(ख) लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप
लक्ष्मण मूर्छा व
राम का विलाप की व्याख्या -
दोहा –
तव प्रताप उर राखि
प्रभु, जैहउँ नाथ तुरंग।
अस कहि आयसु पाह पद, बदि
चलेउ हनुमत।
भरत बाहु बल सील
गुन, प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत, पुनि-पुनि
पवनकुमार।।
कठिन शब्द –
तव – तुम्हारा, आपका प्रताप –
यश, गौरव, तेज उर – हृदय राखि – रखकर
जैहऊँ – जाऊँगा नाथ –
स्वामी अस – इस
तरह आयसु – आज्ञा
पाड़ – पाकर पद – चरण, पैर बदि – वंदना
करके बहु – भुजा
सील –
सद्व्यवहार गुन – गुण प्रीति –
प्रेम अयार –
अधिक
महुँ –
में सराहत – बड़ाई
करते हुए पुनि-पुनि –
फिर-फिर पवनकुमार –
हनुमान
व्याख्या – उपरोक्त
दोहे में हनुमान जी भरत जी से कहते हैं कि हे! प्रभु मैं आपके गौरव व् यश को अपने
हृदय में धारण करके समय से वहाँ अर्थात लंका पहुँच जाऊँगा। ऐसा कहकर भरत जी से
आज्ञा लेकर, उनके चरण स्पर्श करके, उनकी
वंदना करके हनुमान जी चल दिए।
भरत जी के बाहुबल
व् शील स्वभाव तथा प्रभु श्री राम के प्रति उनके अपार प्रेम को मन में सराहते हुए
बार-बार पवन पुत्र हनुमान भरत जी की बड़ई अर्थात प्रशंसा किए जा रहे थे।
चौपाई
उहाँ राम लछिमनहि
निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी ।
अर्ध राति गइ कपि
नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ ।।
सकहु न दुखित देखि
मोहि काउ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ ।
मम हित लागि तजेहु
पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता ।।
सो अनुराग कहाँ अब
भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।
जौं जनतेउँ बन बंधु
बिछोहू। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू ।।
कठिन शब्द –
उहाँ –
वहाँ लछिमनहि –
लक्ष्मण को निहारी –
देखा मनुज – मनुष्य
अनुसारी – समान अर्ध – आधी राति – रात कपि –
बंदर (हनुमान) आयउ –
आया
अनुज- छोटा
भाई (लक्ष्मण) उर –
हृदय सकहु –
सके दुखित – दुखी मोहि –
मुझे
काउ – किसी
प्रकार बंधु
– भाई, भ्राता तव – तेरा मृदुल –
कोमल
सुभाऊ – स्वभाव मम –
मेरे हित – भला तजहु –
त्याग दिया सहेहु –
सहन किया
बिपिन – जंगल हिम –
बर्फ आतप – धूप बाता –
हवा, तूफ़ान सो –
वह
अनुराग –
प्रेम बच –
वचन बिकलाई –
व्याकुल जौं – यदि जनतेऊँ –
जानता
बिछोहू – बिछड़ना, वियोग मनतेऊँ –
मानता ओहू – उस
व्याख्या – इस
प्रसंग में कवि द्वारा लक्ष्मण-मूच्छा पर राम के करुण विलाप का वर्णन किया गया है।
कवि कहते हैं कि उधर लंका में प्रभु श्री राम लक्ष्मण को निहारते हुए एक साधारण
मनुष्य के समान विलाप करते हुए कहते हैं कि आधी रात बीत गई है परन्तु हनुमान जी
अभी तक नहीं आए हैं। यह कहकर श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर अपने
हृदय से लगा लिया और कहने लगे कि तुम मुझे कभी दुःखी नहीं देख सकते थे और मेरे भाई
तुम्हारा व्यवहार सदैव कोमल व विनम्र रहा। मेरे हित के लिए ही तुमने अपने
माता-पिता को त्याग दिया और मेरे साथ जंगल में ठंड, धूप, तूफ़ान
आदि को सहन किया। श्री राम आगे कहते हैं कि हे! भाई तुम्हारा वो प्यार अब कहाँ गया? तुम
मेरे व्याकुलता भरे वचनों को सुनकर भी क्यों नहीं उठ रहे हो। यदि मैं यह जानता कि
वन में मुझे मेरे भाई से बिछड़ना होगा तो मैं पिता के वचनों को भी नहीं मानता
अर्थात में वन में नहीं आता।
चौपाई
सुत बित नारि भवन
परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।
अस बिचारि जियँ
जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।
जथा पंख बिनु खग
अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु
बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही।।
जैहउँ अवध कवन
मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई।
बरु अपजस सहतेउँ जग
माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।।
कठिन शब्द –
बित – धन नारि –
स्त्री, पत्नी होहिं – आते
हैं जाहि – जाते हैं जग –
संसार बारहिं
बारा – बार-बार अस – ऐसा, इस
तरह बिचारि –
सोचकर जियँ – मन
में
ताता –
भाई के लिए संबोधन सहोदर –
एक ही माँ की कोख से जन्मे भ्राता –
भाई
जथा – जिस
प्रकार बिनु – के
बिना दीना – दीन-हीन मनि – नागमणि
फनि – फन
(साँप) करिबर – श्रेष्ठ
हाथी कर – सूंड़ हीना –
से रहित मम –
मेरा
जिवन – जीवन बंधु –
भाई तोही – तुम्हारे जौं –
यदि जड़ –
कठोर दैव – भाग्य
जिआवै –
जीवित रखे मोही – मुझे जैहऊँ –
जाऊँगा कवन
– कौन मुहुँ
– मुख
हेतु – के
लिए गँवाई –
खोकर बरु –
चाहे अपजस – अपयश सहतेऊँ –
सहन करता
माहीं –
में बिसेष –
खास छति – हानि, नुकसान
व्याख्या – इस
पद्यांश में कवि लक्ष्मण-मूच्छा पर राम के विलाप का वर्णन कर रहे है। पद्यांश में
श्री राम कहते हैं कि पुत्र,
धन, स्त्री, घर
और परिवार, ये सब इस संसार में बार-बार मिल सकते हैं।
क्योंकि इस संसार में सगा भाई दुबारा नहीं मिल सकता इसलिए ऐसा विचार करके हे भाई
तुम जाग जाओ। श्री राम आगे कहते हैं कि जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी, मणि
के बिना सांप और सूँड के बिना हाथी बहुत ही दीन-हीन हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार
हे भाई! तुम्हारे बिना मैं केवल भाग्य से जीवित रहूंगा मगर तुम्हारे बिना मेरा
जीवन अत्यंत कठिन होगा। श्री राम कहते हैं कि हे भाई! मैं अयोध्या कौन सा मुँह
लेकर जाऊंगा। क्योंकि सभी कहेंगे कि राम ने पत्नी के लिए अपना प्रिय भाई खो दिया।
इस संसार में पत्नी को खोने का कलंक सह कर सकता हूं। क्योंकि इस संसार में अनुसार
स्त्री की हानि कोई विशेष क्षति नहीं होती हैं।
चौपाई
अब अपलोकु सोकु सुत
तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा।
निज जननी के एक
कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।।
सौंपेसि मोहि
तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी।
उतरु काह दैहउँ
तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।।
बहु बिधि सोचत सोच
बिमोचन। स्रवत सलिल राजिव दल लोचन।
उमा एक अखंड
रघुराई। नर गति भगत कृपाल देखाई।।
कठिन शब्द –
अपलोकु -अपयश सहिहि – सहन
कर लेगा निठुर –
कठोर उर – हृदय निज –
अपनी जननी – माँ कुमारा –
पुत्र तात – पिता तासु – उसके प्रान
अधारा – प्राणों
के आधार साँयेसि –
सौपा था मोह – मुझे गहि – पकड़कर यानी – हाथ हित –
हितैषी जानी – जानकर उतरु – उत्तर काह –
क्या तेहि – उसे किन
– क्यों नहीं
सोच बिमोचन –
शोक दूर करने वाला स्त्रवत –
चूता है सलिल – जल
राजिव – कमल गति – दशा
व्याख्या – इस
पद्यांश में कवि ने लक्ष्मण-मूच्छा पर राम के विलाप व हनुमान के वापस आने का वर्णन
किया है। उपरोक्त पंक्तियों में श्री राम कहते हैं कि हे भाई! अब तुम्हें खोने का
अपयश भी मुझे सहन करना होगा और मेरा निष्ठुर,
कठोर हृदय तुझे खोने का
दुःख भी सहेगा। तुम अपनी माँ की एकमात्र संतान हो और उनके जीने का एकमात्र सहारा
भी तुम ही हो। श्री राम कहते हैं कि तुम्हारी माता ने तुम्हारा हाथ पकड़कर, तुम्हें
मुझे सौंपा था। सब प्रकार से सुख देने वाला तथा परम हितकारी जानकार ही उन्होंने
ऐसा किया था। अब मैं तुम्हारी माता को क्या उत्तर दूंगा। हे भाई! तुम एक बार उठकर
मुझे यह सब सिखा दो अथवा बता दो। सभी के दुखों का नाश करने वाले श्री राम बहुत
प्रकार से विचार कर रहे हैं और उनके कमल की पंखुड़ी के समान नेत्रों से आंसू बह
रहे है।
यह सब भगवान शंकर, माता
पार्वती को सुना रहे हैं और माता पार्वती को बता रहे हैं कि हे ! उमा, प्रभु
राम अखंड है। उन्होंने अपने भक्तों पर कृपा करने के लिए मनुष्य रूप धारण किया है।
सोरठा
प्रभु प्रलाप सुनि
कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि
करुना महँ बीर रस।।
कठिन शब्द –
प्रलाप – तर्कहीन
वचन-प्रवाह बिकल – परेशान निकर –
समूह जिमि –
जैसे मँह – में।
व्याख्या – प्रभु
श्रीराम के व्याकुल व् तर्कहीन वचन-प्रवाह को सुनकर वानर व भालू का समूह भी बैचेन
व व्याकुल हो गया। जैसे ही हनुमान जी आए,
ऐसा लगा जैसे करुण रस में
वीर रस का संचार हो गया है।
चौपाई
हरषि राम भेंटेउ
हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।
तुरत बैद तब कीन्ह
उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई।।
हृदयँ लाइ प्रभु
भेंटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।
कपि पुनि बैद तहाँ
पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा।।
कठिन शब्द –
हरषि – खुश
होकर भेंटेउ –
गले लगाकर प्रेम प्रकट
किया अति – बहुत अधिक कृतग्य – आभार सुजाना – अच्छा ज्ञानी,
समझदार बैद – वैद्य कीन्ह –
किया
भ्राता – भाई हरषे – खुश हुए सकल – समस्त ब्राता – समूह, झुंड
पुनि –
दुबारा ताहि – उसको लइ आवा –
लेकर आए थे
व्याख्या – इस
पद्यांश में कवि ने लक्ष्मण के स्वस्थ होकर उठने तथा सभी की प्रसन्नता का वर्णन
किया है। हनुमान के आने पर श्री राम जी ने बहुत खुश होकर हनुमान जी को गले से लगा
लिया। एक समझदार व्यक्ति की तरह प्रभु श्री राम हनुमान जी के कृतज्ञ हो गए। उसके
बाद तुरंत ही वैद्य ने लक्ष्मण जी का उपचार किया और थोड़ी ही देर बाद लक्ष्मण जी
उठकर बैठ गए और अत्यंत प्रसन्न हुए। प्रभु श्री राम ने अपने भाई को गले से लगा
लिया है। सभी भालुओं और वानरों के समूह खुश हो गए। और फिर हनुमान् जी ने पुनः
वैद्य जी को वहीँ पहुँचा दिया,
जिस प्रकार पहले वे उन्हें
ले आए थे।
चौपाई
यह बृत्तांत दसानन
सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।
ब्याकुल कुंभकरन
पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा।।
जागा निसिचर देखिअ
कैसा। मानहुँ कालु देह धरि बैसा ।
कुंभकरन बूझा कहु
भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई।।
कठिन शब्द –
बृतांत –
वर्णन बिषाद –
दुख सिर धुनेऊ – पछताया पहिं –
पास बिबिध –
अनेक जतन – उपाय,
प्रयास करि – करके ताहि – उसे जगावा – जगाया निसिचर –
राक्षस अर्थात कुंभकरण कालु – मौत देह –
शरीर धरि – धारण करके बैसा –
बैठा
बूझा –
पूछा कहु –
कहो काहे – क्यों तव – तेरा सुखाई – सूख
रहे हैं
व्याख्या – इस पद्यांश में कवि ने कुंभकरण के जागने का
वर्णन किया है। लक्ष्मण फिर से जीवित हो गये हैं, इस
बात को जब रावण ने सूना तो उसे बहुत दुख हुआ और वह बार-बार अपना सिर पीटने लगा।
रावण अत्यंत परेशान होकर अपने छोटे भाई कुंभकरण के पास गया और उसने विभिन्न प्रकार
से जगाने की कोशिश की। (क्योंकि कुंभकरण 6
महीने सोता था और 6 महीने
जागता था। और इस वक्त वह सोया हुआ था।)
कुंभकर्ण जाग उठा
और जागने के बाद वह इस तरह दिख रहा था जैसे मानो स्वयं काल (अर्थात यमराज) ही शरीर
धारण करके बैठा हो। कुंभकर्ण ने रावण से पूछा, कहो
भाई! तुम्हारा मुख क्यों सूख रहा हैं?
अर्थात तुम क्यों परेशान
दिख रहे हो।
चौपाई
कथा कही सब तेहिं
अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी।
तात कपिन्ह सब
निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे ।।
दुर्मुख सुररिपु
मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी।
अपर महोदर आदिक
बीरा। परे समर महि सब रनधीरा ।।
दोहा
सुनि दसकंधर बचन तब
कुंभकरन बिलखान ।
जगदंबा हरि आनि अब
सठ चाहत कल्यान ।।
कठिन शब्द –
कथा – कहानी तेहिं –
उस जहि – जिस हरि –
हरण करके आनी –
लाए
कपिन्ह – हनुमान आदि वानर महा महा – बड़े-बड़े जोधा – योद्धा संघारे – संहार किय दुर्मुख – एक राक्षस का नाम सुररियु – देवताओं का शत्रु (इंद्रजीत) मनुज अहारी – नरांतक भट – योद्धा अतिकाय – एक राक्षस का नाम अपर – दूसरा महोदर – एक राक्षस का नाम आदिक – आदि समर – युद्ध महि – धरती रनधीरा – रणधीर दसकंधर – रावण बिलखान – दुखी होकर रोने लगा जगदंबा – जगत-जननी हरि – हरण करके
आनि – लाकर सठ – मूर्ख कल्यान –
कल्याण, शुभ
व्याख्या – इस
पद्यांश में कवि ने कुंभकरण व् रावण के वार्तालाप का वर्णन किया है। तब अभिमानी
रावण ने जिस प्रकार से सीता का हरण किया था और अब तक युद्ध में घटी सारी धटनाएँ
कुंभकरण को बताई। उसने कुंभकरण को यह भी बताया कि उन वानरों ने सारे राक्षसों को
मार डाला हैं और सारे बड़े-बड़े योद्धाओं का भी संहार कर दिया हैं। दुर्मुख, देवताओं
का शत्रु (सुररिपु) , मनुष्य को खाने वाला (मनुज अहारी), भारी
शरीर वाला योद्धा (अतिकाय अकंपन) तथा महोदर आदि सभी वीर रणभूमि में मारे गए हैं।
रावण के वचन सुनकर
कुंभकर्ण दुखी होकर बिलखने लगा और बोला,
हे मूर्ख! जगत माता सीता
का हरण कर अब तुम अपना कल्याण चाहते हो?
यह संभव नही है।
निम्नलिखित
काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
भरत बाहु बल सील
गुन, प्रभु पद प्रीति अपारा।
मन महुँ जात सराहत, पुनि–पुनि
पवनकुमार।।
प्रश्न. (क) अनुप्रास
अलकार के दो उदाहरण चुनकर लिखिए।
(ख) कविता
के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
(ग) काव्याशा
के भाव-वैशिष्ट्रय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- (क) अनुप्रास अलंकार के दो उदाहरण–(i) प्रभु पद प्रीति अपार।
(ii) पुनि–पुनि पवनकुमार।
(ख) काव्यांश में सरस, सरल
अवधी भाषा का प्रयोग है। इसमें दोहा छद का प्रयोग है।
(ग) काव्यांश
में हनुमान द्वारा भरत के बाहुबल, शील-स्वभाव तथा प्रभु श्री राम के चरणों में
उनकी अपार भक्ति की सराहना का वर्णन है।
2. सुत बित नारि भवन परिवारा । होहि जाहिं ज7 बारह
बारा ।।
अस बिचारि जिय जपहु ताता।
मिलह न जगत सहोदर भ्रात।।
जथा पंख बिनु खग अति दीना
। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।
अस मम जिवन बंधु बिनु
तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही।।
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई।
नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई।।
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं।
नारि हानि बिसेष छति नाहीं।।
प्रश्न. (क) काव्यांश
के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ख) इन
पंक्तियों को पढ़कर राम-लक्ष्मण की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है।
(ग) अंतिम
दो पंक्तियों को पढ़कर हमें क्या सीख मिलती है।
उत्तर- (क) विष्णु
भगवान के अवतार भगवान श्री राम का मनुष्य के समान व्याकुल होना और राम, लक्ष्मण
एवं भरत का यह परस्पर भ्रातृ-प्रेम हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।
(ख) दोनों
भाइयों में अगाध प्रेम था। श्री राम अनुज से बहुत लगाव रखते थे तथा दोनों के बीच
पिता-पुत्र-सा संबंध था। लक्ष्मण श्री राम का बहुत सम्मान करते थे।
(ग) भगवान
श्री राम के अनुसार संसार के सब सुख भाई पर न्यौछावर किए जा सकते हैं। भाई के अभाव
में जीवन व्यर्थ है और भाई जैसा कोई हो ही नहीं सकता। आज के युग में यह सीख अनेक
सामाजिक कष्टों से मुक्त करवा सकती है।
3. प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल
भए बानर निकरा
आइ गयउ हनुमान, जिमि
करुना महाँ बीर रस।
प्रश्न. (क) भाषा-प्रयोग
की दो विशेषताएँ लिखिए।
(ख) काव्यांश
का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(ग) काव्यांश
की अलकार-योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- (क) भाषा-प्रयोग की दो विशेषताएँ हैं-
(i) सरस, सरल, सहज, मधुर
अवधी भाषा का प्रयोग।
(ii) भाषा में दृश्य
बिंब साकार हो उठा है।
(ख) काव्यांश में लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर
श्री राम एवं वानरों की शोक-संवेदना एवं दुख का वर्णन है। उसी बीच हनुमान के आ
जाने से दुख में हर्ष के संचार हो जाने का वर्णन है,
क्योंकि उनके संजीवनी बूटी
लाने से अब लक्ष्मण के प्राण बच जाएँगे।
(ग) ‘विकल
भए वानर निकर’ में अनुप्रास तथा ‘आइ गयउ हनुमान,
जिमि करुना महँ वीर रस’
में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
4.हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु
परम सुजाना।।
तुरत बैद तब कीन्हि उपाई।
उठि बैठे लछिमन हरषाई।।
ह्रदय लाइ प्रभु भेंटेउ
भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।
कपि पुनि बैद तहाँ
पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लई आवा।।
प्रश्न. (क) काव्यांश
का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(ख) इन
पंक्तियों के आधार
पर हनुमान की विशेषताएँ बताईए।
(ग) काव्यांश की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- (क) इसमें
राम-भक्त हनुमान की बहादुरी व कर्मठता का,
लक्ष्मण के स्वस्थ होने का
श्री राम सहित भालू और वानरों के समूह के हर्षित होने का बहुत ही सजीव वर्णन किया
गया है।
(ख) हनुमान
जी की वीरता और कर्मनिष्ठा ऐसी है कि वे दुख में व्याकुल नहीं होते और हर्ष में
कर्तव्य नहीं भूलते। इसीलिए लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर उन्होंने बैठकर रोने के
स्थान पर संजीवनी लाये और काम होते ही वैद्य को यथास्थान पहुँचाया।
(ग) (i) काव्यांश सरल,
सहज अवधी भाषा में है, जिसमें
चौपाई छंद है।
(ii) अनुप्रास अलंकार की
छटा है।
(iii) भाषा प्रवाहमयी है।
5. व्याख्या
करें-
(क) मम
हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
जौं जनतेऊँ बन बंधु
बिछोहू। पिता बचन मनतेऊँ नहिं ओहू।
(ख) जथा
पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु
तोही। जों जड़ दैव जिआवै मोही।
(ग) माँगि
के खैबो, मसीत को सोइबो,
लैबोको एकु न दैबको दोऊ।
(घ) ऊँचे-नीचे
करम, धरम-अधरम करि,
पेट को ही पचत, बेचत
बेटा-बेटकी ।
उत्तर- (क) मेरे हित के लिए तूने माता-पिता त्याग दिए
और इस जंगल में सरदी-गरमी तूफ़ान सब कुछ सहन किया। यदि मैं यह जानता कि वन में
अपने भाई से बिछुड़ जाऊँगा तो मैं पिता के वचनों को न मानता।
(ख) मेरी दशा उसी प्रकार हो गई है जिस प्रकार
पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की, सँड़
के बिना हाथी| की होती है। मेरा ऐसा भाग्य कहाँ जो तुम्हें दैवीय शक्ति
जीवित कर दे।
(ग) तुलसीदास जी कहते हैं कि मैंने तो माँगकर
खाया है मस्ती में सोया हूँ किसी का एक लेना नहीं है और दो देने नहीं अर्थात् मैं
बिल्कुल निश्चित प्राणी हूँ।
(घ) तुलसी के युग में लोग पैसे के लिए सभी तरह
के कर्म किया करते थे। वे धर्म-अधर्म नहीं जानते थे केवल पेट भरने की सोचते। इसलिए
कभी-कभी वे अपनी संतान को भी बेच देते थे।
6. भ्रातृशोक
में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर-लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति
के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं ?
तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर- लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम को जिस तरह विलाप करते
दिखाया गया है, वह ईश्वरीय लीला की बजाय आम व्यक्ति का विलाप अधिक लगता
है। राम ने अनेक ऐसी बातें कही हैं जो आम व्यक्ति ही कहता है, जैसे-यदि
मुझे तुम्हारे वियोग का पहले पता होता तो मैं तुम्हें अपने साथ नहीं लाता। मैं
अयोध्या जाकर परिवारजनों को क्या मुँह दिखाऊँगा,
माता को क्या जवाब दूँगा
आदि। ये बातें ईश्वरीय व्यक्तित्व वाला नहीं कह सकता क्योंकि वह तो सब कुछ पहले से
ही जानता है। उसे कार्यों का कारण व परिणाम भी पता होता है। वह इस तरह शोक भी नहीं
व्यक्त करता। राम द्वारा लक्ष्मण के बिना खुद को अधूरा समझना आदि विचार भी आम
व्यक्ति कर सकता है। इस तरह कवि ने राम को एक आम व्यक्ति की तरह प्रलाप करते हुए
दिखाया है जो उसकी सच्ची मानवीय अनुभूति के अनुरूप ही है। हम इस बात से सहमत हैं
कि यह विलाप राम की नर-लीला की अपेक्षा मानवीय अनुभूति अधिक है।
7. शोकग्रस्त
माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविभव क्यों कहा गया हैं?
उत्तर- जब सभी लोग लक्ष्मण के वियोग में करुणा में डूबे थे तो
हनुमान ने साहस किया। उन्होंने वैद्य द्वारा बताई गई संजीवनी लाने का प्रण किया।
करुणा के इस वातावरण में हनुमान का यह प्रण सभी के मन में वीर रस का संचार कर गया।
सभी वानरों और अन्य लोगों को लगने लगा कि अब लक्ष्मण की मूच्र्छा टूट जाएगी।
इसीलिए कवि ने हनुमान के अवतरण को वीर रस का आविर्भाव बताया है।
8. जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय
भाइ गवाई।
बरु अपजस सहतेऊँ जग माहीं।
नारि हानि बिसेष छति नाहीं।
भाई के शोक में डूबे राम
के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित हैं?
उत्तर- भाई के शोक में डूबे राम ने कहा कि मैं अवध क्या मुँह
लेकर जाऊँगा? वहाँ लोग कहेंगे कि पत्नी के लिए प्रिय भाई को खो दिया।
वे कहते हैं कि नारी की रक्षा न कर पाने का अपयशता में सह लेता, किन्तु
भाई की क्षति का अपयश सहना मुश्किल है। नारी की क्षति कोई विशेष क्षति नहीं है।
राम के इस कथन से नारी की निम्न स्थिति का पता चलता है।उस समय पुरुष-प्रधान समाज
था। नारी को पुरुष के बराबर अधिकार नहीं थे। उसे केवल उपभोग की चीज समझा जाता था।
उसे असहाय व निर्बल समझकर उसके आत्मसम्मान को चोट पहुँचाई जाती थी।
पाठ के आस-पास
1. कालिदास के ‘रघुवंश’ महाकाव्य में पत्नी (इंदुमत) के मृत्यु-शोक
पर अज तथा निराला की ‘सरोज-स्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार
निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।
उत्तर- रघुवंश महाकाव्य में पत्नी की मृत्यु पर पति का शोक करना
स्वाभाविक है। ‘अज’ इंदुमती की अचानक हुई मृत्यु से शोकग्रस्त हो जाता है। उसे
उसके साथ बिताए हर क्षण की याद आती है। वह पिछली बातों को याद करके रोता है, प्रलाप
करता है। यही स्थिति निराला जी की है। अपनी एकमात्र पुत्री सरोज की मृत्यु होने पर
निराला जी को गहरा आघात लगता है। निराला जी जीवनभर यही पछतावा करते रहे कि
उन्होंने अपनी पुत्री के लिए कुछ नहीं किया। उसका लालन-पालन भी न कर सके। लक्ष्मण
के मूर्छित हो जाने पर राम का शोक भी इसी प्रकार का है। वे कहते हैं कि मैंने
स्त्री के लिए अपने भाई को खो दिया,
जबकि स्त्री के खोने से
ज्यादा हानि नहीं होती। भाई के घायल होने से मेरा जीवन भी लगभग खत्म-सा हो गया है।
3. तुलसी
के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं ? आज
की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचचा करें।
उत्तर- तुलसी युग की बेकारी का सबसे बड़ा कारण गरीबी और भुखमरी
थी। लोगों के पास इतना धन नहीं था कि वे कोई रोजगार कर पाते। इसी कारण लोग बेकार
होते चले गए। यही कारण आज की बेकारी का भी है। आज भी गरीबी है, भुखमरी
है। लोगों को इन समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलती,
इसी कारण बेरोजगारी बढ़ती
जा रही है।
4. राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण
सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर (एक ही माँ के पेट से जन्मे) नहीं थे। फिर, राम
ने उन्हें लक्ष्य करके ऐसा क्यों कहा—‘मिलह न जगत सहोदर भ्राता’2 इस
पर विचार करें।
उत्तर- राम और लक्ष्मण भले ही एक माँ से पैदा नहीं हुए थे, परंतु
वे सबसे ज्यादा एक-दूसरे के साथ रहे। राम अपनी माताओं में कोई अंतर नहीं समझते थे।
लक्ष्मण सदैव परछाई की तरह राम के साथ रहते थे। उनके जैसा त्याग सहोदर भाई भी नहीं
कर सकता था। इसी कारण राम ने कहा कि लक्ष्मण जैसा सहोदर भाई संसार में दूसरा नहीं
मिल सकता।
5. यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित, सवैया-ये
पाँच छद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छद तथा काव्य-रूप आए हैं।
ऐसे छदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ।
उत्तर- तुलसी साहित्य में अन्य छंदों का भी प्रयोग हुआ है जो
निम्नलिखित है-बरवै, छप्पय, हरिगीतिका।
तुलसी ने इसके अतिरिक्त
जिन छंदों का प्रयोग किया है उनमें छप्पय,
झूलना मतंगयद, घनाक्षरी
वरवै, हरिगीतिका,
चौपय्या, त्रिभंगी, प्रमाणिका
तोटक और तोमर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। काव्य रूप-तुलसी ने महाकाव्य, प्रबंध
काव्य और मुक्तक काव्यों की रचना की है। इसीलिए अयोध्यासिंह उपाध्याय लिखते हैं कि
“कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।”
इन्हें भी जानें
चौपाई-चौपाई सम-मात्रिक छंद है जिसके दोनों चरणों
में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चालीस चौपाइयों वाली रचना को चालीसा
कहा जाता है-यह तथ्य लोक-प्रसिद्ध है।
दोहा- दोहा अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके सम चरणों (दूसरे और
चौथे चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और
तीसरे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इनके साथ अंत लघु (1) वर्ण
होता है।
सोरठा- दोहे
को उलट देने से सोरठा बन जाता है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 13-13 मात्राएँ
होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11
मात्राएँ होती हैं। परंतु
दोहे के विपरीत इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में अंत्यानुप्रास या तुक नहीं
रहती, विषम चरणों (पहले और तीसरे) में तुक होती है।
कवित्त- यह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी
कहते हैं। कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31
वर्ण होते हैं। प्रत्येक
चरण के 16वें और फिर 15वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का
अंतिम वर्ण गुरु होता है।
सवैया- चूँकि सवैया वार्णिक छंद है, इसलिए
सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे
प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण
में 23-23 वर्ण होते हैं जो 7
भगण + 2 गुरु
(33) के क्रम के होते हैं।
अन्य हल प्रश्न
लघूत्तरात्मक
प्रश्न
1. ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ काव्या’श
के आधार पर आव्रर्शाक में बेचैन राय कौ दशा को अपने शब्दों में प्रस्तुत काँजिए ।
अथवा
‘लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप’ कविता का प्रतिपाद्य
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लक्ष्मण को मूर्चिछत देखकर राम भाव-विहवल हो उठते हैं। वे आम व्यक्ति की तरह विलाप करने लगते हैं। वे लक्ष्मण को अपने साथ लाने के निर्णय पर भी पछताते हैं। वे लक्ष्मण के गुणों को याद करके रोते हैं। वे कहते हैं कि पुत्र, नारी, धन, परिवार आदि तो संसार में बार-बार मिल जाते हैं, किंतु लक्ष्मण जैसा भाई दुबारा नहीं मिल सकता। लक्ष्मण के बिना वे स्वयं को पंख कटे पक्षी के समान असहाय, मणिरहित साँप के समान तेजरहित तथा सँड़रहित हाथी के समान असक्षम मानते हैं। वे इस चिंता में थे कि अयोध्या में सुमित्रा माँ को क्या जवाब देंगे तथा लोगों का उपहास कैसे सुनेंगे कि पत्नी के लिए भाई को खो दिया।
5. लक्ष्मण
के मूर्चिछत होने पर राम क्या सोचने लगे?
उत्तर- लक्ष्मण शक्तिबाण लगने से मूर्चिछत हो गए। यह देखकर राम
भावुक हो गए तथा सोचने लगे कि पत्नी के बाद अब भाई को खोने जा रहे हैं। केवल एक
स्त्री के कारण मेरा भाई आज मृत्यु की गोद में जा रहा है। यदि स्त्री खो जाए तो
कोई बड़ी हानि नहीं होगी, परंतु भाई के खो जाने का कलंक जीवनभर मेरे
माथे पर रहेगा। वे सामाजिक अपयश से घबरा रहे थे।
6. क्या तुलसी युग की समस्याएँ वतमान में समाज
में भी विद्यमान हैं?
अपने शब्दों में
लिखिए।
उत्तर- तुलसी ने लगभग 500
वर्ष पहले जो कुछ कहा था, वह
आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समय की मूल्यहीनता, नारी
की स्थिति, आर्थिक दुरवस्था का चित्रण किया है। इनमें अधिकतर
समस्याएँ आज भी विद्यमान हैं। आज भी लोग जीवन-निर्वाह के लिए गलत-सही कार्य करते
हैं। नारी के प्रति नकारात्मक सोच आज भी विद्यमान है। अभी भी जाति व धर्म के नाम
पर भेदभाव होता है। इसके विपरीत, कृषि,
वाणिज्य, रोजगार
की स्थिति आदि में बहुत बदलाव आया है। इसके बाद भी तुलसी युग की अनेक समस्याएँ आज
भी हमारे समाज में विद्यमान हैं।
7. कुंभकरण ने रावण को किस सच्चाई का आइना
दिखाया?
उत्तर- कुंभकरण रावण का भाई था। वह लंबे समय तक सोता रहता था।
उसका शरीर विशाल था। देखने में ऐसा लगता था मानो काल आकर बैठ गया हो। वह मुँहफट
तथा स्पष्ट वक्ता था। वह रावण से पूछता है कि तुम्हारे मुँह क्यों सूखे हुए हैं? रावण
की बात सुनने पर वह रावण को फटकार लगाता है तथा उसे कहता है कि अब तुम्हें कोई
नहीं बचा सकता। इस प्रकार उसने रावण को उसके विनाश संबंधी सच्चाई का आईना दिखाया।
8. नीचे
लिख काव्य-खड को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
सुत बित नारि भवन परिवारा।
होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।
अस विचारि जियें जागहु
ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।
(क) काव्याशा में प्रयुक्त भाषा एव छद का नाम
लिखिए।
(ख) प्रयुक्त
अलकार का नाम और दो उदाहरण लिखिए।
(ग) कविता
का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- (क) काव्यांश में प्रयुक्त भाषा सरस, सरल
अवधी तथा छद चौपाई है।
(ख) काव्यांश
में अनुप्रास अलंकार है। इसके दो उदाहरण हैं
(i) होहि
जाहि जग बारहि बारा।
(ii) अस विचारि जिय
जागहु ताता।
(ग) काव्यांश में लक्ष्मण को मूर्चिछत देखकर राम
की व्याकुलता एवं दुख का वर्णन है। वे जगत में सहोदर भाई फिर न मिल पाने की बात
कहकर उठ जाने के लिए कह रहे हैं।
9. कुंभकरण
के द्वारा पूछे जाने पर रावण ने अपनी व्याकुलता के बारे में क्या कहा और कुंभकरण
से क्या सुनना पड़ा?
उत्तर- कुंभकरण के पूछने पर रावण ने उसे अपनी व्याकुलता के बारे
में विस्तारपूर्वक बताया कि किस तरह उसने माता संकण किया कि उसे बताया कि हानुमान
ने सवागस मारडले हैं औ महान यथाओं का साहार कर दिया है।
उसकी ऐसी बातें सुनकर
कुंभकरण ने उससे कहा कि अरे मूर्ख! जगत-जननी को चुराकर अब तू कल्याण चाहता है। यह
संभव नहीं है।