = हृदय में बसी;
उरबसी = गले में पहना जाने वाला आभूषण।

4. कहै कवि बेनी, बेनी व्याल की चुराय लीनी।
बेनी = कवि का नाम; बेनी = चोटी।

5. रति-रति सोभा सब रति के सरीर की।
रति-रति = ज़रा-जरा सी; रति = कामदेव की पत्नी।

6. तीन बेर खाती थीं वे तीन बेर खाती हैं
तीन बेर = तीन बार; तीन बेर = बेर के तीन फल।

3. श्लेष-कविता की जिन पंक्तियों में किसी शब्द का प्रयोग एक ही बार होता है और उसके अर्थ एक से अधिक होते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है; जैसे-
मधुबन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।

इसमें ‘कलियाँ’ शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है परंतु इसके दो अर्थ निकलते हैं-
(क) फूल के खिलने से पहले की स्थिति अर्थात् कली
(ख) यौवन से पहले की अवस्था। इसलिए यहाँ श्लेष अलंकार है।

श्लेष अलंकार के उदाहरण

1. रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून॥
दूसरी पंक्ति में आए ‘पानी’ शब्द के तीन भिन्न अर्थ निकलते हैं
(क) मोती के लिए चमक
(ख) मनुष्य के लिए सम्मान
(ग) चूने के लिए जल।

2. चिरजीवो जोरी जुरै, क्यों न स्नेह गंभीर।
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर॥
वृषभानुजा = वृषभ + अनुजा अर्थात् बैल की बहन (गाय)
वृषभानुजा = वृषभानु + जा अर्थात् वृषभानु की पुत्री (राधा)
हल को धारण करने वाला अर्थात् बैल
हलधर – हल को धारण करने वाला अर्थात् बलराम (हलधर के बीर का अर्थ हुआ बलराम का भाई कृष्ण) ‘वृषभानुजा और हलधर’ के दो-दो अर्थों के कारण यहाँ श्लेष अलंकार है।

3. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करै, बढ़े अँधेरो होय॥
बारे = जलना बारे = जन्म लेना।
बढ़े = बुझना बढ़े = बड़ा होना।

4. चरन धरत शंका करत, चितवन चारिहु ओर।
सुबरन को ढूँढ़त फिरत, कवि कामी अरु चोर॥
सुबरन = अच्छे वर्ण (अक्षर), अच्छा रंग-रूप, सोना।

5. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहि।
सुभर = शुभ
(पवित्र), भरपूर।

अर्थालंकार - कक्षा 10 वी class 10 

अर्थालंकार-काव्य की पंक्तियों में जहाँ अर्थ के कारण चमत्कार उत्पन्न होता है, उसे अर्थालंकार कहते हैं। इसमें शब्द के कारण नहीं अपितु अर्थ के कारण कविता के सौंदर्य में वृद्धि होती है।

अर्थालंकार के भेद

अर्थालंकार के प्रमुख भेद हैं-

1.      उपमा

2.      रूपक

3.      उत्प्रेक्षा

4.      मानवीकरण

5.      अतिशयोक्ति।

1. उपमा अलंकार-जहाँ किसी व्यक्ति या वस्तु आदि के स्वभाव, स्थिति, रूप और गुण आदि की तुलना या समानता किसी अन्य के साथ की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है; जैसे-

पीपर पात सरिस मन डोला।
यहाँ मन के डोलने और पीपल के पत्ते के हिलने में समानता प्रकट की गई है। इसलिए यहाँ उपमा अलंकार है। उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं-
(क) उपमेय
(ख) उपमान
(ग) साधारण धर्म
(घ) वाचक

(क) उपमेय-जिस वस्तु या व्यक्ति आदि की समता या तुलना की जाए, उसे उपमेय कहते हैं। उपमेय प्रस्तुत होता है। ऊपर के उदाहरण में ‘मन’ उपमेय है।
(ख) उपमान-जिस वस्तु या व्यक्ति आदि के साथ उपमेय की समानता या तुलना की जाती है, उसे उपमान कहते हैं। उपमान अप्रस्तुत होता है। ऊपर के उदाहरण में ‘पीपर पात’ उपमान है।
(ग) साधारण धर्म-उपमेय और उपमान में जिस गुण की समानता होती है अर्थात् इन दोनों में जो गुण एक जैसा होता है, उसे साधारण धर्म कहते हैं। उदाहरण में ‘डोला’ साधारण धर्म है।
(घ) वाचक-जो शब्द उपमेय और उपमान में समानता प्रकट करता है, उसे वाचक शब्द कहते हैं। उदाहरण में ‘सरिस’ वाचक शब्द है।

ऐसा, सा, जैसा, समान, सो, से, सरिस, सदृश, ज्यों, नाईं, तरह, तुल्य, जैसहि, तैसहि आदि वाचक शब्द हैं। इनका प्रयोग उपमा अलंकार में किया जाता है।

उपमा अलंकार

काव्य में जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना दूसरे समान गुण वाले व्यक्ति या वस्तु से की जाती है तब उपमा अलंकार  होता है। उदाहरण -

१)सीता के पैर कमल समान हैं ।

२)नील गगन सा शांत रस था रो रहा ।

३)हरि पद कोमल कमल से ।

४)पीपर पात सरिस मन डोला ।


उपमा अलंकार के उदाहरण हिंदी में

गा रही है यामिनी मधुर, कोकिला-सी।
इसमें उपमेय-यामिनी, उपमान-कोकिला, साधारण धर्म-मधुर, वाचक शब्द-सी है।
यह देखिए अरविंद-से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
उपमेय-शिशुवृंद, उपमान-अरविंद, साधारण धर्म-नहीं है, वाचक शब्द-से।

अन्य उदाहरण

·        मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला।

·        कमल-कोमल कर में सप्रीत।

·        हाय फूल-सी, कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी।

·        नदियाँ जिसकी यशधारा-सी, बहती हैं अब भी निशि-वासर।

·        किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा।

·        सिंधु-सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह।

·        तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।

2. रूपक अलंकार-जहाँ उपमेय और उपमान की समानता प्रकट करने के लिए उपमेय में ही उपमान का आरोप किया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। रूपक अलंकार में साधारण धर्म और वाचक शब्द नहीं होते। उपमेय और उपमान में प्रायः योजक चिह्न होता है। जैसे वन शारदी चंद्रिका-चादर ओढ़े। ‘चंद्रिका-चादर’ में, उपमेय ‘चंद्रिका’ पर उपमान ‘चादर’ का आरोप किए जाने पर यहाँ रूपक अलंकार है।

रूपक अलंकार के उदाहरण

1.     चरण-कमल वंदौ हरिराई।

2.     अंबर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट उषा-नागरी।

3.     आए महंत वसंत।

4.     उदित उदयगिरी-मंच पर, रघुबर-बाल पतंग।, विकसे संत-सरोज सब, हरषै लोचन-भंग।

5.     मन-सागर मनसा-लहरि, बूढ़े बहे अनेक।

6.     एक राम-घनश्याम हित चातक तुलसीदास।

7.     मैया मैं तो चंद्र-खिलौना लैहों।

8.     राम नाम मणि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार।

3. उत्प्रेक्षा अलंकार-जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना प्रकट की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जानहु आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है; जैसे-
कहती हुई उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिमकणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए॥

उत्तरा के अश्रुपूर्ण नेत्र’ उपमेय में हिमकणों (ओस) से पूर्ण पंकज- उपमान की संभावना के कारण यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है। यहाँ ‘मानो’ वाचक शब्द है।
उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा॥

यहाँ ‘तनु’ उपमेय में सोता हुआ सागर’ उपमान की संभावना है। ‘मानो’ वाचक शब्द है। यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण

1. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।, मनहु नील मनि सैल पर आतप पर्यो प्रभात।
2. झुककर मैंने पूछ लिया, खा गया मानो झटका।
3. ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो।
4. मनु दृग फारि अनेक जमुन निरखत ब्रज सोभा।

4. अतिशयोक्ति अलंकार-जहाँ किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे-
हनूमान की पूंछ में, लगन न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग॥

हनुमान की पूंछ में आग लगने से पूर्व ही सारी लंका के जल जाने का वर्णन किए जाने के कारण यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण-

1. आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार॥

2. वह शर इधर गांडीव-गुण से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ॥

3. देख लो साकेत है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।

4. छुवत टूट रघुपतिहि न दोषू।
मुनि! बिन कारन करिय कत रोषू॥

5. मानवीकरण अलंकार-कविता में जहाँ मानवेतर वस्तुओं, प्रकृति और जड़ पदार्थों आदि का मानवीय भावों और क्रियाओं के रूप में चित्रण किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।

सागर के उर पर नाच-नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।

यहाँ सागर-लहरों का कन्याओं के रूप में चित्रण किया गया है। सागर-लहरों में मानवीकरण अलंकार है।
फटा जूता बन गया है,
थके गोवरधन का जीवन।

यहाँ ‘फटा जूता’ में मानवीकरण अलंकार है। गोवरधन को फटा जूता मान लिया गया है।
दिवावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है
संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे।

यहाँ संध्या सुंदरी में मानवीकरण अलंकार है। मानवीकरण अलंकार के अन्य उदाहरण-
1. बीती विभावरी जाग री,
अंबर-पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा-नागरी।

2. राधिका बन लहरा रही,
कुंज की छरहरी लताएँ।

3. बूढा बरगद फिर मुस्काया,
अकुलाती लता को फिर समझाया।

4. पाग पीली बाँधकर,
झूमता गाता आया वसंत।

1. यमक और श्लेष अलंकार में अंतर
यमक अलंकार में एक शब्द एक से अधिक बार आता है और उसका अलग-अलग अर्थ होता है।
श्लेष अलंकार में शब्द एक ही बार आता है परंतु उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं; जैसे-
काली घटा का घमंड घटा। (यमक अलंकार)

घटा’ शब्द दो बार आया है। दोनों के अलग-अलग अर्थ हैं। पहले ‘घटा’ शब्द का अर्थ है बादल और दूसरे ‘घटा’ शब्द का अर्थ ‘कम होना’ है।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून। (श्लेष अलंकार)

पानी’ शब्द के कारण यहाँ श्लेष अलंकार है। ‘पानी’ शब्द एक ही बार आया है परंतु उसके चमक, सम्मान और जल तीन अर्थ निकलते हैं।

2. उपमा और रूपक अलंकार में अंतर
उपमा अलंकार में दो व्यक्तियों या वस्तुओं आदि में समानता या तुलना की जाती है।
रूपक अलंकार में दो व्यक्तियों या वस्तुओं को उनके समान गुणों के कारण एकरूप कर दिया जाता है।
सूर्य-सा आलोकित हमारा भारत। (उपमा)
भारत-सूर्य विश्व को देगा प्रकाश। (रूपक)

उपमा अलंकार में भारत-उपमेय, सूर्य-उपमान, आलोकित-समान धर्म और सा-वाचक शब्द हैं। यहाँ भारत और सूर्य में समानता प्रकट की गई है।
रूपक अलंकार में भारत (उपमेय) में सूर्य (उपमान) का आरोप किया गया है।

3. उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर
उपमा अलंकार में दो व्यक्तियों या वस्तुओं में समानता दर्शायी जाती है; जैसे-हमारा भारत सूर्य के समान प्रकाशमान है (सूर्य-सा आलोकित हमारा भारत)। इसमें संदेह या संभावना नहीं है।

उत्प्रेक्षा अलंकार में संभावना या संदेह बना रहता है। जैसे-
सूर्य-सा मानो आलोकित, हमारा भारत।
यहाँ ‘मानो’ के कारण संभावना प्रकट होती है। इसलिए यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

विभिन्न स्रोतों से साभार संग्रहीत 

अपने  पाठ्यपुस्तक से उक्त अलंकारों का उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने शिक्षक से जांच करवाएँ 

Thursday, April 25, 2024

बालगोबिन भगत – सार Class 10th Hindi पाठ का सार,शब्दार्थ, प्रश्न और उत्तर - बालगोबिन भगत क्षितिज भाग - 2

 

बालगोबिन भगत (राम वृक्ष बेनीपुरी )

बालगोबिन भगत – Class 10th Hindi

पाठ का सार,शब्दार्थ, प्रश्न और उत्तर  - बालगोबिन भगत क्षितिज भाग - 2

पाठ का सार-

बालगोबिन भगत मंझोले कद के गोर-चिट्टे आदमी थे। उनकी उम्र साठ वर्ष से उपर थी और बाल पक गए थे। वे लम्बी ढाढ़ी नही रखते थे और कपडे बिल्कुल कम पहनते थे। कमर में लंगोटी पहनते और सिर पर कबीरपंथियों की सी कनफटी टोपी। सर्दियों में ऊपर से कम्बल ओढ़ लेते। वे गृहस्थ होते हुई भी सही मायनों में साधू थे। माथे पर रामानंदी चन्दन का टीका और गले में तुलसी की जड़ों की बेडौल माला पहने रहते। उनका एक बेटा और पतोहू थे। वे कबीर को साहब मानते थे। किसी दूसरे की चीज़ नही छूटे और न बिना वजह झगड़ा करते। उनके पास खेती बाड़ी थी तथा साफ़-सुथरा मकान था। खेत से जो भी उपज होती, उसे पहले सिर पर लादकर कबीरपंथी मठ ले जाते और प्रसाद स्वरुप जो भी मिलता उसी से गुजर बसर करते।

वे कबीर के पद का बहुत मधुर गायन करते। आषाढ़ के दिनों में जब समूचा गाँव खेतों में काम कर रहा होता तब बालगोबिन पूरा शरीर कीचड़ में लपेटे खेत में रोपनी करते हुए अपने मधुर गानों को गाते। भादो की अंधियारी में उनकी खँजरी बजती थी, जब सारा संसार सोया होता तब उनका संगीत जागता था। कार्तिक मास में उनकी प्रभातियाँ शुरू हो जातीं। वे अहले सुबह नदी-स्नान को जाते और लौटकर पोखर के ऊँचे भिंडे पर अपनी खँजरी लेकर बैठ जाते और अपना गाना शुरू कर देते। गर्मियों में अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। उनकी संगीत साधना का चरमोत्कर्ष तब देखा गया जिस दिन उनका इकलौता बेटा मरा। बड़े शौक से उन्होंने अपने बेटे कि शादी करवाई थी, बहू भी बड़ी सुशील थी। उन्होंने मरे हुए बेटे को आँगन में चटाई पर लिटाकर एक सफ़ेद कपड़े से ढक रखा था तथा उसपर कुछ फूल बिखरा पड़ा था। सामने बालगोबिन ज़मीन पर आसन जमाये गीत गाये जा रहे थे और बहू को रोने के बजाये उत्सव मनाने को कह रहे थे चूँकि उनके अनुसार आत्मा परमात्मा पास चली गयी है, ये आनंद की बात है। उन्होंने बेटे की चिता को आग भी बहू से दिलवाई। जैसे ही श्राद्ध की अवधि पूरी हुई, बहू के भाई को बुलाकर उसके दूसरा विवाह करने का आदेश दिया। बहू जाना नही चाहती थी, साथ रह उनकी सेवा करना चाहती थी परन्तु बालगोबिन के आगे उनकी एक ना चली उन्होंने दलील अगर वो नही गयी तो वे घर छोड़कर चले जायेंगे।
बालगोबिन भगत की मृत्यु भी उनके अनुरूप ही हुई। वे हर वर्ष गंगा स्नान को जाते। गंगा तीस कोस दूर पड़ती थी फिर भी वे पैदल ही जाते। घर से खाकर निकलते तथा वापस आकर खाते थे, बाकी दिन उपवास पर। किन्तु अब उनका शरीर बूढ़ा हो चूका था। इस बार लौटे तो तबीयत ख़राब हो चुकी थी किन्तु वी नेम-व्रत छोड़ने वाले ना थे, वही पुरानी दिनचर्या शुरू कर दी, लोगों ने मन किया परन्तु वे टस से मस ना हुए। एक दिन अंध्या में गाना गया परन्तु भोर में किसी ने गीत नही सुना, जाकर देखा तो पता चला बालगोबिन भगत नही रहे।
लेखक परिचय
रामवृक्ष बेनीपुरी
इनका जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में सन 1889 में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो जाने के कारण , आरम्भिक वर्ष अभावों-कठिनाइयों और संघर्षों में बीते। दसवीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे सन 1920 में राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में सक्रीय रूप से जुड़ गए। कई बार जेल भी गए।इनकी मृत्यु सन 1968 में हुई।

उपन्यास - पतितों के देश में
कहानी - चिता के फूल
नाटक - अंबपाली
रेखाचित्र - माटी की मूरतें
यात्रा-वृत्तांत - पैरों में पंख बांधकर
संस्मरण - जंजीरें और दीवारें।

कठिन शब्दों के अर्थ

मँझोला - ना बहुत बड़ा ना बहुत छोटा
कमली जटाजूट - कम्बल
खामखाह - अनावश्यक
रोपनी - धान की रोपाई
कलेवा - सवेरे का जलपान
पुरवाई - पूर्व की ओर से बहने वाली हवा
मेड़ - खेत के किनारे मिटटी के ढेर से बनी उँची-लम्बीखेत को घेरती आड़
अधरतिया - आधी रात
झिल्ली - झींगुर
दादुर - मेढक
खँझरी - ढपली के ढंग का किन्तु आकार में उससे छोटा वाद्यंत्र
निस्तब्धता - सन्नाटा
पोखर - तालाब
टेरना - सुरीला अलापना
आवृत - ढका हुआ
श्रमबिंदु - परिश्रम के कारण आई पसीने की बून्द
संझा - संध्या के समय किया जाने वाला भजन-पूजन
करताल - एक प्रकार का वाद्य
सुभग - सुन्दर
कुश - एक प्रकार की नुकीली घास
बोदा - काम बुद्धि वाला
सम्बल - सहारा
 

पठित गदयांश आधारित प्रश्न

1-   पठित  गद्यान्श के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के सही विकल्प लिखिए                   (1×5=5)

किन्तु खेतीबारी करते , परिवार रखते भी , बालगोबिन भगत साधु थे –साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरने वाले | कबीर कोसाहब मानते थे ,उन्हीं के गीतों को गाते ,उन्हीं के आदेशों पर चलते | कभी झूठ नहीं बोलते ,खरा व्यवहार रखते थे | किसी से भी दो टूक बात करने में संकोच नहीं करते , न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते | किसी की चीज नहीं छूते , न बिना पूछे व्यवहार में लाते | इस नियम को कभी –कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कौतूहल होता ! –कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते ! वह गृहस्थ थे ; लेकिन उनकी सब चीज साहब कि थी | जो कुछ खेत में पैदा होता , सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते जो उनके घर से चार कोस दूर पर था | -एक कबीरपंथी मठ ! वह दरबार में भेंट रूप रख देते और प्रसाद रूप में जो उन्हें मिलता ,उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते ! इन सबके ऊपर , मैं तो मुग्ध था उनके मधुर गान पर – जो सदा सर्वदा ही सुनने को मिलते | कबीर के वे सीधे –सादे पद , जो उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठते |

     (क)-दो टूक बात करने से क्या अभिप्राय है ?

 1- भगत अपनी बात स्पष्ट रूप से बिना किसी संकोच के कहते थे

 2-भगत अपनी बात कहने में संकोच करते थे                 

 3- अस्पष्टवादी होना               4- इनमें से कोई नहीं 

      (ख)-भगत के खेत में जो उत्पन्न होता ,उसे वे भेंट स्वरूप कहाँ भेंट कर आते थे ?

1-कबीर पंथी मठ में                                     2- मंदिर में         

3- दान में                                                 4- ये सभी

      (ग)-भगत स्वयं अपना निर्वाह कैसे चलाते थे ?

1- प्रसाद रूप में जो उन्हें मिलता उससे                         2- अपनी खेती करके

3-मेहनत करके                                                       4- इनमें से कोई नहीं

      (घ)-भगत को किसकी संज्ञा दी गई है ?

            1-साधु           2-संगीतकार    3- साहब की          4- ये सभी

      (ड॰)-मैं तो मुग्ध था उनके मधुर गान पर , पंक्ति में मैं शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया गया है ?

1-बालगोबिन भगत के लिए                     2- लेखक के लिए      3. कबीर के लिए    4- ये सभी

3-                                     

उत्तर –   क-भगत अपनी बात स्पष्ट रूप से बिना किसी संकोच के कहते थे       

ख-कबीर पंथी मठ में 

ग-प्रसाद रूप में जो उन्हें मिलता उससे                       घ-साधु                      ड॰-लेखक के लिए

                                                     

ख –निम्न लिखित प्रश्नों के सही विकल्प लिखिए

1-    बालगोबिन भगत पाठ में भगत पतोहू के पुनर्विवाह के रूप में समाज कि किस समस्या का समाधान प्रस्तुत करना चाहते हैं ?

1-विधवा विवाह                 2-सती प्रथा         3-बाल –विवाह         4-इनमें से कोई नहीं

      उत्तर-विधवा विवाह

2-    भगत के संगीत के जादू क प्रभाव किस –किस पर पड़ता था ?

           1-किसानों व आस –पास खेलते हुए बच्चों पर           2- संत कबीर पर   

       3- कार्तिक पर                                                  4-इनमें से कोई नहीं

         उत्तर –किसानों व आस –पास खेलते हुए बच्चों पर

-वर्णनात्मक प्रश्न-

प्रश्न अभ्यास 

1. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर- बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे परन्तु उनमें साधु कहलाने वाले गुण भी थे -

1. कबीर के आर्दशों पर चलते थे, उन्हीं के गीत गाते थे।
2. कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे।
3. किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से झगड़ा करते थे।
4. किसी की चीज़ नहीं छूते थे न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे।
5. कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे कबीरपंथी मठ में ले जाते, वहाँ से जो कुछ भी भेंट स्वरुप मिलता था उसे प्रसाद स्वरुप घर ले जाते थे।
6. उनमें लालच बिल्कुल भी नहीं था।

2. भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर-भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती थी क्योंकि भगत के बुढ़ापे का वह एकमात्र सहारा थी। उसके चले जाने के बाद भगत की देखभाल करने वाला और कोई नहीं था।

3. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उत्तर-बेटे की मृत्यु पर भगत ने पुत्र के शरीर को एक चटाई पर लिटा दिया, उसे सफेद चादर से ढक दिया तथा वे कबीर के भक्ति गीत गाकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करने लगे। भगत ने अपने पुत्रवधू से कहा कि यह रोने का नहीं बल्कि उत्सव मनाने का समय है| विरहिणी आत्मा अपने प्रियतम परमात्मा के पास चली गई है| उन दोनों के मिलन से बड़ा आनंद और कुछ नहीं हो सकती| इस प्रकार भगत ने शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता का भाव व्यक्त किया|


4. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे लेकिन उनमें साधु संन्यासियों के गुण भी थे। वे अपने किसी काम के लिए दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहते थे। बिना अनुमति के किसी की वस्तु को हाथ नहीं लगाते थे। कबीर के आर्दशों का पालन करते थे। सर्दियों में भी अंधेरा रहते ही पैदल जाकर गंगा स्नान करके आते थे तथा भजन गाते थे।

वेशभूषा से ये साधु लगते थे। इनके मुख पर सफे़द दाढ़ी तथा सिर पर सफे़द बाल थे, गले में तुलसी के जड़ की माला पहनते थे, सिर पर कबीर पंथियों की तरह टोपी पहनते थे, शरीर पर कपड़े बस नाम मात्र के थे। सर्दियों के मौसम में बस एक काला कंबल ओढ़ लेते थे तथा मधुर स्वर में भजन गाते-फिरते थे।

5. बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?

उत्तर-बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए बन गई थी क्योंकि वे जीवन के सिद्धांतों और आदर्शों का अत्यंत गहराई से पालन करते हुए उन्हें अपनेआचरण में उतारते थे। वृद्ध होते हुए भी उनकी स्फूर्ति में कोई कमी नहीं थी। सर्दी के मौसम में भी, भरे बादलों वाले भादों की आधी रात में भी वे भोर में सबसे पहले उठकर गाँव से दो मील दूर स्थित गंगा स्नान करने जाते थे, खेतों में अकेले ही खेती करते तथा गीत गाते रहते। विपरीत परिस्थिति होने के बाद भी उनकी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आता था। एक वृद्ध में अपने कार्य के प्रति इतनी सजगता को देखकर लोग दंग रह जाते थे।

6. पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-भगत जी कबीर के गीत गाते थे। वे बहुत मस्ती से गाया करते थे।कबीर के पद उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठते थे , उनका स्वर बहुत मधुर था। उनके गीत सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। औरतें उस गीत को गुनगुनाने लगतीं थी। उनके गीत का मनमोहक प्रभाव सारे वातावरण में छा जाता था।

7. कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-कुछ ऐसे मार्मिक प्रसंग है, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि बालगोबिन भगत उनप्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे, जो विवेक की कसौटी पर खरी नहीं उतरती थीं। उदाहरणस्वरुप:
1. बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु हो गई, तो उन्हों ने सामाजिक परंपराओं के अनुरूप अपने पुत्र का क्रिया-कर्म नहीं किया। उन्होंने कोई तूल न करते हुए बिना कर्मकांड के श्राद्ध-संस्कार कर दिया।

2. सामाजिक मान्यता है की मृत शरीर को मुखाग्नि पुरूष वर्ग के हाथों दी जाती है। परंतु भगत ने अपने पुत्र को मुखाग्नि अपनी पुत्रवधू से ही दिलाई।
3. हमारे समाज में विधवा विवाह को मान्यता नहीं दी गई है, परंतु भगत ने अपननी पुत्रवधू को पुनर्विवाह करने का आदेश दे दिया। 

4. अन्य साधुओं की तरह भिक्षा माँगकर खाने के विरोधी थे।

8. धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं ? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- 
आषाढ़ की रिमझिम फुहारों के बीच खेतों में धान की रोपाई चल रही थी। बादल से घिरे आसमान में, ठंडी हवाओं के चलने के समय अचानक खेतों में से किसी के मीठे स्वर गाते हुए सुनाई देते हैं। बालगोबिन भगत के कंठ से निकला मधुर संगीत वहाँ खेतों में काम कर रहे लोगों के मन में झंकार उत्पन्न करने लगा। स्वर के आरोह के साथ एक-एक शब्द जैसे स्वर्ग की ओर भेजा जा रहा हो। उनकी मधुर वाणी को सुनते ही लोग झूमने लगते हैं, स्त्रियाँ स्वयं को रोक नहीं पाती है तथा अपने आप उनके होंठ काँपकर गुनगुनाते लगते हैं। हलवाहों के पैर गीत के ताल के साथ उठने लगे। रोपाई करने वाले लोगों की उँगलियाँ गीत की स्वरलहरी के अनुरूप एक विशेष क्रम से चलने लगीं बालगोबिन भगत के गाने सेसंपूर्ण सृष्टि मिठास में खो जाती है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न 

1- 1  भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेषभूषा क अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए ?/बालगोबिन भगत का संक्षिप्त पहचान लिखिए ?

उत्तर –भगत जी गृहस्थ होते हुए भी सीधे –सरल साधु थे |मंझौले कद ,गोरे –चिट्टे थे | बाल सफ़ेद हो गए थे | वे प्राय: कमर में एक लंगोटी –सी पहने रहते थे और सिर पर कबीरपंथी की भांति एक कनपटी टोपी पहने रहते थे | सर्दियों में वे काला कंबल ओढ़े रहते थे | उनके माथे में सदा एक रामानंदी चन्दन सुशोभित रहता था | उनके गले में तुलसी की माला बंधी रहती थी |

 

2-  बाल गोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषता लिखिए ?

       उतर -भगत जी प्रभु –भक्ति के गीत गाया करत थे |उनके गानों में सच्ची टेर हुआ करती थी | उनका स्वर इतना मोहक , ऊँचा और आरोही होता था कि सुनने वाले मंत्र मुग्ध हो जाते थे | औरतें उस गीत को गुनगुनाने लगते थे |चाहे सर्दी हो या गर्मी उन्हें डिगा नहीं सकती थी | उनके संगीत का जादुई प्रभाव सभी पर छा जाता था |

3-  भगत जी ने बेटे की मृत्यु के बाद क्या किया ?

   उत्तर- भगत जी ने बेटे की मृत्यु के अवसर को उत्सव की तरह मनाया उनहोंने  पुत्र के शव को धरती पर लिटाया | उसे सफ़ेद वस्त्र से ढककर फूलों से सजाया | उसके सिरहाने पर एक दीपक रखा और प्रभु भक्ति के गीत गाने लगे | उनका मानना था कि बेटे कि आत्मा परमात्मा से मिल गई है |

4-  भगत जी की पतोहू किन कारणों से अपने भाई के साथ जाने को तैयार नहीं हुई ?

       उत्तर-भगत जी की पतोहू अपने ससुर के प्रति अगाध श्रद्धा ,आत्मीयता और अपनत्व रखती थीं | उसने ससुर की सेवा को अपना धर्म मान लिया था इसलिए वह अपने भाइयों के साथ जाने को तैयार नहीं हुई ।

 5 आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?

उत्तर
भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के निम्नलिखित कारण रहे होंगे -

1. कबीर का आडम्बरों से रहित सादा जीवन 

2. सामाजिक कुरीतियों का अत्यंत विरोध करना
3.
कामनायों से रहित कर्मयोग का आचरण
4.
ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम
5. 
भक्ति से परिपूर्ण मधुर गीतों की रचना
6.
आदर्शों को व्यवहार में उतरना

11. गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?

उत्तर-आषाढ़ की रिमझिम बारिश में भगत जी अपने मधुर गीतों को गुनगुनाकर खेती करते हैं। उनके इन गीतों के प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि रम जाती है, स्त्रियोँ भी इससे प्रभावित होकर गाने लगती हैं। इसी लिए गाँव का परिवेश उल्लास से भर जाता है।

12. "
ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।" क्या 'साधु' की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यहसुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति 'साधु' है?

उत्तर-एक साधु की पहचान उसके पहनावे से नहीं बल्कि उसके अचार - व्यवहार तथा उसकी जीवन प्रणाली पर आधारित होती है। यदि व्यक्ति का आचरण सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, त्याग, लोक-कल्याण आदि से युक्त है, तभी वह साधु है। साधु का जीवन सात्विक होता है। उसका जीवन भोग-विलास की छाया से भी दूर होता है।  उसके मन में केवल इश्वर के प्रति सच्ची भक्ति होती है। 

13. मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?

उत्तर-मोह और प्रेम में निश्चित अंतर होता है मोह में मनुष्य केवल अपने स्वार्थ की चिंता करता प्रेम में वह अपने प्रियजनों का हित देखता है भगत को अपने पुत्र तथा अपनी पुत्रवधू से अगाध प्रेम था। परन्तु उसके इस प्रेम ने प्रेम की सीमा को पार कर कभी मोह का रुप धारण नहीं किया। दूसरी तरफ़ वह चाहते तो मोह वश अपनी पुत्रवधू को अपने पास रोक सकते थे परन्तु उन्होंने अपनी पुत्रवधू को ज़बरदस्ती उसके भाई के साथ भेजकर उसके दूसरे विवाह का निर्णय किया।इस घटना द्वरा उनका प्रेम प्रकट होता है। बालगोबिन भगत ने भी सच्चे प्रेम का परिचय देकर अपने पुत्र और पुत्रवधू की खुशी को ही उचित माना।


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